जम्मू/पुंछ (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट-अनिल भारद्वाज: जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिला में प्राचीन परंपरा के अनुसार रक्षाबंधन के दो दिन पहले पुंछ नगर स्थित दशनामी अखाड़ा मंदिर से भगवान शंकर के प्राचीन धाम बुड्ढा अमरनाथ के लिए पवित्र छड़ी मुबारक यात्रा निकाली गई। पीठाधीश्वर राजगुरु महामंडलेश्वर 1008 स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती की अगुवाई में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के बीच जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों द्वारा सलामी के बाद छड़ी को श्री बुड्ढा अमरनाथ मंदिर के लिए रवाना किया गया। सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार पवित्र छड़ी की दशनामी अखाड़ा मंदिर में वैदिक मंत्रों के साथ पूजन के बाद बुड्ढा अमर नाथ जी की पवित्र छड़ी मुबारक यात्रा निकाली गई, जिसमें जम्मू-पुंछ निर्वाचन क्षेत्र के माननीय संसद सदस्य जुगल किशोर शर्मा, डीसी पुंछ यासीन चौधरी, जम्मू कश्मीर पुलिस के डीआइजी राजौरी-पुंछ रेंज डॉ. हसीब मुगल, जिला पुलिस चीफ विनय कुमार शर्मा, अतिरिक्त उपायुक्त ताहिर मुस्तफा मलिक, पूर्व विधायक और कई अन्य गणमान्य लोग संत महात्मा देश के कोने कोने से आए भक्तजन उपस्थित थे।
एक भव्य धार्मिक सभा भी आयोजित की गई, जहां स्वामी जी और अन्य गणमान्य लोगों ने क्षेत्र में सांप्रदायिक सद्भाव, भाईचारे और शांति पर ज्ञानवर्धक संदेश दिया। छड़ी मुबारक यात्रा 23 किलोमीटर की दूरी तक फैली हुई थी जिसमें तीर्थयात्रियों ने स्थानीय लोगों द्वारा व्यवस्थित विभिन्न स्टालों पर रुककर भोजन और जलपान प्रदान भी किया। भोले बाबा के जयघोष से सीमावर्ती क्षेत्र गूंज रहा था। 18 अगस्त से चली आ रही वार्षिक यात्रा की सुरक्षा के लिए जगह जगह पुलिस, सीआरपीएफ, सेना जवान तैनात थे। छड़ी यात्रा में अतिरिक्त बल तैनात किए गए थे। पवित्र छड़ी मंडी तहसील के राजपुरा गांव में स्थित भगवान भोले नाथ के प्राचीन धाम बुड्ढा अमरनाथ मंदिर पहुंची, जहां पर एक बार फिर पुलिस की तरफ से छड़ी मुबारक को सलामी दी गई। उसके बाद वैदिक मंत्रों के बीच छड़ी मुबारक को भगवान भोले नाथ के स्वंयभू शिवलिग पर स्थापित कर दिया गया। बाबा बुड्ढा अमरनाथ के दर्शन करने वाले श्रद्धालु पवित्र छड़ी के दर्शन भी करेंगे और रक्षाबंधन के अगले दिन पवित्र छड़ी को वापस दशनामी अखाड़ा पुंछ में लाया जाएगा।
भारत-पाक नियंत्रण सीमा रेखा के साथ सटे भारतीय क्षेत्र (पीरपंजाल पहाड़) हिमालय में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह वह स्थान माना जाता है जहां लंका के राजा रावण के दादा ऋषि पुलत्स्य कई दशकों तक पूजा में लगे रहे थे। पीर पंजाल (हिमालय) के लोरन-मंडी पहाड़ों से पुंछ तक बहने वाली पुलस्त नदी का नाम इस श्रद्धेय संत के नाम पर पड़ा है।