रयात बाहरा होशियारपुर कैंपस: फीस न देने पर बच्ची को लेक्चर भेजना किया बंद, परीक्षा में भी नहीं बैठने देने की कही बात

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। अगर आपका बच्चा रयात बाहरा ग्रुप ऑफ एजुकेशन के होशियारपुर कैंपस में पढ़ता है तो आपको यह बात पहले ही सुनिश्चित कर लेनी चाहिए कि आपके पास इतना सरमाया है कि आप कालेज की फीस देने में सक्षम हैं। क्योंकि, अगर किसी कारणवश आप कालेज की फीस नहीं दे पाए तो कालेज प्रबंधकों द्वारा आपके बच्चे को पढ़ाई से वंचित भी रखा जा सकता है। वैसे तो कालेज प्रबंधकों द्वारा शिक्षा को प्रफुल्लित करने एवं जरुरतमंद बच्चों की फीस में रियायत एवं उन्हें मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के दावे किए जाते हैं। मगर, आपको कालेज की मनमर्जी का पता उस समय चलेगा एवं इस दावों की पोल उस समय खुल जाएगी जब आप अपने बच्चे की फीस देने में असमर्थ होंगे और आपके द्वारा कालेज प्रबंधकों से रियायत की अर्जी दिए जाने के बावजूद भी प्रबंधकों का दिल नहीं पसीजेगा। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने बच्चे का दाखिला इस कालेज या ऐसे कालेजों में तभी करवाएं जब आपकी जेब भरी हो। अन्यथा आपका बच्चा भी इस बच्ची की तरह पढ़ाई से वंचित कर दिया जाएगा। जी हां! अब आपको बताते हैं कि हमने आपको इतनी सारी उदाहरणें देकर क्या समझाने का प्रयास किया है।

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हुआ यूं कि रयात बाहरा के होशियारपुर कैंपस में स्थित एक कालेज में होशियारपुर के बहादुरपुर इलाका निवासी एक परिवार ने अपनी बच्ची को दाखिला दिलवाया था। दाखिले के समय रियायत की फरियाद करने पर कालेज प्रबंधकों द्वारा मामूली से रियायत दी गई। लेकिन, परिवार ने बच्ची के भविष्य को देखते हुए उम्मीद से कम मिली रियायत के बावजूद बच्ची का दाखिला करवाया और दो समैस्टर की फीस भी जमा करवाई। लेकिन इसी दौरान कोरोना काल के कारण बच्ची के पिता बेरोजगार हो गए और उनके लिए घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया। इसके चलते बच्ची फीस देने में लेट हो गई। कालेज द्वारा बार-बार कहे जाने पर कि किश्तों में फीस जमा करवा दो तो बच्ची के परिवार ने किसी तरह से 10 हजार रुपया जमा करवा दिया। इसके बाद उन्होंने कालेज प्रबंधकों से गुहार लगाई कि वे पूरी फीस देने में असमर्थ हैं तथा फीस में रियायत दी जाए। लिखित पत्र दिए जाने पर भी कालेज प्रबंधकों का दिल नहीं पसीजा और कालेज से यह फरमान जारी कर दिया गया कि जो बच्चे फीस नहीं देंगे उन्हें लेक्चर भी नहीं लगाने दिए जाएंगे तथा न ही भेजे जाएंगे। क्योंकि, कोरोना के चलते सारी पढ़ाई ऑन लाइन करवाई जा रही है तथा जल्द ही बच्चों के पेपर भी शुरु होने वाले हैं। लेक्चर न मिलने के डर से अधिकतर अभिभावकों ने किसी तरह से कालेज की फीस भरी और बच्चों की पढ़ाई को निरंतर जारी रखा। लेकिन उक्त बच्ची के अभिभावक फीस जमा नहीं करवा पाए। जिसके चलते कालेज द्वारा बच्ची को लेक्चर भेजने बंद कर दिए गए और उस पर जल्द से जल्द फीस जमा करवाने का दवाब बनाया जा रहा है तथा यहां तक भी कह दिया गया है कि अगर वो फीस जमा नहीं करवाएगी तो उसे पेपरों में भी बैठने नहीं दिया जाएगा।

