मामला गर्माता देख हरकत में आया प्रशासन, अवैध माइनिंग करने वालों पर कार्यवाही शुरु

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। “द स्टैलर न्यूज़” द्वारा गांव डाडा में हुई अवैध माइनिंग का मामला उजागर करने के मामले का संज्ञान लेते हुए आज शुक्रवार 22 नवंबर को एस.डी.एम. मेजर अमित सरीन ने माइनिंग, वन विभाग एवं पुलिस अधिकारियों के साथ मौके का मुआयना किया और अधिकारियों को कार्यवाही के निर्देश जारी किए। इस अवसर पर डी.एस.पी. सिटी जगदीश राज अत्री, एस.एच.ओ. जी.एस. सेखों, माइनिंग अधिकारी गगनदीप व अन्य अधिकारी मौजूद थे।

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मौका देखने उपरांत एस.डी.एम. मेजर अमित सरीन ने बताया कि मामले की जांच के निर्देश दिए गए हैं तथा इस मामले में लिप्त लोगों पर सख्त कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने बताया कि फिलहाल 4 लोगों पर मामला दर्ज करने की कार्यवाही चल रही है तथा जांच उपरांत इसमें शामिल लोगों पर भी कार्यवाही को अमल में लाया जाएगा।

समाचार प्रकाश में आने के बाद प्रशासन ने भले ही कार्यवाही शुरु कर दी हो, मगर सूत्रों के अनुसार मामले को घुमाने की कवायद भी शुरु कर दी गई है, क्योंकि जमीन के मालिक से इस बात की जानकारी मिल सकती थी कि उसकी जमीन से कौन मिट्टी उठा रहा था और किस-किस की मशीनरी प्रयोग में लाई जा करी थी। इतना ही नहीं प्रशासन की कार्यवाही खानापूर्ति तक सीमित नजऱ आई, क्योंकि मौके पर जमीन पर पड़े ट्रैक्टर-ट्रैालियों एवं अन्य वाहनों के टायरों के निशान सारी कहानी बयान कर रहे थे तथा मामले को घुमाने के लिए एक ऐसे आदमी को इसमें घसीटा जा रहा है जो उस स्थान से काफी दूरी पर माइनिंग कर रहा था, हालांकि वे भी बिना परमिट के ही माइनिंग में लिप्त माना जा रहा है, परन्तु इस स्थान पर जोकि लगभग 25-30 एकड़ जगह बनती है वहां पर एकाध दिन में तो माइनिंग हुई नहीं तथा क्या वहां से मिट्टी रम्बों व कस्सी आदि से उठाई गई। ऐसा भी माना जा रहा है कि असल आरोपियों को बचाने के लिए पुलिस विभाग के एक अधिकारी द्वारा मामले में कुछेक अन्य लोगों को घसीट कर सारी कहानी ही घुमाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि भाजपा-कांग्रेस से जुड़े नेताओं की पोल न खुल सके।

जबकि दूसरी तरफ कैबिनेट मंत्री सुन्दर शाम अरोड़ा ने जिला पुलिस प्रमुख को सख्त निर्देश दिए हैं कि इस मामले में लिप्त कोई भी हो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाए।

आज की जांच के उपरांत जिन लोगों पर मामला दर्ज किए जाने की बात कही जा रही है वे अपने-आप में ही सवालों के घेरे में हैं। मामले में कहीं भी मशीनरी किसकी प्रयोग हुई इस बारे में खुलासा नहीं किया गया तथा एक अन्य व्यक्ति को मामले में लिप्त करके सारी कहानी उसी के सिर मडऩे की तैयारी की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। 

मजे एवं हैरानीजनक बात तो यह है कि प्राप्त जानकारी अनुसार गांव डाडा दफा में आता है और जहां से मिट्टी उठाई गई वो जगह दफा से मुक्त करवाई जा चुकी है, जोकि पूरी तरह से नियमों के उल्ट है और यह भी जांच की विषय है कि आखिर किन मापदंडों और नियमों के आधार पर उक्त जमीन को दफा मुक्त किया गया और यह भाजपा-अकाली दल की सरकार के समय में संभव हुआ बताया जा रहा है और यह भी जांच की विषय है कि आखिर यह किसके इशारे पर संभव हुआ।

यह भी सवाल खड़ा होता है कि इतने बड़े स्थान पर बड़े पैमाने पर माइनिंग होती रही तो क्या वन विभाग व माइनिंग विभाग तथा पुलिस सोती रही या जानकर भी सभी अंजाम बने हुए थे, क्योंकि वहां से उठाई गई अधिकतर मिट्टी की सप्लाई शहर में की गई। इस मामले में वन विभाग के अनुसार उनके जंगल में माइनिंग नहीं हुई तथा जंगल सुरक्षित है। अब यह बात तो जांच के बाद एवं निशानदेही करवाने के बाद ही सामने आएगी कि आखिर माइनिंग हुई कहां तक है और क्या उसमें जंगलात की भूमि शामिल है या नहीं जबकि सूत्रों के अनुसार इस बात की जांच भी जल्द सेे जल्द करवाई जानी चाहिए ताकि सबूतों पर पानी न फेरा जा सके।

प्रशासन की कार्यवाही इसलिए भी खानापूर्ति सी प्रतीत हो रही है, क्योंकि इतने बड़े स्तर पर माइनिंग होने के बावजूद और मामला उजागर होने पर भी किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया गया व न ही किसी को सस्पैंड किए जाने जैसा कदम उठाया गया। क्योंकि जाहिर सी बात है कि कार्यवाही में कहीं न कहीं खुद का बचाव और रसूखदारों का दवाब भी काम कर रहा है। एक सवाल और जो जंगलात विभाग से जुड़ा है कि आखिर 3 किलोमीटर रास्ता जोकि जंगलात की भूमि से बनाया गया उस पर विभाग द्वारा क्या कार्यवाही की जाएगी और क्या उसके अधिकारी सोते रहे।

अगर नहीं तो जंगल में गश्त करने वाले अधिकारियों की नजर इस पर क्यों नहीं पड़ी। ऐसे कई सवाल हैं, जिससे मामला पूरी तरह से हाई प्रोफाइल तथा विभागीय उदासीनता एवं कथित मिलीभगत का प्रतीत हो रहा है। जिसकी जांच या तो किसी रिटायर्ड जज से करवाई जानी चाहिए या फिर विजीलैंस विभाग को इसकी जांच सौंपी जानी चाहिए।

विश्वसनीय सूत्रों की माने तो माइनिंग किसने की, किसने करवाई और किसके इशारे और असर-रसूख के तहत हुई इसकी जानकारी बहुत सारी अधिकारियों को है, मगर मगरमच्छ के मुंह में हाथ दे कौन?

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