महिला दिवस केवल मनाएं नहीं, हर पल निभाएं भी : स्वीन सैनी

Career Counsellor Sween Saini

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। मेरी नजऱ में भारतीय महिलाएं न केवल खूबसूरती बल्कि काबलियत व सक्षमता में पूरे विश्व में बेहतरीन हैं। हम उन्हें उनकी सभी भूमिकाओं में प्यार करते हैं। क्योंकि हम किसी महिला के येागदान के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। उक्त बातों का प्रगटावा करते हुए नाईस कंप्यूटर की डायरैक्टर स्वीन सैनी ने कहा कि यदि महिलाएं नहीं होंगी तो दुनिया अस्त व्यस्त, आक्रामक और अंहकारी पुरूषों का समूह बनकर रह जायेगी। नारी की उपेक्षा या अपमान करने वाले या नारी के वजूद को लेकर नकारात्मक राय कायम करने वाले लोगों के पास क्या कोई विकल्प है? अधिकांश मर्द उनके न्यायाधीश बनकर उनसे ज़रूरत से ज़्यादा अपेक्षा करते हैं, उनके व्यक्तित्व को विकसित करना तो दूर उनके हिस्से का स्पेस भी उन्हें नहीं देते। ऐसे में अवसाद व तनाव का शिकार होना लाज़मी है और फिर हम औरत को टेंशन का घर कहने से भी नहीं हिचकते।

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हे सखी, थामें दूसरी सखी का हाथ और
दें इक दूजे के सशक्तीकरण में साथ
तो फिर बने कुछ बात।

लेकिन यह भी एक सुखद सच है कि आज़ादी के बाद से अनेकों बदलावों के बीच वैश्वीकरण के दौर में स्त्री का जीवन भी बदलाव की पुरवाई से अछूता नहीं रहा। नारी अस्तित्व व भूमिका के बारे में भारतीय समाज की बदली मानसिकता से सोच बदली और उससे देश का चेहरा भी बदला है। कैरियर, अवसर, सुविधायें या अधिकार, हर क्षेत्र में आज लड़कियां प्रथा बदल रही हैं। वे सशक्त हैं, हाथ में डिग्री है और अधिकारों के प्रति जागरूकता और लडक़ों के बराबर अवसर व शायद कहीं कहीं ज़्यादा तनख्वाह भी। हमारे आसपास घट रही बहुत सी निराशाजनक घटनाओं के बीच भारतीय नारियां अपनी प्रतिभा व दृढ़ निश्चय शक्ति से दिन प्रतिदिन पारंपरिक बेडिय़ों व रूढि़वादी धारणाओं को तोड़ती हुई प्रगतिशील भारत में अपना योगदान दे रही हैं। मेरी नजर में उस हर औरत का हर दिन खास होता है। जिसे अपनी क्षमताओं व जिम्मेवारियों का बराबर अहसास होता है। एक गर्वान्वित भारतीय नारी होने के नाते मुझे इस बात की खुशी है कि आज महिला दिवस के मौके पर मैं हर कार्यक्षेत्र में सफल नारी की मिसाल दे सकती हूं।

दो बेटियों की मां होने के नाते मैं हर लडक़ी की आगे बढऩे की जि़द व काबलियत के दम पर बराबरी का दर्जा हासिल करने के हौसलों को सलाम करती हूं। संघर्षों व चुनौतियों के बावजूद एक सफल बिनेस एन्ट्रीप्रिन्योर के तौर पर मैं गवाह हूं कि ईश्वर ने हर महिला को सहनशीलता, मल्टी टास्किंग, दृढ़ता व पुरूष प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने की संकल्पबद्धता जैसी कुछ खास विशेषतायें बख्षी हैं, जिनके कारण आज स्त्री जाति ने यह साबित कर दिया है कि समाज के बदलते विचारों, परिवार के सहयोग व कार्यक्षेत्र में मिल रहे अवसरों का बखूबी इस्तेमाल कर वह सफलता की हर उंचाई छू सकती है।

