हमीरपुर (द स्टैलर न्यूज़), रजनीश शर्मा । प्राचीन कलाओं की कद्र आधुनिक युग में धीरे धीरे लुप्त हो रही है। कलाकार गांव गांव, घर घर भटक रहे है। बहुरूप धारण करने की कला बहुत पुरानी है। राजाओं-महराजाओं के समय बहुरूपिया कलाकारों को हुकूमतों का सहारा मिलता था. लेकिन अब ये कलाकार और कला दोनों मुश्किल में है। इन कलाकारों का कहना है कि लिहाजा बहरूपियों की कद्र कम हो गई है। । पूरे देश में कोई दो लाख लोग हैं जो इस कला के ज़रिए अपनी रोज़ी-रोटी चलाते हैं।
राजस्थान के सीकर के दलीप को ये फ़न अपने पुरखों से विरासत में मिला है। बहुरुपिया दलीप ने बताया कि “हमें पुरखों ने बताया कि बहरूपिया बहुत ही ईमानदारी की कला होती है। राजाओं के दौर में हमारी बड़ी इज़्जत थी। अब रोजी रोटी पर संकट पैदा हो गया है। आने वाली पीढ़ियां भी इस कला से दूर होती जा रही है। सरकार इस कला को लुप्त होने से बचाने के लिए संरक्षण की जरूरत है। जिससे यह कला व कलाकार दोनों बच सके। बहुरुपियों को स्थानीय पुलिस स्टेशन, पुलिस चौकी और फिर ग्राम पंचायत प्रधान से परमिशन लेकर फील्ड में अपनी कला का प्रदर्शन करने उतरना पड़ता है। दलीप इन दिनों टौणी देवी क्षेत्र में नारद मुनि, लंकापति नरेश और नशेड़ी के रूप में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका समाज को संदेश है कि नशे से दूर रहें, नशा समाज को तबाह कर रहा है। नशा त्याग , देश के लिए कार्य करना सबसे बड़ा धर्म है।