होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा शिव मंदिर प्रगति नगर नजदीक डी.ए.वी.कॉलेज होशियारपुर में तीन दिवसीय भगवान शिव कथा का आयोजन किया गया। कथा के अंतिम दिवस में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री श्वेता भारती जी ने शिव विवाह का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि भगवान शिव का यह अद्भुत श्रृंगार रहस्यात्मक है। उनके स्वरूप का एक-एक पक्ष शिक्षाप्रद है। प्रत्येक वस्त्रालंकार एक संकेत है शवत्व से शिवत्व की ओर बढऩे का। भगवान शिव की बिखरी हुई जटाएं हमारे बिखरे मन का प्रतीक है। जिस प्रकार भगवान शिव ने जटाओं को समेट कर उनका मुकुट बनाया है उसी प्रकार आवश्यक है कि हम अपने मन को संसार के विकारों से हटाकर प्रभु में लगाएं। मनुष्य के भीतर जो विकार हैं उसका कारण भी मन है। जब तक इंसान का मन विकसित नहीं हुआ तब तक वह किसी समाधान का अंग नहीं बन सकता। यदि समाज में परिवर्तन लाना है तो सबसे पहले व्यक्ति की चेतना और अंतर मन में परिवर्तन लाना होगा। अध्यात्म द्वारा उसे जागृत करना होगा। जैसे एक डाल काट देने से वृृक्ष नहीं मरता डाल पुन: उग जाती है। वृक्ष का प्राण जड़ है। जड़ को खत्म करने पर ही वृक्ष नष्ट हो सकता है। इसी तरह समाज में पनप रही हर कुरीति,बुराई ,हिंसा की जड़ मन है।
इस मन रूपी जड़ को परिवर्तित करने पर ही समाज में परिवर्तन संभव है और यह परिवर्तन केवल ब्रहम ज्ञान द्वारा ही आ सकता है। भगवान शिव के तन पर लगी भस्म मानव तन की नश्वरता की ओर संकेत है गले में धारण किए सर्प काल का प्रतीक है । साध्वी जी ने बताया कि केवल शिव ही त्रिनेत्रधारी नहीं है उनके स्वरूप का यह पक्ष प्राणीमात्र को एक गूढ़ आध्यात्मिक संदेश देता है। वह यह कि हर मनुष्य त्रिनेत्रधारी है। हमारी 5ृाकुटी के मध्य वह तीसरा नेत्र है जो बंद पड़ा है परतु पूर्ण संत मस्तक पर अपना वरद- हस्त रखते है तो वह नेत्र खुल जाता है इन्सान के मध्य वह तीसरा नेत्र है जो बंद पड़ा है परतु पूर्ण संत मस्तक पर अपना वरद-हस्त रखते है तो वह नेत्र खुल जाता है इन्सान अपने भीतर शिव के ज्योति स्वरूप का साक्षात्कार करता है।
उन्होंने बताया कि जब भगवान शिव बारात लेकर चलते हैं तो बैल पर सवार हुए। बैल साक्षात् धर्म का प्रतीक है। वह हमें बताना चाहते है कि हर इंसान को अपना कार्य धर्म में स्थित होकर करना चाहिए । परंतु आज वास्तविक धर्म को न जानने के कारण मानव समाज दानवों का समाज बन गया है। चारों ओर भ्रष्टाचार,अश्लीलता, दहेज प्रथा,कन्या भ्रूण हत्या,वासना,नशा इत्यादि कुरीतियां फै ल रहीं हैं। यदि समाज को देवतुल्य बनाना है तो प्रत्येक इंसान को धर्म में स्थित होना पड़ेगा। धर्म भाव उस ईश्वर को जानना । परमात्मा की अनुभूति अपने घट के भीतर कर लेना। उन्होंने बताया कि मानव जीवन शिव व पार्वती के मिलन का एक दुर्लभ अवसर है। शिव भाव परमात्मा तथा पार्वती अर्थात् आत्मा। मननशील प्राणी होते हुए भी वह तत्व पर विचार ही नहीं करता जिस पर मनन करके उसे जीवन का लक्ष्य मिल सकता है। सारे संसार का ज्ञान रखने वाला आदमी शिव व पार्वती के रहस्य से अपरिचित है। यही हालत हिमाचल में हिमवान व मैंना की थी। अपने ही बेटी के रूप में साक्षात् श1ित तथा द्वार पर बड़े भगवान भोलेनाथ को वह पहचान ही न पाए।
लेकिन जब उनको नारद जी ने आकर वास्विकता का बोध करवाया तो वह सत्य से परिचित हो पाये। मानव भी आज अपने ही भीतर बैठे परमात्मा को न जानने से दु:खी व अशांत है। क्योंकि यह सृष्टि का अटल नियम है कि जिसे भी परमात्मा रूपी रहस्य की पुष्टि हुई, उसके जीवन में पहले पूर्ण गुरू का आगमन हुआ। गुरू की पहचान बताते हुए साध्वी जी ने कहा कि गुरू शब्द दो शब्दों के मिलाप से बना है। ‘गु’ ‘रू’। ‘गु’ भाव अधंकार और ‘रू’ भाव प्रकाश। जो मानव के अंत:करण में व्याप्त अंधकार व ईश्वर संबंधी संदेहों को प्रकाश व आत्मज्ञान के माध्यम से तिरोहित कर दे वही पूर्ण व ब्रह्यनिष्ठ गुरू है।
अंत में साध्वी बहनों ने सुमधुर भजनों के गायन से उपस्थित प्रेमियों को आनन्द विभोर किया। कथा का समापन विधिवत प्रभु की पावन आरती से किया गया।