मुख्यमंत्री ने सारागढ़ी के युद्ध की 124वीं वर्षगांठ के अवसर पर ऐतिहासिक युद्ध के शहीद सैनिकों को भेंट की श्रद्धाँजलि

चंडीगढ़/फिऱोज़पुर(द स्टैलर न्यूज़)। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आज सारागढ़ी के युद्ध की 123वीं वर्षगाँठ के अवसर पर इस ऐतिहासिक युद्ध के शहीद सैनिकों को श्रद्धा-सुमन भेंट किए। गुरुद्वारा सारागढ़ी में हुए राज्य स्तरीय शहीदी दिवस समारोह के दौरान वर्चुअल ढंग से नतमस्तक होने के उपरांत अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने समाना चोटी (अब पाकिस्तान का नॉर्थ वेस्ट फ्ऱंटियर इलाका है) के नज़दीक तैनात 36 सिख के 22 महान सैनिकों को याद किया, जिन्होंने 12 सितम्बर, 1897 को 10,000 अफगानों द्वारा किए गए हमले के बाद हुए घमासान युुद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। इसकी पृष्टभूमि संबंधी बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पठान क्षेत्रों में अशांति को दूर करने के लिए जनरल लॉकहार्ट द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना की चार टुकडिय़ाँ भेजी गईं। इनमें से 36वीं सिख बटालियन (अब चौथी सिख बटालियन) जिनमें 21 सिख सिपाही और एक रसोइया शामिल था, को सारागढ़ी की रक्षा करने का जिम्मा सौंपा गया था, जोकि लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान किले के दरमियान संचार के लिए एक निगरानी पोस्ट थी। 12 सितम्बर, 1897 की सुबह अफरीदी और ओरकज़ई कबीलों के पठानों ने बड़ी संख्या में सारागढ़ी पर हमला किया।

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कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने बताया कि पठानों की आत्मसमर्पण करने की माँगों को हवलदार ईशर सिंह ने ज़ोरदार ढंग से नकार दिया। फिर इस हमले को देखते हुए ईशर सिंह ने अपने उच्च अधिकारी कर्नल हौफ़टन को संकेत भेजा जिसने उनको अपनी कमान संभालने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि लड़ाई अर्ध दोपहर तक जारी रही और हर सिख सिपाही ने 400-500 गोलियाँ दाग़ीं। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि बड़ी संख्या में जनजातीय पठानों के कारण घेराबन्दी किए गए सैनिकों को सहायता भेजने के सभी यत्न असफल रहे। आखिर में सिपाही गुरमुख सिंह ने कर्नल हौफ़टन को आखिरी संकेत भेजा और लडऩे के लिए बंदूक उठा ली। किसी भी फ़ौजी ने आत्म-समर्पण नहीं किया और सभी शहीद हो गए। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि यह बहुत ही गर्व की बात है कि आज वॉल्वरहैम्प्टन (यू.के.) में हवलदार ईशर सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया जा रहा है। इस अवसर पर शहीदों को श्रद्धाँजलि भेंट करते हुए खेल एवं युवा मामलों के मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढी ने कहा कि इन सिख सैनिकों की शहादत को विश्व भर में मान्यता मिली है, यहाँ तक कि महारानी विक्टोरिया ने भी इसको मान्यता दी है और हरेक शहीद को उस समय के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (आई.ओ.एम.) से नवाज़ा गया, जोकि भारत के परमवीर चक्र के बराबर है।

राणा सोढी ने सारागढ़ी के बारे में एक पुस्तिका जारी करते हुए कहा कि इन सैनिकों के बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा। धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते हुए फिऱोज़पुर (शहरी) से विधायक परमिन्दर सिंह पिंकी ने माँग की कि वन की 2.5 एकड़ ज़मीन पर लंगर हॉल बनाया जाए, जिसके लिए मुख्यमंत्री ने मौके पर ही डिप्टी कमिश्नर को विस्तृत प्रस्ताव भेजने के लिए कहा। विधायक ने प्रधानमंत्री को सारागढ़ी गुरूद्वारे की उपयुक्त रखरखाव के लिए 11 करोड़ की सहायता देने की भी अपील की। इस अवसर पर बोलते हुए सारागढ़ी मेमोरियल मैनेजमेंट कमेटी के चेयरमैन और डिप्टी जनरल अफ़सर कमांडिंग-कम-स्टेशन कमांडर ब्रिगेडियर वी. मोहंती ने कहा कि यूनेस्को ने सारागढ़ी के युद्ध को दुनिया की आठ महान लड़ाइयों में शामिल किया था। उन्होंने यह भी बताया कि सारागढ़ी के युद्ध स्मारक सम्बन्धी विस्तृत प्रोजैक्ट रिपोर्ट तैयार है। इससे पहले गुरुद्वारा सारागढ़ी में श्री अखंड पाठ के भोग डाले गए, जिसके उपरांत गुरबानी कीर्तन किया गया। इसके बाद अरदास की गई और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी से हुकमनामा लिया गया। इस मौके पर शहीद सैनिकों के परिजनों और वीर नारियों का सम्मान भी किया गया। इस मौके पर अन्यों के अलावा डिप्टी कमिश्नर विनीत कुमार, महाराजा भुपिन्दर सिंह पंजाब स्पोट्र्स यूनिवर्सिटी के उप कुलपति लैफ्टिनैंट जनरल जे.एस. चीमा, मेजर जनरल सन्दीप सिंह, ब्रिगेडियर कंवलजीत चोपड़ा और कर्नल बलदेव चाहल भी उपस्थित थे।

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