होशियारपुर, 30 मई: माडल टाऊन स्थित योग साधन आश्रम के स्थाई सेवकों ने आज रविवारीए सत्संग किया । जिसमें अन्य स्थानों के भगत सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े । उनका आनलाइन मार्गदर्शन करते हुए आश्रम के आचार्य चंद्रमोहन अरोड़ा ने कहा कि धर्म का मार्ग ही हमारे जीवन में सुख ला सकता है । प्रभु जी की योग शिक्षा अनुसार नित्य प्रति 5 यम अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचार्य एवं अपरिग्रह का पालन करना तथा अपने जीवन में 5 नियम शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणीधान पर चलना ही धर्म का मार्ग है। मनुस्मृति के अनुसार भी धर्म के यही 10 लक्षण है । यदि हम अपना जीवन शास्त्रों के आधार अनुसार व्यतीत करें तो सुखी रह सकते हैं ।यह सारा जगत ईश्वर से उत्पन्न हुआ है और महा विशाल है । जैसे किसी वृक्ष के उगने हेतु वह जड़ से उत्पन्न होता है तथा फिर उसका विकास होकर विशाल वृक्ष बन जाता है इसी तरह इस जगत का रचन कार ऊपर है और उससे उत्पन्न सृष्टि नीचे है।
यहजगत एक उल्टा वृक्ष है जिसकी जड़ें ऊपर और शाखाएं नीचे हैं । यह बट के वृक्ष के समान है । यदि वृक्ष को हरा भरा रखना हो तो उसकी जड़ों को सींचना पड़ता है । मनुष्य उल्टा वृक्ष होने के कारण इसकी जड़ सिर है जो ऊपर है ।यदि इसको ठीक रख लं्रयक् तो हम हर तरफ से सुखी और निरोग रह सकते हैं । सिर में जब गंदगी इक_ी हो जाती है तो यह रोगों का कारण बन जाता है । ईश्वर ने इसकी मैल निकालने का रास्ता नाक को बनाया है । परंतु हमारा नाक ही बंद रहता है और नाना प्रकार के रोग पैदा करता है । सिर को मनुष्य का सर्वोत्तम अंग कहा जाता है यदि इसमें मल हो तो चक्कर आने शुरू हो जाते हैं सारा शरीर कांप उठता है। सिर की नसे कमजोर हो जाएं तो गर्दन के ऊपर के सारे अंग दुख व रोग का कारण बन जाते हैं ।शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर एक गिलास नमकीन पानी को नाक से पीकर मुंह से निकालता है तो उसके सिर का सारा मैल साफ हो जाता है । उसकी बुद्धि तीव्र हो जाती है आंखें गिद्ध की तरह तेज हो जाती है। चेहरे पर झुरिया नहीं रहती ।
बाल असमय सफेद नहीं होते । माइग्रेन, सर्वाइकल, थायराइड, टॉन्सिल, खांसी, जुकाम, नजला, साइनस जैसे रोग दूर रहते हैं । सिर का महत्व शरीर के अलावा भक्ति के लिए भी जरूरी है। भक्ति के लिए प्रभु चरणों में सिर ही झुकता है। यदि हम श्रद्धा पूर्वक अपना सिर बार-बार प्रभु के चरणों में झुकाते हैं तो हमारा मन प्रभु चरणों से प्रेम करने लगता है फिर इस मन में बुरे विचार निकल कर सात्विक विचार ऊपर आते हैं। जिससे हम सब जीवो के अंदर गुण देखते हैं और शुद्ध विचार धारण करते हैं तथा सद्भावना के भाव जागृत होते हैं । शास्त्रों के अनुसार हमें अपनी बुद्धि में ज्ञान भरना होता है तथा इसे स्थिर रखना होता है । यह परिस्थितियों से विचलित ना हो इसके लिए गुरु की शरण में रहकर ऋषि कृत ग्रंथों का नित्य स्वाध्याय करना चाहिए। जब बुद्धि स्थिर होगी, ज्ञान युक्त होगी तो यह मन का मार्गदर्शन करेगी।
मन इंद्रियों को संभाल कर रखेगा। उन्हें मनमानी नहीं करने देगा, जीवन का रस एक सुंदर चाल चलता रहेगा । परंतु अभी दशा विपरीत है, इंद्रियां बलशाली है, आंखें बुरे दृश्य देखती हैं, कान निंदा सुनने के शौकीन है, जीवा स्वाद में गलत खा लेती है,नाक से सब दुर्गंध लेते हैं तथा त्वचा से नाना प्रकार के पाप कर डालते हैं । मन इंद्रियों को नहीं संभाल पाता। गुरु की शरण ना होने के कारण बुद्धि मन को सही रास्ता नहीं दिखा पाती । मन बुद्धि की नहीं सुनता ,जीवन सारा अस्तव्यस्त है, कल्याण के लिए मन की गुलामी छोडक़र बुद्धि को संभाले। इस अवसर पर अभिषेक ने मुझे ऐसा वर दे दो गुणगान करूं तेरा भजन गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।