चंडीगढ़ (द स्टैलर न्यूज़)। पंजाब और हरियाणा की बार कौंसिल ने आज हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (एच.सी.बी.ए.) की तरफ से एडवोकेट जनरल अतुल नंदा की मैंबरशिप रद्द किये जाने पर रोक लगाते हुए इसको ‘बहुत ही अन्यायपूर्ण, अनुचित, कठोर और अनावश्यक करार दिया। कौंसिल ने बार के कुछ दूसरे सदस्यों की मैंबरशिप रद्द किये जाने पर भी रोक लगाते हुए इसको एच.सी.बी.ए. के नियमों का उल्लंघन बताया। बार कौंसिल की तत्काल बैठक में एसोसिएशन के रैज़ोलूशन ‘ई ’ के द्वारा नंदा की मैंबरशिप रद्द किये जाने संबंधी लिए गए फ़ैसले पर चर्चा करते हुए पाया गया कि यह कार्यवाही मनमाने ढंग से की गई है। यह मीटिंग हड़ताल बुलाए जाने के बावजूद आज अदालत में पेश हुए वकीलों की पंजाब और हरियाणा बार एसोसिएशन की तरफ से मैंबरशिप रद्द किये जाने के बाद बुलाई गई। बार कौंसिल ने प्रस्ताव पास करते हुए अतुल नंदा की मैंबरशिप को भी इस आधार पर रद्द किया कि उन्होंने अदालत की फिजिक़ल ओपनिंग के विरुद्ध निरंतर काम किया था। एसोसिएशन ने अपने प्रस्ताव के खण्ड ‘ई’ में कहा कि, ‘‘पंजाब के एडवोकेट जनरल अतुल नंदा ने अदालत की फिजिक़ल ओपनिंग के विरुद्ध जाकर निरंतर काम किया जो बार कौंसिल के हितों के विरुद्ध है और इस कारण उनकी मैंबरशिप पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार ऐसोसीएसन से रद्द की जाती है।’’ कौंसिल ने पाया कि प्रस्ताव ‘ई’ ग़ैरकानूनी है और एच.सी.बी.ए के सम्बन्धित नियमों में निर्धारित प्रक्रिया के उल्लंघन में पारित किया गया है और इस कारण सदन सर्वसम्मति से एच.सी.बी.ए के प्रस्ताव ‘ई’, जो एच.सी.बी.ए. के तारीख़ 01.02.2021 वाले प्रस्ताव नंबर 1988/2021 का हिस्सा है, पर तुरंत प्रभाव के साथ रोक लगाता है।
कौंसिल ने सर्वसम्मति से दोहराया कि नंदा का कामकाज और व्यवहार हमेशा सराहनीय और उदाहरणीय रहा है, खासकर जब भी वकीलों के हितों की बात हो। नंदा ने ख़ुद ऐसोसीएशन के एक-तरफा और मनमानी वाले प्रस्ताव पर हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा कि कोर्ट की फिजिक़ल तौर पर सुनवाई करवाने का फ़ैसला मेरे ऊपर नहीं, बल्कि हाई कोर्ट की प्रशासनिक समिति पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि अदालत की तरफ से कोविड-19 के खतरे को ध्यान में रखते हुए फिजिक़ल तौर पर सुनवाई बंद कर दी गई थी। यह ख़तरा अभी टला नहीं है और दुनिया अभी भी इसका सामना कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने पंजाब राज्य के वकीलों के फिजिक़ल तौर पर पेश होने के लिए सहमति दी है। संयोगवश, सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक फिजिक़ल तौर पर सुनवाई शुरू नहीं की है। बार कौंसिल ने अपनी पहली मीटिंग के दौरान विस्तृत विचार-विमर्श के बाद यह प्रस्ताव लिया कि एक तरफ कौंसिल फिजिक़ल तौर पर सुनवाईयां शुरू करने के प्रस्ताव की पूरी तरह हिमायत करती है और दूसरी तरफ इस सम्बन्धी हाई कोर्ट बार ऐसोसीएशन का जोरदार समर्थन करती है परन्तु सभी सदस्यों का विचार था कि एच.सी.बी.ए की तरफ से लिया गया फैसला बहुत ही पक्षपाती, अनुचित और अनावश्यक है। बार कौंसिल के सदस्यों का विचार था कि नंदा हमेशा वकीलों के हितों के लिए डटे रहे हैं और एचसीबीए की तरफ के पास किया उक्त प्रस्ताव तथ्यों के विरुद्ध है क्योंकि उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर अदालतों के कामकाज को फिज़ीकली तौर पर फिर शुरू करने का समर्थन किया था। उन्होंने आगे बताया कि 3 जनवरी, 2021 को नंदा ने लगा भवन में पंजाब, हरियाणा और चण्डीगढ़ की बार ऐसोसीएशनों के समूह प्रधानों और अधिकारियों वाले सदन को संबोधन किया जहाँ उन्होंने अदालतों के मामलों की सुनवाई को फिज़ीकली तौर पर फिर शुरू करने सम्बन्धी सदन के प्रस्ताव की हिमायत की थी।
कौंसिल ने कहा ‘एडवोकेट जनरल पंजाब पहले ही 30 जनवरी, 2021 को पत्र लिख कर हाई कोर्ट में मामलों की निजी सुनवाई के दौरान पंजाब राज्य की तरफ से कानूनी अफसरों की हाजिरी के लिए सहमति दे चुके थे। प्रस्ताव में आगे लिखा है ‘यह भी विचारा गया कि 31 जनवरी को माननीय जज साहिबान की प्रशासनिक कमेटी की बैठक दोपहर 4रू00 बजे हाई कोर्ट के कान्फ्रेंस हाल में बुलायी गई थी जिस में निजी सुनवाई फिर शुरू करने और लम्बित मामलों को हल करने के बारे बातचीत की गई थी। इस मीटिंग में एच.सी.बी.ए. के अधिकारियों को भी विचार-विमर्श के लिए बुलाया गया था परन्तु अधिकारियों ने मीटिंग में शामिल होने और माननीय जज साहिबान के साथ विचार-विमर्श करने की बजाय अपने आप ही मीटिंग का बायकाट कर दिया। सदन को जानबुझ कर उक्त तथ्यों से अवगत नहीं करवाया गया और स्पष्ट तौर पर छुपाया गया है। कौंसिल ने कुछ अन्य सदस्यों की मैंबरशिप रद्द करने पर भी रोक लगाते हुये कहा कि यह प्रस्ताव एच.सी.बी.ए. के नियमों; नियम -10 (डी) और 11 का पूरी तरह उल्लंघन करके पास किया गया क्योंकि मीटिंग के लिए न तो उपयुक्त नोटिस दिया गया और न ही ऐसी मीटिंग के लिए कम से -कम अपेक्षित कोरम पूरा किया गया। कौंसिल के प्रस्ताव में कहा गया, ‘बार के किसी भी मैंबर के विरुद्ध अनुशासनी कार्यवाही उचित नियमों को एकतरफा करके नहीं की जा सकती। यह भी कहा गया, ‘एच.सी.बी.ए. के मैंबर के चाल-चलने के बारे सदन में विचार करने के लिए उचित नोटिस वाला खास एजेंडा बांटा जाना लाजिमी है