बदलते सामाजिक परिवेश व महिलाओं की जागरूकता के कारण अब सरकार व अन्य संस्थायें महिलाओं के लिये अनगिनित सुविधाएं व अवसर प्रदान कर रहे हैं, फलस्वरूप हर शहर, जाति व तबके की महिलायें व युवा लड़कियां हर तरह की चुनौतियों को लांघते हुये प्रगति की राह में अग्रसर हैं। ये बदलाव काफी उत्साह जनक हैं लेकिन कहीं कहीं चिन्ता का कारण भी। पहले अधिकारों का जो गल्त इस्तेमाल पुरूड्ढ किया करते थे, अब वे कहीं कहीं स्त्रियां भी करती नजऱ आ रही हैं। प्रगति के अधिकारों व संस्कारों का सही संतुलन बहुत जरूरी है। ताकि केवल दूसरे ही नहीें हम खुद भी एक गर्वान्वित भारतीय महिला होने पर गर्व महसूस कर सकें।

तस्वीर का दूसरा रूख देखें तो हम जानते हैं कि यह स्थिति और आंकड़ें हर जगह एक जैसे नहीं हैं। हाल ही के कुछ दर्दनाक हादसे व समाज की अनेकों बुराईयां जब दिमाग में कौंधते हैं तो विचलित मन सोचता है कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। जागरूकता व सशक्तीकरण के बावजूद भी हमारे देष में स्त्री वर्ग का अधिकांष हिस्सा अभी भी कुपोषण, घरेलू हिंसा व शोषण का शिकार है। काबलियत व प्रयासों के बावजूद भी अपने अधिकारों व सम्मान की उसकी लड़ाई अभी भी जारी है। और जहां किसी भी रिष्ते में बंधे बदलती विचारधारा के साथ सुलझे विचारों व सशक्त सोच वाले पुरूष अगर आगे आकर औरत के गुणों, प्रतिभा व उपलब्धियों को मान देते हैं, स्वीकारते हैं तो उन्हें समाज व परिवार द्वारा दब्बू समझकर दीनता का अहसास दिलाने का हर मुमकिन प्रयास किया जाता है जिसमें अधिकतर महिला वर्ग ही शामिल रहता है। मेरी नजऱ में सबसे बड़ा कारण यही है कि अपने परिवार, समाज या कार्यक्षेत्र में सबसे अधिक योगदान देकर अपेक्षाओं से बढक़र परिणाम देने वाली नारी की विडम्बना ज्यों की त्यों है क्योंकि पारिवारिक व सामाजिक स्तर पर अपनी ही स्त्री जाति से उसे सहयोग व मनोबल नहीं मिल पाता तो पुरूषों के बराबर का दर्जा तो उसे कैसे मिल पायेगा?

तस्वीर के इस रूख को बदलने की जिम्मेवारी केवल सरकार, समाजसेवी संस्थाओं या पराये लोगों की नहीं। हम महिलाओं के लिये यह समझना अति आवश्यक है कि नारी के सम्पूर्ण विकास व सशक्तीकरण में सबसे पहले स्वचेतना व लगन का होना भी ज़रूरी है। अपने जीवन को सही दिषा देने के लिये हर नारी के जीवन में जरूरी है कि वह आशा से लबरेज़ सकारात्मक सोच रखते हुए ज्ञान से भरे जीन रूपी जग में दो बूंद दृढ़ निश्चय, तीन चम्मच साहस के डाल गरिमापूर्ण चार कदम स्वावलम्बन के निरन्तर लक्ष्य की ओर तय करती रहेें। अपनी प्राथमिकताएं तय हों और कदम सही दिशा में हों तो यकीन मानिए बराबरी के हक पाकर अपना एक वजूद बनाने से कोई नहीं रोक पायेगा। और सही मायने में महिला दिवस मनाने के लियेे स्वयं स्त्री जाति के भरपूर योगदान की दरकार है।

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