कुल्लू दशहरा: कोरोना के बावजूद निभाई जाएगी देव परंपरा, रथयात्रा में केवल 7 देवता व 100 लोग होंगे शामिल

हमीरपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: रजनीश शर्मा। कोरोना के दंश के बावजूद अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा इस बार 25 अक्तूबर से शुरू होगा। इस सात दिवसीय उत्सव में भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा में केवल 7 देवी-देवताओं के रथ ही शामिल होंगे। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ही दशहरे की परंपरा को निभाया जाएगा। यह पहली बार होगा कि रथ को कुछ लोग खींचेंगे। हालांकि भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा में शामिल होने वाले सभी देवलुओं को 48 घंटे पूर्व अपनी कोरोना जांच करवानी होगी।

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ये देवी देवता होंगे शामिल

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में खराहल घाटी के आराध्य बिजली महादेव, राजपरिवार की दादी कही जाने वाली माता हिडिंबा, खोखण के आदि ब्रह्म, पीज के जमदग्नि ऋषि, रैला के लक्ष्मी नारायण, राजपरिवार की कुल देवी नग्गर की माता त्रिपुरा सुंदरी और ढालपुर के देवता वीरनाथ के रथ दशहरा में शामिल होकर परंपरा का निर्वहन करेंगे। इन देवताओं के कारदार अपने क्षेत्र में बैठक करेंगे। इसके बाद प्रशासन को देवता की ओर से दशहरे में शामिल वाले देवलुओं की सूची दी जाएगी। इन सभी के कोरोना टेस्ट भी किए जाएंगे। देवताओं के कारदारों की ओर से सुनिश्चित किया गया है कि वे सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना नियमों का पालन करेंगे। बिजली महादेव के कारदार अमरनाथ नेगी ने कहा कि दशहरा उत्सव में सात देवताओं के रथ आने को लेकर सहमति बनी है।

रघुनाथ की रथयात्रा में शामिल होंगे 100 लोग

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का शुभारंभ 25 अक्तूबर से होगा। लेकिन, इस बार देवी-देवताओं के बिना न पहले जैसी भव्यता होगी और न ही लोगों के बिना रौनक। रथयात्रा में हजारों की संख्या में उमडऩे वाले लोग नजर नहीं आएंगे। कोरोना को देखते हुए इस बार कुल्लू जिले के आराध्य भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में महज 100 लोग ही शामिल हो पाएंगे।

1972 में नहीं हुई थी रथयात्रा


पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने बताया कि कुल्लू दशहरा में 1971 को हुए गोली कांड के बाद 1972 को भगवान रघुनाथ ढालपुर नहीं आए थे। इस कारण रथयात्रा नहीं हो सकी थी। उन्होंने कहा कि गोलीकांड के अगले साल 1972 को रघुनाथ ढालपुर नहीं लाए गए थे। पूर्व सांसद एवं भगवान श्री रघुनाथ के प्रमुख सेवादार महेश्वर सिंह ठाकुर ने कहा है कि जब से रघुनाथ जी कुल्लू आए हैं, सैंकड़ों सालों से देव परंपरा के तहत रथयात्रा आयोजित होती रही है। उन्होंने बताया कि 1962 के चीन युद्ध के बावजूद कुछ देवताओं की मौजूदगी में रथयात्रा हुई।

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