होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। जब हम डरते हैं कि हमारी आस का दीया न बुझ जाये चुनौतियों के तूफां में, तब-तब यह जादूगर जला देती है साहस की धधकती लौ हवा में। असहनीय शीत में धूप, अनहद प्रेम स्वरूप, सहनशक्ति का सागर, उल्लास की गागर, मुस्कुराहटों का झरना और पलकों से आंसू गिरना, होली दीवाली में पूजा की थाली, मुश्किलों का हल और घर की खुशहाली-माँ, एक ऐसा रिश्ता जो सृष्टि रचयिता यानि कि ईश्वर के मान्य है क्योंकि वह हमारी रचयिता है। सिर्फ अपनी सांसे ही वो हमारी सांसों में नहीं भरती, ताउम्र के लिये वो हमारी चिन्ता अपने सीने में भर लेती है। संसार भर के अनुभवों से डरी माँ की बातों में परवाह व दिल में फिक्र होती है, इसीलिये तो अक्सर बच्चों से दूर रह वो नहीं सोती है। लेकिन जब जब दुनिया अपना डरावना चेहरा दिखा देती है, तब तब वो हमें ममता के आंचल में छिपा लेती है।
पिता का योगदान व समर्पण झुठलाया या नजऱअन्दाज़ नहीं किया जा सकता लेकिन नौ महीने गर्भधारण व जन्म देने की पीड़ा सहकर नि:सन्देह जन्मदायिनी श्रेष्ठता का स्थान तो पा जाती है, यह सम्मान या अधिकार उसे मिले या न मिले एक अलग प्रश्र है। लेकिन आज मेरा यह लेख केवल जन्म देने वाली माता के लिये ही नहीं, हर उस नारी और पुरूष के लिये है जिसने रिश्ते के दायरे से परे न केवल अपने बच्चों बल्कि किसी के भी जीवन में निस्वार्थ ममता न्यौछावर की और उस बैंक का रोल अदा किया जहां हम बेझिझक अपने सारे दुख, दर्द, गिले-शिकवे, चिन्ता, परेशानी जमा कर सकते हैं। मदजऱ् डे पर हर उस सरल व निष्छल करिश्मे को नमन।
बदलते वक्त की तेज़ रफ्तार के साथ हर कोई बदल गया। तो जायज़ है कि बदलाव की हवा में माँ का रूप-स्वरूप भी बदला। घर की चारदीवारी से निकलते ही उसका अक्स बदला, शख्सियत निखरी और परिणाम स्वरूप उसकी जि़म्मेवारियाँ और चुनौतियाँ भी बढ़ीं। आज के मार्डन ज़मानेे में उसका सम्पूर्ण अस्तित्व तो बदल गया मगर उससे जुड़ी अपेक्षायें वैसी की वैसी ही हैं। कामकाजी हो या घरेलू, पर्सनल व प्रौफैशनल दायरों के बीच का संतुलन बनाकर इन अपेक्षाओं की कसौटियों पर खरा उतरने के तनावों से ग्रस्त होकर भी वह अपना दायित्व बखूबी निभाने में लीन है। भिन्न-भिन्न पर्सनैल्टिी, दायित्व व मानसिकता के रहते किसी एक की दूसरे से तुलना करना अनुचित है और हर एक को उसके हिस्से का सम्मान व स्नेह का अधिकार मिलना ही चाहिए।