एक तरफ परीक्षा तो दूसरी तरफ नेचर फैस्टः आंखें मूंद कर वाह-वाही में जुटे अधिकारी और सत्ताधारी

मार्च एवं अप्रैल माह शिक्षा जगत के लिए बहुत ही अहम माने जाते हैं। क्योंकि यह दिन बच्चों की परीक्षा के दिन होते हैं तथा एेसे में जहां धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रमों में स्पीकर की आवाज को कम रखने संबंधी अपीलें की जाती हैं तथा बच्चों का घूमना फिरना एवं अन्य खेल आदि जैसी गतिविधियां लगभग बंद हो जाती हैं तथा हर अभिभावक यह सोचता है कि उनका बच्चा परीक्षा में अच्छे अंक लेकर पास हो और ताकि आगे की कक्षा में उसे दाखिला लेते समय कोई परेशानी न हो। इसिलए घरों में भी वातावरण काफी शांत प्रदान करने के प्रयास अभिभावकों के रहते हैं। इतना ही नहीं जिला प्रशासन द्वारा भी परीक्षा केन्द्रों के आसपास धारा 144 लगा दी जाती है ताकि बच्चों की परीक्षा में कोई खलल न पड़े।

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लेकिन हैरानी की बात है कि बच्चों की परीक्षा के दिनों में सरकार की तरफ से होशियारपुर में 5 दिवसीय होशियारपुर नेचर फैस्ट की शुरुआत करवा दी जाती है तथा उसमें उपलब्ध गतिविधियों संबंधी जोरशोर से प्रचार भी किया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि एेसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी कि सरकार को बच्चों की परीक्षा के दिनों में मेला करवाना जरुरी था। जबकि एेसे इवेंट फ्री दिनों में भी करवाए जा सकते हैं। चर्चा है कि एक तरफ आपकी सरकार आपके द्वारा के कैंप लगाकर लोगों से किए वायदे के तहत लोगों के दिन में उतरने की तैयारी में सत्ताधारी पार्टी द्वारा पूरा जोर लगाया जा रहा है तो दूसरी तरफ एेसे कार्यक्रमों के माध्यम से जनता का मनोरंजन के माध्यम से ध्यान खींचने की कोशिश की जा रही है। जबकि कैंपों की सच्चाई देखी जाए तो मामला पूरी तरह से उलझा हुआ ही दिखाई देता है, क्योंकि कैंपों में ज्यादातर काम नीले कार्डों एवं सुविधा सेंटरों से जुड़ा आ रहा है तथा छोटे मोटे कार्यों के अलावा कैंपों में नीले कार्ड नहीं बनाए जा रहे व उनकी जगह पर सिर्फ एक कापी पर जानकारी नोट करके लेगों को दिलासा दिया जा रहा है, जबकि नीले कार्ड बनाने वाला पोर्टल बंद पड़ा है, जिसकी पुष्टि अधिकारी कर चुके हैं। एेसे में परीक्षा के दिनों में नेचर फेस्ट करवाकर न जाने सरकार व अधिकारी जनता का कौन सा भला करने वाले हैं इसका जवाब तो वही दे सकते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि एेसे आयोजन जहां सांस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा देते हैं तथा इस बार भी उमदा प्रयासों के साथ मेला करवाया जा रहा है। परन्तु सवाल यह है कि शिक्षा के नजरीये से यह माह बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि बोर्ड परीक्षा के अलावा उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे जेईई व नीट जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। अब एेसा मेला लगाए जाने से स्वभाविक सी बात है कि बच्चे अभिभावकों से वहां जाने की जिद्द करेंगे तथा अब एक बार मेले में गए तो 2-3 घंटे वहां पर लगने तो आम आत है।

सवाल यह भी है कि शिक्षा की दृष्टि से महतुवपूर्ण इन दिनों में जहां उनका एक-एक मिनट कीमती होता है और वह अपने 2-3 घंटे वहां बिताते हैं तो एेसे में उनकी शिक्षा का होने वाले नुकसान की जिम्मेदारी किसकी होगी, शायद इसका जवाब किसी के पास नहीं होगा। लेकिन इतना जरुर है कि नंबर गेम के चलते अधिकारी और सत्ताधारी चुप्पी साधे कोरी वाहवाही लूटने में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें अपने हाथों बच्चों के खराब हो रहे भविष्य की कोई चिंता नहीं है। उन्हें तो सिर्फ वाहवाह से है, भले ही उसका नतीजा कुछ भी हो।

चर्चा यह भी है कि जब पुरानी सरकारें एेसे कार्यक्रम करवाती थीं तो इसका खर्च जनतक करने की मांग उठती रही है तथा अब सवाल यह है कि क्या इस सरकार में जनता उम्मीद कर सकती है कि मेले के बाद आय और व्याय तथा सपांसरों से क्या क्या आया व कितना आया की जानकारी सार्वजनिक की जाएगी य़ा फिर गोलमाल है सब गोलमाल है. . गीत की पंक्तियां चरितार्थ होती हुई नज़र आएंगी। अब दें आज्ञा आप सभी मुझसे ज्यादा समझदार हैं। जय राम जी की।

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