दातारपुर(द स्टैलर न्यूज़)। भगवान् शिव भोले सूर्य के समान दीप्तिमान हैं। जिनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है। नीले कण्ठ वाले, अभिष्ट वस्तुओं को देने वाले हैं। तीन नेत्रों वाले यह शिव, काल के भी काल महाकाल हैं। कमल के समान सुन्दर नयनों वाले अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले अक्षर- पुरुष हैं। यदि क्रोधित हो जाएं तो त्रिलोक को भस्म करने के शक्ति रखते हैं और यदि किसी पर दया कर दें तो त्रिलोक का स्वामी भी बना सकते हैं। यह भयावह भव सागर पार कराने वाले समर्थ प्रभु हैं। ऐतिहासिक पांडव कालीन शिव मंदिर गगन जी के टिल्ला में परम शिव भक्त मुकेश रंजन ने आज नौ अगस्त सावन सोमवार की महिमा बताते हुए कहा भोले नाथ बहुत ही सरल स्वभाव, सर्वव्यापी और भक्तों से शीध्र ही प्रसन्न होने वाले देव हैं। उनके सामने मानव क्या दानव भी वरदान मागने आये जो उसे भी मुंह मांगा वरदान देने में पीछे नही हटते हैं। उन्होंने कहा एक बार असुर राज भस्मासुर भोले शंकर की भक्ति करके उन्हें प्रसन्न कर लेता है और भोले नाथ माता पार्वती के साथ उसे दर्शन देते हैं। भस्मासुर को वरदान मांगने को कहते हैं। शिव के साथ मां पार्वती को देखकर वह उन पर मोहित हो जाता है। लेकिन उनको कैसे मांगे! यह विचार करके एक वरदान मांगता है कि जिस किसी के सिर पर मैं हाथ रख दूं वह तुरन्त भस्म हो जाए और भगवान शिव तो ठहरे ही निपट भोले। प्रसन्नता में बोल दिया- तथास्तु!
मुकेश रंजन ने कहा श्रावन मास के प्रत्येक सोमवार को श्रावन सोमवार कहा जाता है। श्रद्धालु पवित्र जल से शिवलिंग को स्नान कराते हैं। फूल, मालाओं से मूर्ति या शिवलिंग को पूजते हैं। मंदिर में 24 घंटे दीप जलते रहते हैं। उत्तर भारत के विभिन्न प्रान्तों से इस महीने शिवभक्त गंगाजल लेने: यानी कांवड का पवित्र जल लेने हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी और गंगासागर की यात्रा पैदल करके श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को अपने क्षेत्र के शिवमन्दिर में शिवलिंग का अभिषेक करके पुण्य अर्जित करते हैं। कांवड लाकर रुद्राभिषेक करना बहुत ही कष्टसाध्य तप है जिसे देवगण, मानव, दानव सहित यक्ष किन्नर और साधुगण आदि काल से करते आ रहे हैं। शिव सभी के लिए वरदाता है जो जैसा मांगें उसे वैसी ही सम्पदा दे देते हैं। उन्होंने बताया श्रावण मास में आशुतोष भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हें सोमवार को शिव पूजा अवश्य करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए। सोमवार भगवान शंकर का प्रिय दिन है, अतः सोमवार को शिवाराधना करनी चाहिए। इसी प्रकार मासों में श्रावण मास भगवान शंकर को विशेष प्रिय है। श्रावणमास में प्रतिदिन शिवोपासना का विधान है। श्रावण में पार्थिव शिवपूजा का विशेष महत्त्व है। अतः इस महीने शिव पूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करना चाहिए।
इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ कराने का भी विधान है। श्रावणमास में जितने भी सोमवार पड़ते हैं, उन सब में शिवजी का व्रत किया जाता है। इस व्रत में प्रातः गंगा स्नान अथवा किसी पवित्र नदी या सरोवर में अथवा विधिपूर्वक घर पर ही स्नान करके शिवमन्दिर में जाकर स्थापित शिवलिंग या अपने घर में पार्थिव मूर्ति बनाकर यथाविधि षोडशोपचार-पूजन किया जाता है। यथासम्भव विद्वान ब्राह्मण से रुद्राभिषेक भी कराना चाहिए। इस व्रत में श्रावणमाहात्म्य और श्रीशिवमहापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्त्व है। पूजन के पश्चात् ब्राह्मण-भोजन कराकर एक बार ही भोजन करने का विधान है। भगवान शिव का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
शास्त्रों का कहना है कि समुद्र मंथन भी श्रावन मास में ही हुआ। इस मंथन मंज 14 प्रकार के तत्व निकले। इसमें जहर को छोड़ कर सभी 13 तत्वों को देवताओं और राक्षसों में वितरित किया गया। इन सभी तत्वों में से निकले जहर को भगवान् शिव पी गये और इसे अपने कंठ में संग्रह कर लिया। इस प्रकार इनका नाम नील कंठ पड़ा। इसके बाद देवताओं ने भगवान शिव को जहर के संताप से बचाने के लिए उन्हें गंगा जल अर्पित किया। इसके बाद से ही शिव भक्त श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।