कालेज प्रबंधकों द्वारा ऐसा करना सरकार के बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के दावों की भी पोल खोलने के लिए काफी है। एक तरफ जहां बेटियों को शिक्षित करने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं तो वहीं पूंजीपतियों द्वारा शिक्षा के किए जा रहे व्यवसायीकरण के कारण बेटियों की शिक्षा पर ग्रहण लगता जा रहा है। जिसके चलते उन्हें सरकार के प्रेरणास्रोत नारों और नीतियों की भी कोई परवाह नहीं है।

यह सारा मामला द स्टैलर न्यूज़ के संपादक संदीप डोगरा के ध्यान में आने के बाद उन्होंने भी कालेज प्रबंधकों से बात की और बच्ची को फीस में रियायत की मांग की। लेकिन शर्म की बात है कि जो प्रबंधक शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार को लेकर इतने बड़े-बड़े दावे करता है उसके लिए एक बच्ची के भविष्य से अधिक चंद कागज के टुकड़ों की अहमियत अधिक हो गई। कालेज प्रबंधकों द्वारा यह कहते हुए पल्ला झाड़ दिया गया कि हमने भी स्टाफ को वेतन देने हैं व और भी बहुत सारे खर्च होते हैं। अब सवाल यह है कि क्या एक बच्चे को 10-15 हजार रुपये की फीस देने से क्या कालेज का आर्थिक ढांचा बिगड़ जाएगा या फिर कालेज प्रबंधकों की कहनी और करनी में इतना अंतर है कि उनके लिए दमड़ी इतनी प्रिय है।

इस संबंध में बात करने के लिए हमारे मुख्य संपादक संदीप डोगरा ने ग्रुप के चेयरमैन गुरविंदर बाहरा से बात करने का भी प्रयास किया व उन्हें बाट्सऐप पर भी मैसेज भेजा था, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई। अगर, उनसे बात हो पाती तो शायद बच्ची को फीस में जहां रियायत मिलती वहीं कालेज प्रबंधक इस बच्ची के साथ-साथ अन्य जायज जरुरतमंद बच्चों के साथ इस प्रकार का व्यवहार न कर पाते।

दूसरी तरफ बच्ची के अभिभावक इस बात को लेकर परेशान एवं डरे हुए हैं कि यह मामला प्रकाश में आने के बाद कहीं कालेज प्रबंधक उनकी बेटी को तंग परेशान करना न शुरु कर दें तथा वे कैसे भी करके फीस जमा करवा देंगे ताकि उनकी बच्ची का भविष्य खराब न हो। इसके लिए उन्हें अगर कर्ज भी लेना पड़ा तो वे ले लेंगे।

एक तरफ जहां दलित विद्यार्थियों को कालेजों एवं यूनिवर्सिटियों द्वारा दाखिला न दिए जाने संबंधी प्रकाशित खबरों का सू मोटो लेते हुए पंजाब राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने इसकी जांच के आदेश देते हुए 13 अक्तूबर तक रिपार्ट मांगी है तो दूसरी तरफ अगर किसी बच्चे के साथ इस प्रकार की बेइंसाफी होती है तो वो बच्चा कहां आवाज़ उठाए इसके लिए भी सरकार को एक आयोग की स्थापना करनी चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि फीस अधिक जरुरी है या फिर किसी बच्चे का भविष्य। अब देखना यह होगा कि कालेज प्रबंधक इस मामले को किस प्रकार लेते हैं तथा बच्ची के भविष्य को संवारने में अपना योगदान डालते हैं या फिर पैसे के पुजारी बनकर उसके भविष्य से खिलवाड़ करते हैं।

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