शिक्षक दिवस पर विशेष: समाज में व्याप्त बुराईयों को समाप्त करती है उद्देश्यपूर्ण शिक्षा

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The Stellar News: भारत भूमि पर अनेक विभूतियों ने अपने ज्ञान के उजाले से हमारा जीवन रोषन किया है। उनका मानना था कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाये तो समाज में अनेक बुराईयों को मिटाया जा सकता है, क्योंकि व्यक्ति निर्माण एवं चरित्र निर्माण में शिक्षा का विषेष योगदान है। उन्हीं में से एक महान विभूति शिक्षाविद्, दार्शनिक, महान वक्ता एवं ज्ञान के सागर डा. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन जी के शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के चलते उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाना गौरव की बात है। समाज की कल्पना बिना शिक्षकों के अधूरी है और अच्छे शिक्षक समाज संरचना के लिये बेहद ज़रूरी हैं। शिक्षक सिर्फ वहीं नहीं जो किताबी ज्ञान दे बल्कि जीवन के हर पड़ाव पर अपने शिष्यों को सही राह दिखाना और गल्त राह पर जाने से रोकना भी शिक्षक के कर्तव्य हैं।

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समाज के वास्तविक शिल्पकार होते हैं शिक्षक

लेकिन बदलते समय के साथ गुरू व शिष्य की परिभाषायों के अस्तित्व ही धूमिल पडऩे लगे हैं। कभी शिष्यों ने गुरू की महिमा को खंडित किया तो कहीं कुछ गुरूओं ने अपनी ओछी हरकतों से गुरू समाज का तेज मलीन किया। शिक्षक के गंभीर दायित्व के लिये लोग सक्रिय और आकांक्षी हों, ऐसी व्यवस्था हमने बनाई ही नहीं है तो योग्य शिक्षक कहां से मिलेंगें?

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स्कूल, कालेज व डिग्रीज़ धड़ाधड़ बढ़ रही हैं लेकिन शैक्षणिक योग्यता लुप्त होती जा रही है। कविगुरू श्री रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि हम में से अनेक लोग जितनी शिक्षा पाते हैं, उतनी विद्या नहीं ग्रहण कर पाते। यानि कि न तो शिक्षा व बुद्धिमता में तालमेल है और न ही शिक्षा व देष के सिस्टम का सहज मिलन है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा प्रणाली के हालात इतने बदतर हो गये हैं और दुर्भाग्य कि इसके लिये उचित उपाय भी नहीं किये जा रहे। बल्कि दिन प्रतिदिन भ्रष्टाचार से प्रेरित मिलावट के दौर में हमारे देष की शिक्षा में भी कुशिक्षा की मिलावट बढ़ती जा रही है, नतीजन आज भारत में हम डिग्रीधारी मूर्ख तैयार कर रहे हैं। शिक्षा को व्यापार न बनाकर एक नैतिक व मौलिक जि़म्मेवारी समझाना अनिवार्य है। अपने ज्ञान की बोली लगाने की बजाय अपने नाम को रोषन करने की चाह जाग्रत करने की दरकार है। सरकार व शैक्षणिक संस्थानों को केवल परम्परागत शैक्षणिक योग्यताओं व डिग्रीयों के आधार पर चुने गये शिक्षकों में नैतिक व लीडरशिप स्किलज़ उभारने के लिये समय रहते उचित प्रयास किये जाना अति आवष्यक है।

कहा जाता है कि निष्क्रिय समाज सक्रिय दुर्जनों से खतरनाक है। श्रीकृष्ण द्वारा दी गई नैतिक मूल्यों एवं कर्म की नीति से विमुख आधुनिक शिक्षा प्रणाली निष्क्रिय बेरोजग़ार नौजवानों की फौज तैयार कर रही है।

सम्सत शिक्षकों को हम निम्न शब्दों से नमन करते हैं:
ज्ञानी के मुख से झरेए सदा ज्ञान की बात।
हर एक पांखुङी फूलए खुशबु की सौगात।।
जयहिन्द!

दुर्भाग्य है कि राजनीतिक व व्यावसायिक दबाव से प्रेरित इस माहौल में अधिकांश शिक्षक वर्ग निरीह और असहाय प्राणी सा विवश मूकदर्शक है। जिसके कारण समाज के सर्वाधिक प्रतिष्ठितव स्नेहिल वर्ग की हालत दयनीय व निन्दनीय बना दी गई है। राष्ट्रीय और प्रादेशिक सरकारें सीधे तौर पर दोषी हैं कि जिन्होंने शिक्षक समाज को अपने हितों की पूर्ति का साधन बना दिया है। उस पर वर्ष भर उपेक्षा और प्रताडऩा सहन कर के भी अपना फर्ज निभाने वाले स्वाभीमानी गुरूजनों को नजऱअन्दाज़ कर चमचों, चापलूसों व नाजायज़ दबदबे वाले शिक्षा के दलालों को 5 सितम्बर को सम्मान प्रदान करना तो ओर भी शर्मनाक है। क्योंकि शिक्षक दिवस एक गरिमामयी शख्स की याद में मनाया जाता है।

इस अन्धकार में आस का दीया जलाते हुये चलिये आज इस दिन हम सब तो अपने गुरूजनों को मान सहित याद करें और प्रण लें जहां तक सम्भव हो उनके दिखाये सदमार्ग पर चलकर उनकी शिक्षा नीतियों पर अमल करते हुये अपनी वर्तमान पीढ़ी के जीवन को सार्थक बनाने का यथासम्भव प्रयास करें। एक शिक्षाविद् होने के नाते इस शिक्षक दिवस पर समस्त शिक्षक वर्ग को सुनहरे भविष्य की मंगल कामनायें देने से पहले निवेदन करना चाहूंगी। आईये मिलकर प्रण लें कि अपनी युवा पीढ़ी के जीवन को संवारने व निखारने की दिशा में ठीक वैसे ही निस्वार्थ प्रयास करेंगें जैसे योगदान की अपेक्षा हम अपने बच्चों के शिक्षकों से करते हैं।

शुभेच्छायें…..
स्वीन सैनी, सर्टीफाइड लाइफ स्किलज़ कोच एवं स्टूडेंट काउन्सलर
नाईस कम्पयूटरज़, माल रोड, होशियारपुर

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