राष्ट्रपिता नहीं थे बल्कि
देश के सच्चे देश-भक्त थे वो
जनता के सेवक नहीं थे बल्कि
गोरों के लिए तूफान थे वो
अहिंसा के पुजारी नहीं थे बल्कि
जनता के लिए आदर्श थे वो
वकील नहीं थे बल्कि
न्याय की मूर्ति थे वो
करो या मरो का नारा नहीं लगाते थे बल्कि
हिन्दुस्तान के लिए मर मिटे थे वो
चरखा नहीं चलाते थे बल्कि
देशवासियों को खादी का पाठ पढ़ाते थे वो
विदेशी वस्तुओं को दूर भगाते थे वो
नेता ही नहीं थे देश के बल्कि
हम सबके बापू कहलाते थे वो
मधूर वाणी नहीं बोलते थे बल्कि
अपनी दांडी यात्रा शुरू कर हिला दी थी अंग्रेजी की सत्ता की नींव, महात्मा पिता गांधी थे वो
नविता राजपूत
होशियारपुर
महात्मा गांधी…….
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