-पंजाब में आप के बढ़ते ग्राफ पर भारी पड़ रही पार्टी के भीतरी भ्रष्टाचार, नशाखोरी और लच्चरता के आरोपों की गठड़ी – दूसरों पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग करने वाले केजरीवाल की चुप्पी दे रही कई सवालों को जन्म – कोई दूसरा नहीं, आप के अपने नेता लगा रहे अपने नेताओं पर उक्त आरोप- (द स्टैलर न्यूज़)
एक कहावत है कि ‘दूसरों पर उंगली उठाने से पहले खुद की मंजी थल्ले सोटा फेर लेना चाहिए’ यानि पहले खुद के भीतर झांक लेना चाहिए कि हम कितने साफ हैं? परन्तु शायद इस कहावत पर अमल करना आम आदमी पार्टी जोकि अब खास बनती जा रही है ने अमल करना जरुरी नहीं समझा।
संपादकीय: संदीप डोगरा (द स्टैलर न्यूज़)
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद देश के अन्य भागों में जिस तेजी से ‘आप’ का ग्राफ बढ़ा उससे जनता को लगने लगा था कि उन्हें अन्य परंपरागत राजनीतिक पार्टियों का विकल्प मिल गया है तथा लोग आप के प्रति उसकी नीतियों को लेकर काफी आकर्षित भी होने लगे थे। परन्तु दिल्ली के बाद पंजाब में विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी की तैयारियां, उम्मीदवारों की घोषणा तथा दिल्ली से पंजाब भेजे गए पार्टी अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर नजऱ रखना शायद पार्टी ने जरुरी नहीं समझा। जिसके चलते पंजाब में जिस तेजी के साथ आप के प्रति जनता का विश्वास बना था उससे दो गुणा तेजी से ‘आप’ के प्रति लोगों के दिलों में नफरत पनपने लगी है। जिसका कारण शायद साफ है कि जिन सिद्धांतों पर चलने का वायदा करके राजनीति में कदम रखे गए थे, कहीं न कहीं राजनीतिक रंगत चढ़ते ही सिद्धांत राजनीतिक चकाचौंध में कहीं गुम से होने लगे। हैरानी तो इस बात की है कि अपनी ही पार्टी नेताओं द्वारा पार्टी के नेताओं पर ही आरोप लगाए जाने की जांच तो दूर आरोप लगाने वालों को जांच का आश्वासन तक नहीं दिया गया। उल्टा आरोप लगाने वालों को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और अय्याशी तथा नशाखोरी के आरोपों से घिरे नेता आज भी पार्टी हाईकमान के इर्द-गिर्द मंडराते दिखाई दे रहे हैं। (द स्टैलर न्यूज़)
पंजाब के नेता दिल्ली से पंजाब भेजे गए नेताओं पर ये लगा रहे आरोप:-
वे अय्याश थे, नशाखोर थे, टिकट दिलाने के नाम पर करोड़ों इकट्ठा करके किया भ्रष्टाचार तथा बेची गई टिकटें और भी कई आरोप हैं जो यहां के नेताओं द्वारा लगाए गए और इसके सबूत पेश करने की बात भी कही। पर सब अनसुना। आखिर क्यों?
