आज व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक नागरिक को आवश्यकता है अज्ञानता के विरुद्ध खड़े होने की: साध्वी रूक्मणी भारती

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम गौतम नगर में महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान की ओर से श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रूक्मणी भारती जी ने कहा कि भगवान शिव ने लोक कल्याण के लिए हलाहल विष का पान कर लिया । और अमृत देवताओं को देकर सारी मानव जाती के सामने एक संदेश रखा कि यदि महान बनना चाहते है तो त्याग की भावना से पोषित होना पड़ेगा। समाज की वर्तमान स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि आज प्रत्येक मनुष्य का अंत:करण अंधकारमय है।

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अज्ञानता के तम से आच्छादित है। जब-जब मानव के भीतर अज्ञानता व्याप्त होती है, तब तब मानवो का समाज मानवता से रि1त हो जाता है। मानव में मानवीय गुणों का ह्यस होने लगता है। समाज में अर्धम, अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार,व्यक्चिार आदि कुरीतियां अपना सिर उठाने लगती है यही कारण है कि हमारे ऋषि मुनियों ने उस परम तत्व के समक्ष ये प्रार्थना की है-हे प्रभु हमारे भीतर के अधंकार को दूर कीजिए ताकि ज्ञान प्रकाश को पाकर हम अपने जीवन को सुंदर बना सके। जब तक मानव अज्ञानता के गहन अधंकार से त्रस्त रहेगा तब तक उसका सर्वागीन विकास संभव नहीं हैं। जिस प्रकार बाहर के प्रकाश से बाह्य अधंकार दूर होता है उसी प्रकार आंतरिक ज्ञान प्रकाश से आंतरिक अज्ञान तमस नष्ट होता है। ज्ञान की प्राप्ति किसी पूर्ण गुरू की शरण में जाकर ही होगी, जो मानव के भीतर उस ईश्वरीय प्रकाश को प्रकट कर देते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में जब भी इस ज्ञान प्रकाश के लिए मानव जाति को प्रेरित किया

साध्वी जी ने बताया कि केवल शिव ही त्रिनेत्रधारी नहीं है उनके स्वरूप का यह पक्ष प्राणीमात्र को एक गूढ़ आध्यात्मिक संदेश देता है। वह यह कि हर मनुष्य त्रिनेत्रधारी है। हमारी दृष्टि के मध्य वह तीसरा नेत्र है जो बंद पड़ा है परतु पूर्ण संत मस्तक पर अपना वरद- हस्त रखते है तो वह नेत्र खुल जाता है इंसान के मध्य वह तीसरा नेत्र है जो बंद पड़ा है परतु पूर्ण संत मस्तक पर अपना वरद-हस्त रखते है तो वह नेत्र खुल जाता है इन्सान अपने भीतर शिव के ज्योति स्वरूप का साक्षात्कार करता है।
आज आवश्यकता है व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक नागरिक को अज्ञानता के विरुद्ध खड़ा होने की ओर भारतीय संस्कृति मुल्यों को अपनाने की।

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