गोविंद गौधाम गौशाला में श्री मदभागवत कथा का आयोजन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। श्री राधा गोविंद स्नेह मंदिर, आदमवाल रोड होशियारपुर  की ओर से गोविंद गौधाम गौशाला में श्री मदभागवत कथा का आयोजन किया गया l कथा के प्रथम दिवस पर सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री गौरी भारती जी ने श्रीमद्भागवत कथा का माहात्म्य बताते हुए कहा कि वेदों का सार युगों-युगों से मानव जाति तक पहुँचता रहा है। ‘भागवत महापुराण’ यह उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है। इसीलिए भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा गया है। साध्वी जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है, श्री अर्थात् चैतन्य, सौन्दर्य, ऐश्वर्य। ‘भगवत: प्रोक्तम् इति भागवत।’ भाव कि वो वाणी, वो कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है। जो हमारे जीवन को सुन्दर बनाती है वो श्रीमद्भागवत कथा है जो सिर्फ मृत्युलोक में संभव है।श्रीमद्भागवती कथा वार्ता: सुराणामपि दुर्लभा। साध्वी जी ने कथा कहते हुए यह बताया कि यह एक ऐसी अमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए परीक्षित ने स्वर्गामृत की बजाए कथामृत की ही मांग की। इस स्वर्गामृत का पान करने से पुण्यों का तो क्षय होता है पापों का नहीं।

Advertisements

किन्तु कथामृत का पान करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है। कथा के दौरान उन्होंने वृन्दावन का अर्थ बताते हुए कहा कि वृन्दावन इंसान का मन है। कभी-कभी इंसान के मन में भक्ति जागृत होती है। परन्तु वह जागृति स्थाई नहीं होती। इसका कारण यह है कि हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं पर हमारे अंदर वैराग्य व प्रेम नहीं होता है। इसलिए वृन्दावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुणी हो गई पर उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं। उनमें जीवन्तता और चैतन्यता का संचार करने हेतु नारद जी ने भागवत कथा का ही अनुष्ठान किया। जिसको श्रवण कर वे पुन: जीवन्त और सबल हो उठे क्योंकि व्यास जी कहते हैं कि भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भाँति है जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है, वह उसे मनोवांछित फल देती है और यह निर्णय हमारे हाथों में है कि हम संसार की माँग करते हैं या करतार की। श्रीमद्भागवतेनैव भक्ति मुक्ति करे स्थिते।।’अर्थात् अगर भक्ति चाहिए तो भक्ति मिलेगी, मुक्ति चाहिए तो मुक्ति मिलेगी।

परीक्षित प्रसंग  करते हुए उन्होंने बताया कि यह मानव देह कल्याणकारी है जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह मिलन ही उत्थान है। राजा परीक्षित जीवात्मा का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य मोह, आसक्ति के बंधनों को तोड़, उस परम तत्व से मिलना है। यूँ तो ऐसी कई गाथाएं, कथाएं हम अनेकों व्रत व त्योहारों पर भी श्रवण करते हैं, लेकिन कथा का श्रवण करने या पढऩे मात्र से कल्याण नहीं होता। अर्थात् जब तक इनसे प्राप्त होने वाली शिक्षा को हम अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर लेते, तब तक कल्याण संभव नहीं। इस अवसर पर राकेश मरवाहा, वरिंदर नंदा, हरीश शर्मा, परवीन मनकोटिया, राकेश मनकोटिया, राम यादवके. डी. महिंद्रू,पंडित प्रियवर्त शास्त्री, कुलदीप सैनी गप्पा मोहिन्दर पाल, शिव गुप्ता कर्ण शर्मा, एस एस महिंद्रू, पुनीत गर्ग, अरुण पंडित, रिंकु पंडित, निखिल पंडितहनीश गुप्ता, सुमन शर्मा रजनी शर्मा, मनीषा शर्मा, सोनिया शर्मा, ममता गुप्ता व भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here