1795 में सुजानपुर में खेली गई थी पहली बार तिलक होली, तालाब में तैयार होता था रंग

हमीरपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: रिपोर्ट: रजनीश शर्मा । वैसे तो हमारे देश में हर जगह होली का अपना महत्व है। हर जगह अपने अपने तरीके से होली मनाई जाती है। लेकिन हमीरपुर के सुजानपुर में खासा महत्व है। इस बार सुजानपुर में 7 से 10 मार्च तक मनाये जा रहे राष्ट्र स्तरीय होली मेले को मनाया जा रहा है मेले के इतिहास से जुड़ी कुछ अहम बातें राजा और प्रजा के बीच परस्पर प्रेम को दर्शाती हैं। कई इतिहासकार इस पर शोध कर चुके हैं।

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बताया जाता है कि यहां सन् 1795 में पहली बार तिलक होली खेली गई थी। जिला के सुजानपुर टीहरा में होली का रंग तालाब में घोला जाता था। शोध में यह खुलासा हुआ है। शोध में पता चला है कि महाराजा संसार चंद इस दिन जनता के बीच आकर होली खेलते थे। वह दीवाने ख़ास में बैठ कर प्रजा को दर्शन देते थे। यह उत्सव तीन दिन तक चलता था, जिसे अब चार दिन का कर दिया गया। इस मेले में प्राचीन संस्कृति को महत्व दिया जाता है। अब भी राजा के लिए रथ लाया जाता है। इस दौरान प्राचीन परंपराएं भी निभाई जाती हैं।

राजा और प्रजा के बीच मिटती थी दूरियां

सुजानपुर टीहरा, हमीरपुर का सबसे सुंदर एवं आकर्षक स्थल है। इस नगर की स्थापना करने का कार्य 1761 ई. में कटोच वंश के राजा घमंड चंद ने शुरू किया था मगर इसको संपूर्ण करने का श्रेय उनके पोते संसार चंद को प्राप्त हुआ। कलाप्रेमी राजा संसार चंद ने इस नगर का निर्माण कलात्मक ढंग से करवाया और यहां की सुंदरता निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ब्यास नदी के बाएं तट पर स्थित नगर की सुंदरता को देखते हुए इसे अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया।


देश के विख्यात कलाकर, विद्वान एवं सुयोग्य व्यक्ति यहां लाकर बसाए, तभी से सुजान व्यक्तियों की सुंदर बस्ती सुजानपुर कहलाने लगी। सुजानपुर में स्थित एक ऊंची पहाड़ी पर सडक़ से तीन किलोमीटर दूर टीहरा में राजा संसार चंद के महल स्थित है। इन महलों के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर बैठे हुए हाथियों के हौदों के आकार की दो खिड़कियां बनी हुई हैं। यहां से ब्यास नदी को देखने में सुंदरता का अनुभव होता हैं।

राजा संसार चंद ने अपने शासनकाल में 1775 से 1823 ई. के दौरान सुजानपुर टीहरा में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। कांगड़ा चित्रकला उनके शासन काल में काफी फली-फूली. यहां के सुंदर मंदिरों की दीवारों पर कांगड़ा कलम के मनोहारी चित्र आज भी जिंदा है। रामायण, महाभारत तथा भागवत पुराण के चित्र राजा संसार चंद के दरबारी कलाकारों ने चित्रित किए हैं।जहां का नर्वदेश्वर मंदिर चित्रकला का गवाह है।मंदिर के चारों कोनों पर सूर्य, गणेश, दुर्गा तथा लक्ष्मी-नारायण के छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं।

सुजानपुर टीहरा का चौगान मैदान सुंदरता का प्रतीक है। कटोच वंश के राजाओं की सेनाएं जहां अभ्यास किया करती थी।यह चौगान मैदान 514 कनाल पर समतल है।राजा संसार चंद द्वारा मैदान के एक कोने में 1785 ई.शिखर शैली में मुरली मनोहर मंदिर को राजा संसार चंद ने बैजनाथ स्थित शिव मंदिर के अनुरूप ही बनवाया था।होली मेले से मुरली मनोहर मंदिर का अहम महत्व है। जहां पर राजा-रानी स्वयं पूजा किया करते थे। इसके दक्षिण में कटोच वंश की कुलदेवी चामुंडा देवी का मंदिर है। राजा का प्रजा से असीम प्यार था। राजा प्रमुख धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठानों व आयोजनों में प्रजा को सम्मिलित करना कभी नहीं भूलते थे। उन्होंने होली के रंगीन पर्व को ब्रज होली की भांति लोकोत्सव का स्वरूप प्रदान किया था।

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