हाल ही में पंजाब में सीटों की घोषणा किए जाने के उपरांत एक के बाद एक संगीन आरोप लगने के बावजूद पार्टी सुप्रीमों द्वारा दिल्ली से भेजे गए अधिकारियों की जांच न करवाना इस बात की तरफ भी इशारा करता है कि कहीं न कहीं दिल्ली वालों से दिल और राज का रिश्ता पंजाब की जनता से किए वायदों से कहीं अधिक मजबूत है। इसीलिए पंजाब के पार्टी से उसकी संरचना से जुड़े नेताओं की बातों को भी अनदेखा कर दिया गया। यहां तक कि उन्हें अपनी बात रखने के लिए कोई प्लेटफार्म भी नहीं दिया गया। यहां तक कि बार-बार चि_ी पत्र लिखे जाने के बाद भी कोई जवाब न दिया जाना पार्टी में चल रहे घालमेल की तरफ इशारा जरुर करता है।
जहां तक केजरीवाल द्वारा पंजाब में की गई रैलियों में भीड़ की बात की जाए तो ऐसी भीड़ तो तकरीबन हरेक पार्टी की रैलियों में देखने को मिल ही रही है। तो ऐसे में हम यह नहीं कह सकते कि इतना सब हो जाने के बाद भी आप के प्रति लोगों का रुझान पहले की तरह ही है। हालांकि आप से जुड़े उम्मीदवार अंदरखाते इस विद्रोह को लेकर काफी चिंतित भी दिखाई दे रहे हैं परन्तु जग हसाई से बचने के लिए अपनी स्थिति को मजबूत बताना उनकी मजबूरी कही जा सकती है। यही नहीं टिकट मिलने उपरांत कई उम्मीदवारों ने तो पार्टी से नाराज नेताओं को मनाने या उनसे बात करना भी मुनासिब नहीं समझा। जिसके चलते कई नेताओं को या तो पार्टी से निकाल दिया गया या फिर उन्होंने खुद ही पार्टी को अलविदा कह दिया। इसके अलावा कुछेक ऐसे भी हैं जो आज भी पार्टी में अच्छे पद या टिकट की उम्मीद में खामौश सारा खेल देखते हुए समय काट रहे हैं। (द स्टैलर न्यूज़)
वैसे भी नोटबंदी के बाद जिस प्रकार भाजपा के प्रति लोगों में रोष बढ़ा था तथा प्रदेश में अकाली-भाजपा को लेकर विपक्ष द्वारा जो हो हल्ला किया जा रहा था उससे एक बार तो लगने लगा था कि पंजाब की जनता ‘आप’ तथा कहीं न कहीं कांग्रेस की तरफ आकर्षित होने लगी है। परन्तु चंडीगढ़ में भाजपा को मिली जीत ने साफ कर दिया है कि कहां न कहीं मोदी सरकार की नीतियां उज्ज्वल भविष्य की तरफ बढ़ती नजर आने लगी हैं। (द स्टैलर न्यूज़) दूसरी तरफ पंजाब में कांग्रेस द्वारा हर घर का कैप्टन-हर घर नौकरी पक्की और डाटा फ्री मोबाइल फोन दिए जाने जैसी योजनाएं सरकार आने पर चलाने की घोषणा किए जाने से कांग्रेस की स्थिति मजबूत होती दिखाई देने लगी है, परन्तु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने जो विकास कार्य करके दिखाएं हैं उनका जनता के बीच एक आधारपूर्ण संदेश जरुर गया है तथा इसका लाभ उसे इन चुनावों में मिलना लगभग माना जा रहा है।
दूसरी तरफ राजनीतिक माहिरों का मानना है कि अगर आम आदमी अपने सिद्धांतों पर टिकी रहती तो शायद उसे यह दिन न देखना पड़ता। परन्तु इतना जरुर है कि कुछेक सीटों पर आप की मजबूती उसे बढ़त दिला सकती है। मगर सवाल फिर वहीं खड़ा है कि दिल्ली से पंजाब में भेजे गए पार्टी अधिकारियों पर उसी उंगलियों की जांच आखिर क्यों नहीं करवाई जा रही। पंजाब के अलग-अलग हिस्सों की बात न करके अगर होशियारपुर से संबंधित नेताओं एडवोकेट नवीन जैरथ, यामिनी गौमर और वरिंदर परिहार की ही की जाए तो होशियारपुर के साथ-साथ आसपास के इलाकों में पार्टी को जमीनी स्तर पर आधार देने वाले इन नेताओं द्वारा अगर कोई बात कही गई तो उसे यीकनन गंभीरता से लिया जाना चाहिए था। यामिनी गौमर ने जह एम.पी. का चुनाव लड़ा तो उस समय पंजाब में पार्टी को कम लोग ही जानते थे, बावजूद इसके यामिनी गौमर करीब सवा दो लाख वोट लेकर गई। जिससे साफ हो गया था कि विधानसभा चुनाव में आप कुछ न कुछ जरुर करके दिखाएगी। परन्तु टिकटों का आवंटन क्या हुआ। (द स्टैलर न्यूज़) ‘आप’ आम से खास लगने लगी और इस प्रकार तिनका-तिनका होकर बिखरने लगी कि लोगों की इस पार्टी से जुड़ी उम्मीदें धूमिल होती नजर आने लगी। राजनीकित माहिरों का मानना है कि भले ही यह वक्त ही बताएगा कि ऊंट किस करवट बैठता है, परन्तु मौजूद स्थिति में जनता के बदलते विचार आप के अनुकूल नहीं कहे जा सकते। हां! इतना जरुर है कि परंपरागत राजनीतिक पार्टियों के विकल्प के रुप में देखी जाती ‘आप’ अब आम आदमी की पार्टी न होकर खास की लगने लगी है। (द स्टैलर न्यूज़)