भक्ति से ही प्रभु परमात्मा के साथ गहरा नाता बन सकता है: निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। भक्ति से ही प्रभु परमात्मा के साथ गहरा नाता बन जाता है।यह उदगार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने स्थानीय निरंकारी सत्संग भवन खानकोट में हुए विशाल सन्त समागम के दौरान हजारों की गिनती में पहुंचे श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए कहे।उन्होंने कहा कि भक्त केवल भक्ति ही मांगते हैं। भक्त भक्ति कोई शारीरिक सुख या भौतिक सुखों को बढ़ाने की मांग के लिए नहीं करते हैं। भक्त सारे संसार के लिए सुख मांगते हैं। वे यह भी मांग करते हैं कि हर एक को इस निरंकार प्रभु परमात्मा की जानकारी प्राप्त हो, जिससे सबका जीवन स्थिर, लालसा रहित और प्रीत प्यार वाला बन सके। उन्होंने “हाथ काम की ओर, और दिल निरंकार से जोडऩे” की बात को विस्तृत करते हुए कहा कि हमें रोजमर्रा की जिंदगी में हर कार्य को करते हुए निरंकार को समर्पित करने के भाव को अपनाना है।

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उन्होंने कहा कि भक्त चेतन रहते हुए भक्ति करें क्योंकि वे गृहस्थ, परिवार, समाज में संसार में रहकर अपने फर्ज निभाते हैं। परमात्मा को जानने के लिए अंधविश्वास की कोई जगह नहीं होती, इसलिए भक्त इसकी हर रचना को शुभ मानते हैं जिसके चलते वे ब्रह्मज्ञान को जीते जी अपनाते हैं और भ्रमों से मुक्त हो जाते हैं। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने आगे फरमाया कि ब्रहमज्ञान इंसान को जीते जी भ्रमों से मुक्त करता है। उन्होंने कहा कि हमारे मन का नाता जब इस परमात्मा से इकमिक हो जाता है तो भक्ति दृढ़ हो जाती है। तत्पश्चात भक्ति किसी लालसा के लिए नहीं की जाती। उन्होंने आगे फरमाया कि सत्संग में आकर ही हमारे मन के भाव सकारात्मक हो जाते हैं। इस वर्ष 75 वे निरंकारी संत समागम के मुख्य विषय “इंसानियत और रूहानियत संग संग” में नियत समान भाव को प्रकट करता है। जिसका भाव है कि मन का नाता जब इस प्रभु परमात्मा से जुड़ जाता है तो हमारे इंसानी जीवन के सभी भाव सकारात्मक बन जाते हैं। उन्होंने आगे फरमाया की सेवा सिमरन सत्संग के तीनों पहलुओं से मन निरंकार से जुड़ा रहता है। सेवा का भाव आए तो सेवा की जा सकती है। सत्संग के साथ सन्तमति को अपनाया जा सकता है। निंदा, नफरत को छोडक़र सत्संग से अच्छे गुण प्राप्त होते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि ब्रहमज्ञान प्राप्त करने के उपरांत बेशक जीवन में कोई भी दुख आए, परंतु उस दुख के प्रति एहसास बदल जाता है कि परमात्माजो भी कर रहा है बिल्कुल अच्छे के लिए ही कर रहा है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि बेशक हम किसी महल में रहते हो या झोपड़ी में कैसी भी परिस्थिति हो प्रत्येक परिस्थिति में शुक्राने का भाव बना रहता है। कोई शिकवा शिकायत के भाव नहीं रहते, जिसके कारण हमारा जीवन संसार के लिए वरदान बन जाता है। सतगुरु माता जी के प्रवचनों से पूर्व निरंकारी राजपिता रमित जी ने फरमाया कि जिस प्रकार से युगो युगो से सभी संतो भक्तों ने समझाया कि इंसान द्वारा बनाई नफरत की दीवारें सिर्फ ब्रहमज्ञान के द्वारा ही मिट सकती है। भौतिक दीवारों को तो सांसारिक वस्तुओं के साथ तोड़ा जा सकता है,परंतु अज्ञानता एवं नफरत की दीवारें ब्रहमज्ञान की रौशनी के द्वारा ही मिटाई जा सकती हैं। इस अवसर पर एच एस चावला जी, मेंबर इंचार्ज ब्रांचे तथा राकेश सेठी, जोनल इंचार्ज अमृतसर ने अपनी साध संगत की और से सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी का अमृतसर में पहुंचने पर आभार प्रकट किया। उन्होंने स्थानीय पुलिस प्रशासन, सिविल प्रशासन, राजनीतिक सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं के भरपूर सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद किया।

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