अमृतसर (द स्टैलर न्यूज़): भाजपा की वरिष्ठ नेत्री लक्ष्मीकांता चावला ने मुख्यमंत्री भगवंत मान एवं डीजीपी गौरव यादव के नाम पत्र में लिखा है कि आप दोनों के ध्यान में बार-बार यह ला चुकी हूं कि आतंकवाद से लड़ने वाले जो पुलिस कर्मी शहीद हो गए उनके परिवारों को तो आपने जिंदगी जीने के साधन दे दिए, पर जो पुलिस कर्मचारी आतंकवाद से लड़ते हुए अदालतों के मुकदमों में फंस गए, जेलों में बंद हैं, जमानत पर हैं या पैरोल पर आकर मुकदमे लड़ रहे हैं उनकी सरकार ने कोई सहायता नहीं की, ऐसी मेरी जानकारी है। वर्षों से वे लोग अदालतों के दरवाजे पर धक्के खा रहे हैं। वकीलों के लिए पैसे का प्रबंध भी करते हैं। जेलों में भी बंद हैं। कृृपया समय निकालकर आतंकवाद पीड़ित सभी पुलिस कर्मचारियों और उनके परिवारों को बुलाइए और उनकी तकलीफें सुनें, सहायता करें। उसी प्रकार जिस प्रकार आतंकवाद के दिनों में की जाती थी। सरकार यह तो बताए कि हमारे कितने कर्मचारी जेलों में बंद और मुकदमे भुगत रहे हैं। उनके परिवारों की स्थिति बहुत शोचनीय है और उन जवानों की भी जो लड़ाई लड़ते—लड़ते बूढ़े हो रहे हैं। परेशान और निराश भी हैं।
इसके साथ ही बहुत से ऐसे युवक—युवतियां हैं जो अब अधेड़ावस्था में पहुंच गए। उनके परिजनों को आतंकवादियों ने मारा था। उन्हें केवल सिपाही भर्ती किया गया, जो बीस बीस साल की नौकरी के बाद भी सिपाही बने हैं उन्हें रैंक भी नहीं दिया गया। होना तो यह चाहिए था कि ऐसे कर्मचारियों को विशेष उन्नति दी जाती। जो नेता चार दशक पहले भी आतंकवादियों ने मारे, उनके परिजनों को तो डीएसपी बना दिया, अफसर बना दिया पर जिनके परिवार के सभी पुरुष मार दिए गए वे आज तक सिपाही बनकर ही मजबूरी और बेबसी में जी रहे हैं। कृपया ऐसे परिवारों को भी राहत दें। अगर नेता का पोता सीधे डीएसपी बन सकता है तो उन बेचारों के बच्चों को इंस्पेक्टर तो बना दीजिए, जिनके पिता, भाई, ताया, चाचा सब आतंकियों ने मार दिए। देर से ही सही उनकी सहायता करें।
गौरव यादव जी आपने तो आतंकवाद के दिन देखे हैं। अवश्य ही उन जवानों की मजबूरी समझेंगे और उन परिवारों की भी जिनके प्रियजन गोलियों से भून दिए गए। एक बार फिर आशा रखती हूं कि सारी व्यस्तता में भी मेरे पत्र पर ध्यान देंगे।