निहित स्वार्थों के लिए कृषि विधेयकों पर फैलाए जा रहे हैं भ्रामक मिथक: डा. जितेंद्र

नई दिल्ली (द स्टैलर न्यूज़)। केंद्रीय मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि कुछ निहित स्वार्थों द्वारा कृषि विधेयकों पर भ्रामक मिथक फैलाए जा रहे हैं, वे लोग अपनी छोटी-मोटी राजनीतिक लाभों की प्राप्ति के लिए किसानों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।

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दूरदर्शन को दिए गए विस्तृत साक्षात्कार में डा.जितेंद्र सिंह ने कहा कि मूर्खतापूर्ण विडंबना यह है कि कुछ प्रावधानों के नाम पर निराधार अफवाहें फैलाई जा रही हैं जिनका मोदी सरकार द्वारा संसद में लाए गए विधेयकों में बिल्कुल भी अस्तित्व नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए,  किसानों को यह विश्वास दिलाने के लिए व्यापक रूप से अभियान चलाया जा रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर रोक लगा दिया गया है, जबकि विधेयकों में न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली के लिए ऐसा कोई संदर्भ शामिल नहीं किया गया है, जो स्पष्ट रूप से इस बात को इंगित करता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली पहले की तरह जारी रहेगी।

डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि दूसरी ओर सरकार द्वारा लाए गए कृषि विधेयकों से कृषि क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण होगा, जिसमें किसान अपनी फसल को किसी को, कहीं भी और और अगर वे चाहते हैं तो अधिक मुनाफा कमाने के लिए बड़ी कंपनियों से जुड़कर फसल बेचने की आजादी और विकल्प प्राप्त करेंगे। इसके साथ ही, किसी भी विधेयक में इस बात का कोई भी संकेत नहीं दिया गया है कि मंडियों को समाप्त कर दिया जाएगा, जिसका अर्थ है कि बाजार प्रणाली पहले की तरह लागू रहेगी और कृषि एवं खाद्य नीति केंद्र (एएफपीसी) भी जारी रहेगा।

इसी प्रकार डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि किसानों को यह समझाते हुए भड़काया जा रहा है कि उन्हें अनुबंध के नाम पर बड़ी कंपनियों के शोषण का शिकार होना पड़ेगा। उन्होंने कहा, इसके बिल्कुल विपरीत, विधेयक में किसान को किसी भी प्रकार के शोषण से बचाने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं।

डा. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि अनुबंध और समझौतों के माध्यम से किसानों को तय मूल्य प्राप्त होने की गारंटी मिलेगी और किसान किसी भी समय बिना किसी अर्थदंड के इसे वापस ले सकते हैं।

डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि केवल इतना ही नहीं बल्कि विधेयकों में किसानों के जमीन की बिक्री, पट्टा या गिरवी रखने पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई गई है क्योंकि यह समझौता फसलों के लिए है न कि जमीन के लिए। इसलिए यह सरासर गलत व्याख्या है कि बड़े व्यवसायी किसानों की जमीन हड़पकर उन्हें बंधुआ मजदूर बना देंगे।

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