सराहनीय: टौणी देवी स्कूल ने पेश की पानी सहेजने की नई मिसाल

हमीरपुर (द स्टैलर न्यूज़), रजनीश शर्मा। हिमाचल प्रदेश को प्रकृति  ने जिन भरपूर  संसाधनों से नवाजा है उनमें सबसे अमूल्य उपहार  प्राकृतिक जलस्रोत हैं। प्रदेश में बहने वाली नदियों, खड्डों व प्राकृतिक जलस्रोतों के पानी से हिमाचल के साथ साथ  पड़ोसी राज्यों की पेयजल सहित सिंचाई की जरूरत भी पूरी हो रही है। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में हम अपने  पारंपरिक जलस्रोतों को अनदेखा करते जा रहे हैं जिससे जल संपदा के धनी राज्य हिमाचल को भी पेयजल की किल्लत से जूझना पड़ रहा  है। इसी कड़ी में स्वर्ण  जयंती राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला ( उत्कृष्ट) टौणी देवी के प्रधानाचार्य रजनीश रांगड़ा ने पाठशाला के एक बहुत पुराने विवाद जिसमें एक खातरी को शौचालय  के लिए सेप्टिक टैंक की तरह जोड़ दिया गया था को नयी लाइन के साथ जोड़ते हुए इस परम्परागत स्त्रोत को  सहेजने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जिसकी सराहना हर इलाका वासी कर रहा है। अब  परम्परागत जल स्त्रोत को  संवार और सफाई करवा कर नया रूप दिया गया है। सारी गंदगी को संजीदगी से सावधानी पूर्ण साफ कर पुराने जल स्त्रोत को नव जीवन प्रदान करने की साइड स्टोरी भी अत्यंत मार्मिक है। 

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क्यों जरूरत पड़ी जलस्त्रोत को संवारने की 

 हमारे पूर्वजों द्वारा पेयजल संग्रहण  के लिए बावडिय़ां, खातरियां ,कुएं व तालाब आदि बना कर न केवल  इंसानों की जरूरतों को पूरा किया अपितु  पशु-पक्षी तथा जंगली जानवरों को भी इन्हीं जल संसाधनों  से पानी के माध्यम से उनके  सूखे हलकों को  तर किया ।  विनाश को अंजाम देने वाले जबरन विकास की आंधी में मशीनीकरण के प्रहारों से भूमिगत उद्योगों व आग उगल रही फैक्टरियों से उत्पन्न जहरनुमा प्रदूषण से नदियों, खड्डों व प्राकृतिक जलस्रोतों का पानी दूषित हो चुका है। सैकड़ों सरकारी हैंडपंप व पेयजल परियोजनाएं दम तोड़ रही हैं। अत: पहाड़ों में बसे सैकड़ों गांवों की पेयजल आपूर्ति का जरिया पुन: प्राकृतिक जलस्रोत ही बनेंगे।

खातरी ही सूखे में बनती थी सहारा

हमीरपुर जिला के बमसन, लगवालती तथा मंडी जिला के धर्मपुर क्षेत्र में जब गर्मियों में सूखे के कारण सभी जल स्त्रोत सूख जाते थे , तब ये खातरियां ही जीवन का सहारा बनती थीं। यहां  पहाड़ी को खोद कर उसमें गुफानुमा बड़ा गढ्डा तैयार करके बारिश के पानी को सहेज कर रखने व उसे प्रयोग में लाने की परंपरा रही है। प्रदेश के कई क्षेत्रों में ऐसे स्रोतों, जिन्हें स्थानीय भाषा में खातरी कहा जाता है को पुनर्जीवित किया जाने लगा है। खातरी के पानी को आज भी दूसरे सभी पेयजलों से ज्यादा शुद्ध व पीने लायक माना जाता है। यह खातरी कई फुट लंबी और गहरी होती थी। इसे छेनी और हथौड़े से पहाड़ी खोदकर बनाने में वर्षों लग जाते थे। जब यह खातरी बनकर तैयार हो जाती थी तो इसमें वर्षा जल का संग्रहण किया जाता था। बारी क्षेत्र निवासी बलवंत  चौहान  बताते हैं कि बमसन  क्षेत्र में कहावत प्रचलित रही  है कि गंगा का पानी खराब हो सकता है लेकिन खातरी का पानी नहीं, क्योंकि यह पानी पूरी तरह से फिल्टर होकर आता है। 

खातरियों की अनदेखी का यह है कारण

खातरी में जमा पानी का वर्ष भर बिना किसी डर से इस्तेमाल किया जा सकता था। लेकिन आज सरकार द्वारा किये गए प्रयासों के कारण घर-घर तक पानी पहुंचने से जहाँ पेय जल  की समस्या हल हुई है लेकिन  खातरियों इत्यादि का इस्तेमाल काफी कम हो गया है। यही कारण है कि आज ये स्त्रोत  अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे  हैं। इनका वजूद बचाने में समाज के साथ शासन व प्रशासन भी  संजीदगी दिखा रहा है। टौणी देवी स्कूल  के प्रधानाचार्य रजनीश रांगड़ा का कहना है कि जल संग्रहण में खातरियों से बड़ा और कोई विकल्प नहीं, इसलिए इन्हें हर हाल में पुनर्जीवित करना है, ताकि भविष्य में जरूरत पड़े तो इनके पानी का भी इस्तेमाल किया जा सके। इसी के मद्देनजर पाठशाला प्रबंधन समिति, अभिभावकों और समाज के सहयोग से वे इस कार्य को अंजाम दे पायें हैं।

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