बच्चियों का दर्द नहीं समझे शिक्षा अधिकारी, अपना होता तो शायद नंगे पांव भाग खड़े होते

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। एक तरफ सरकार स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई के लायक वातावरण देने तथा बच्चों की सहूलतों हेतु समस्त प्रकार का फरनीचर एवं अन्य आधुनिक संसाधनों की व्यवस्था की जा रही है तो दूसरी तरफ उदासीन अधिकारी बच्चों के साथ कोई हादसा हो जाने पर किस प्रकार अपने फर्ज की इतिश्री करते हैं इसका ज्वलंत उदाहरण आज उस समय देखने को मिला जब 3 जुलाई को गांव बस्सी बजीद के स्कूल में हुई घटना की जानकारी मिलने पर भी जिला शिक्षा अधिकारी प्राइमरी ने अपने कार्यालय से उठकर अस्पताल पहुंचना जरुरी नहीं समझा। हालांकि सायं 5 बजे के बाद उन्होंने अस्पताल पहुंचकर औपचारिकता जरुर निभाई, मगर बच्चियों व परिवार की मदद का प्रबंध करना जरुरी नहीं समझा। एस.डी.एम. द्वारा फोन पर पूछे जाने पर कि अगर आप यहां आए तो क्या व्यवस्था की पर अधिकारी के पास कोई जवाब नहीं था। ऐसे में आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसे उदासीन अधिकारियों के सहारे सरकार का सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने और बच्चों की सेहत का ध्यान रखने का सपना कैसे पूरा होगा।

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घटना 3 जुलाई की है तथा मामला आज 4 जुलाई को उस समय प्रकाश में आया जब किसी ने इस संबंधी मीडिया को सूचना दी और मीडिया ने अस्पताल पहुंचकर बच्चियों की हालत जानी व हादसे संबंधी जानकारी प्राप्त की।

घटना संबंधी जब “द स्टैलर न्यूज़” को पता चला तो हमारे संवाददाता ने जिला शिक्षा अधिकारी प्राइमरी संजीव कुमार गौतम से बाद दोपहर 2 बजकर 43 मिनट पर बात की और इस बारे में विभाग ने क्या कदम उठाए संबंधी पूछा। उनका जवाब सुनकर हैरानी हुई कि उन्हें इसकी कोई जानकारी ही नहीं थी। उनका कहा था कि वे इस संबंधी पता करते हैं। संवाददाता द्वारा साहिब को ये भी बताया गया कि इस समय बच्चियां सिविल अस्पताल में उपचाराधीन हैं। बावजूद इसके उन्होंने इस पर गंभीरता दिखाते हुए अस्पताल पहुंचना जरुरी नहीं समझा।

काफी देर बाद जब पुन: 3 बजकर 48 मिनट पर उनसे फोन पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी जगह पर उपजिला शिक्षा अधिकारी धीरज शर्मा को भेजा है, क्योंकि उनकी जिलाधीश के साथ 4 बजे मीटिंग है। अब सोचने वाली बात यह है कि क्या उन्होंने इस घटना के बारे में जिलाधीश से बात की, अगर वे बात करते तो क्या जिलाधीश उन्हें अस्पताल जाने से मना कर देती? क्या साहिब इतना जरुरी काम कर रहे थे कि उनके पास आधा घंटा भी नहीं था कि वे कुर्सी से उठकर मिनी सचिवालय से सिविल अस्पताल पहुंच सकते। अगर हम सूचना दिए जाने की बात करें तो 2 बजकर 43 मिनट से लेकर 4 बजे तक पौना घंटे का अंतर था और अगर वे घटना को लेकर संवेदनशील होते तो तुरंत कार्यालय से निकलकर अस्पताल पहुंचते तथा उन्हें ऐसा करने में ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 मिनट का समय लगता और वे समय पर मीटिंग में भी पहुंच जाते।

मगर, बच्चों के प्रति फर्ज की मात्र इतिश्री करने वाले जिला अधिकारी के उदासीन रवैये के बारे में जब विधायक पवन आदिया एवं एस.डी.एम. मेजर अमित सरीन को पता चला तो उन्होंने इस पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। इसके विपरीत यही घटना अगर किसी अधिकारी के बच्चे या उनके अपने किसी चहेते व बच्चे के साथ होती तो शायद सभी बैठकों को रद्द कर दिया जाता या उनके स्थान पर कोई और अधिकारी मीटिंग में चला जाता। इतना ही नहीं शायद साहिब नंगे पांव ही दौड़ पड़ते। परन्तु, इस घटना में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला।

एक तरफ जहां विधायक पवन आदिया ने इसका कड़ा संज्ञान लिया है वहीं एस.डी.एम. मेजर अमित सरीन ने भी घटना संबंधी बरती गई लापरवाही के लिए संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई के संकेत दिए हैं।

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