मन के दुखों का निवारण गुरु ज्ञान है: चंद्रमोहन अरोड़ा

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में आयोजित रविवारीय सत्संग के दौरान योगाचार्य चमनलाल कपूर की शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए आचार्य चंद्रमोहन अरोड़ा ने कहा कि जब हम संसार में आते हैं तो शरीर व मन से दुखी रहते हैं। शरीफ आए दिन रोगी रहकर दुखी करता है तो मन चिंताओं व परेशानियों के कारण दुख देता है। शरीर के रोगों के लिए हम दवाई ले लेते हैं अथवा योग के साधनों से ठीक हो जाते हैं। पर मन के दुखों के लिए ना तो कोई दवाई है ना ही भौतिक साधन। मन के दुखों का निवारण तो गुरु ज्ञान देकर ही कर सकते हैं। मन को दुखी उस में चल रहे विचार करते हैं ना की परिस्थितियां प्रतिकूल परिस्थिति में भी यदि मन के विचार ठीक रखें तो हम मन के दुखों से बच सकते हैं। मन में चल रहे विचारों को वृतियां कहते हैं। कमजोर व ज्ञान रहित मन की वृतियां परिस्थितियों के साथ बदल जाती हैं। अत: बुरी परिस्थितियों में मन दुखी तथा अच्छी स्थिति में मन सुखी व खुश हो जाता है। परंतु योगी गुरु बुरी परिस्थितियों मे भी मन के विचारों अथवा वृत्तियों को ठीक रखने की युक्ति बताते हैं। मन की वृतियां पांच प्रकार की होती है।

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जिसका मतलब मन 5 तरह की परिस्थितियों में रहता है। प्रमाण,विपय्य्र्यय, विकल्प ,निंद्रा तथा स्मृति। किसी चीज़ को देखने से मन उस जैसा बन जाता है। अच्छा देखने से अच्छा व बुरा देखने से बुरा। सत्संग में जाकर मन को गुरु के दर्शनों से शांति मिलती है तथा कलह क्लेश मे रहकर दुख मिलता है। उल्टी सोच से सज्जन व्यक्ति को भी मन बुरा जानकर दुखी होता है। रस्सी को सांप समझ लेना, मित्र वृत्ति वाले को दुश्मन समझ लेने से भी मन दुखी होता है। मन जब ख्याली पुलाव बनाता है अथवा भविष्य की कल्पना करता है तो उससे भी सुखी व दुखी हो जाता है। स्कूल से बच्चे के लेट हो जाने पर मन ना जाने क्या क्या सोचने लग जाता है तथा दुखी हो जाता है।

निंद्रा में हम बहुत सी काल्पनिक चीजें देखते हैं और डर जाते हैं, जबकि वह वास्तविक नहीं होती। समृति में हम पुरानी बातों को याद करके दुखी हो जाते हैं। मन के द्वेष, नफरत , बदले की भावना लाकर खुद को दुखी कर लेते हैं। इन 5 तरह की वृत्तियों के दो रूप होते हैं कलिष्ट जो दुखदाई होते हैं तथा अकलिष्ट जो सुखदायक होते हैं। गुरु के पास जाकर हम बुरी परिस्थितियों में भी शुद्ध विचार लाकर सुखी रह सकते हैं। अत: किसी भी परिस्थिति में सुखी अथवा दुखी रहना हमारे हाथ में है। इस मौके पर अशोक ने मिलिया जन्म अमोलक बंदे इस दा कदर ना पाया तू भजन गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

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