करवा चौथ व्रत: शुभ मुहूर्त, चांद निकलने का समय, पूजन विधि व व्रत कथा: पंडित श्याम ज्योतिषी 

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का खास महत्व है। यह व्रत सुहागिनों के लिए बेहद खास माना गया है। इस साल करवा चौथ व्रत 13 अक्टूबर, गुरुवार को रखा जाएगा। पंडित श्याम ज्योतिषी द्वारा कहा गया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस साल चतुर्थी तिथि 12 अक्टूबर को रात 01 बजकर 59 मिनट से प्रारंभ हो गई है, जो कि 14 अक्तूूबर को सुबह 03 बजकर 08 मिनट तक रहेगी।
करवा चौथ व्रत का महत्व-
करवा चौथ व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने वाला त्योहार माना गया है। इस दिन व्रत में भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा की जाती है। रात को चंद्रमा को अघ्र्य दिया जाता है। चंद्रमा को सुख, शांति व आयु कारक माना गया है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से वैवाहिक जीवन सुखद होता है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं। मान्यता है कि करवा चौथ व्रत करने से पति को लंबी आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन कहीं-कहीं सुबह-सुबह सरगी खाने का भी विधान है। इसके बाद दोपहर को पूजा की जाती है और रात को चंद्रमा को अघ्र्य दिया जाता है।
करवा चौथ पूजा विधि-

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सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
स्नान करने के बाद मंदिर की साफ- सफाई कर ज्योत जलाएं।
देवी- देवताओं की पूजा- अर्चना करें।
निर्जला व्रत का संकल्प लें।
इस पावन दिन शिव परिवार की पूजा- अर्चना की जाती है।
सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
माता पार्वती, भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय की पूजा करें।
करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा की जाती है।
चंद्र दर्शन के बाद पति को छलनी से देखें।
इसके बाद पति द्वारा पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तोड़ा जाता है।

करवा चौथ व्रत कथा
एक साहूकार के सात लडक़े और एक लडक़ी थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहकार के लडक़े भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अघर््य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। उसे देख कर करवा उसे अघर््य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।
उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ लेकिन हर कोई मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नये जीवन का आर्शिवाद मिलता है। इसी कथा को कुछ अलग तरह से सभी व्रत करने वाली महिलाएं पढ़ती और सुनती हैं।
दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, जयपुर व होशियारपुर में इस वक्त दिखेगा चांद
करवाचौथ के चांद के दीदार का सबको इंतजार रहता है। अब बात करें दिल्ली की तो दिल्ली में चांद आठ बजकर नौ मिनट पर दिखेगा, इसी तरह से मुंबई में चांद आठ बजकर 48 मिनट पर दिखेगा। जयपुर में करवा चौथ का चांद आठ बजकर 18 मिनट पर दिखेगा। होशियारपुर में चांद आठ बजकर नौ मिनट पर तो चंडीगढ़ में चांद के दीदार आठ बजकर छह मिनट पर होंगे।

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