सैंचरी प्लाईवुड: आज के विकास पर कल के विनाश की नींव?

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-फैक्ट्री अधिकारियों के अनुसार एम.डी.एफ. बनाने में एक दिन में साढे चार लाख लीटर ताजे पानी की खप्त करेगी सैंचरी-ब्लाक होशियारपुर-1 के अंतर्गत आती है फैक्ट्री और ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा होशियारपुर-1 को तेजी से गिरते भू-जल श्रेणी में रखते हुए जारी की गई है चेतावनी-पानी के तेजी से गिरते स्तर की चेतवनी के बावजूद फैक्ट्री लगाने के लिए एन.ओ.सी. जारी होना हैरानी की बात और दे रही कई सवालों को जन्म-
होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। होशियारपुर-दसूहा मार्ग पर गांव दोलोवाल में लगाई जा रही सैंचरी प्लाइवुड फैक्ट्री में कैमिकल प्लांट को लेकर भले ही संघर्ष कमेटी ने प्रबंधकों द्वारा कैमिकल बनाने की अनुमति वापस लेने के बाद अपना संघर्ष समाप्त कर दिया हो, मगर फैक्ट्री से जुड़े विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। फैक्ट्री में रोजाना पानी की खप्त को लेकर अभी भी एक मामला नैशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल के पास चल रहा है, जिसकी सुनवाई 2 अगस्त को है।

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एक तरफ जहां फैक्ट्री प्रबंधकों पर जनता को गुमराह करके फैक्ट्री लगाने के आरोप लगते रहे हैं वहीं फैक्ट्री में कैमिकल प्लांट लगने से रोकने के लिए भी लोगों को लंबा संघर्ष करना पड़ा, जिसे बाद में फैक्ट्री प्रबंधकों द्वारा इस यूनिट को रद्द कर दिया गया था। मगर इस फैक्ट्री के पीछे छिपा एक तथ्य ऐसा भी है, जिसके बारे में अगर गहनता से अध्ययन किया जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यह फैक्ट्री ‘वर्तमान में विकास के नाम पर रखी जा रही भविष्य के विनाश की नींव है’, क्योंकि ग्राउंड वाटर बोर्ड एवं जल संरक्षण को लेकर कार्यरत सरकारी विभागों द्वारा चेतावनी दी गई है कि होशियारपुर के 10 ब्लाकों में से ब्लाक होशियारपुर-1, दसूहा, गढ़शंकर, हाजीपुर एवं टांडा आदि क्षेत्रों में तेजी के साथ भू-जल स्तर गिर रहा है तथा अगर इसे बचाने के लिए कड़े उपाये न किए गए तो आने वाले समय में यहां जल संकट उत्पन्न हो जाएगा। उक्त फैक्ट्री ब्लाक होशियारपुर-1 के तहत आती है। फैक्ट्री में रोजाना प्रयोग होने वाले पानी संबंधी बात की जाए तो फैक्ट्री अधिकारियों के अनुसार फैक्ट्री में एम.डी.एफ. बोर्ड बनाने के लिए प्रतिदिन 844 किलोलीटर पानी की जरुरत पड़ेगी तथा अगर इसका माप लीटरों में किया जाए तो वो 8 लाख 44 हजार लीटर प्रतिदिन बनता है तथा पानी री-साइकिल यूनिट लगाए जाने के बाद भी फैक्ट्री को रोजाना करीब 4 लाख 65 हजार लीटर फ्रैश वाटर की जरुरत पड़ेगी। अब सवाल यह खड़ा होता है कि अगर जल संरक्षण को लेकर कार्यरत विभाग तेजी से गिरते जल स्तर को लेकर चेतावनी जारी कर चुके हैं तो इतनी बड़ी मात्रा में जल का उपयोग करने वाली फैक्ट्री को लगाए जाने की इजाजत कैसे दे दी गई? और तो और फैक्ट्री अधिकारियों का यह भी कहना है कि फैक्ट्री में वाटर हारवेस्टिंग यूनिट भी इंस्टाल किया जाएगा तथा वाटर ट्रीटमैंट प्लांट लगाकर पानी को री-यूज किया जाएगा, मगर रोजाना लाखों लीटर ताजा पानी बोर्ड बनाने के लिए जरुरी है।
दूसरी तरफ अगर सैंचरी प्लाइवुड में रोजाना लकड़ी की होने वाली खप्त की बात की जाए तो यूनिट हैड हिमांशू शाह द्वारा दी गई जानकारी अनुसार फैक्ट्री में 1200 टन लकड़ी की खप्त होगी और इससे 450 टन बोर्ड तैयार किया जाएगा और इसमें करीब 50 टन रोजन (यूरिया फोरमल डीहाइड) प्रयोग होगा। उनके अनुसार फैक्ट्री में रोजाना करीब साढे 4 लाख लीटर ताजा पानी की जरुरत पड़ेगी। फैक्ट्री में कैमिकल स्टोर करने के लिए 100-100 टन के 3 स्टोरेज यूनिट लगाए गए हैं तथा 3 और बनाए जाने हैं। उन्होंने बताया कि फैक्ट्री में वाटर री-हार्वेस्टिंग यूनिट लगेगा, मगर प्रोसैस दौरान जो पानी बच जाएगा उसे बोर के माध्यम से धरती में नहीं डाला जाएगा बल्कि उसे पेड़-पौधो में डाला जाएगा तथा काफी पानी तो भाप बनकर उड़ जाएगा।
इस कैमिकल (यूरिया फोरमल डीहाइड) को फैक्ट्री में बनाने का जनता ने कड़ा विरोध जताया था। यह एक ऐसा कैमिकल है जिससे कैंसर, सांस की समस्या, मल्टीआर्गन फेलुअर तथा त्वचा के रोग हो सकते हैं। सैंचरी प्लाइवुड की बात की जाए तो यहां पर प्रतिनिदन 50 टन यूरिया फोरमल डीहाइड का उपयोग होगा और उसे स्टोर करने के लिए फैक्ट्री में 600 टन के स्टोरेज यूनिट बनेंगे। अगर कोई अप्रिय घटना घटती है तो साथ लगते गांवों एवं फैक्ट्री से करीब 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित तक्खनी वाइल्ड लाइफ सैंचरी जोकि नियमानुसार इसके बेहद करीब है को भी नुकसान पहुंच सकता है। पर्यावरण चिंतकों का कहना है कि अगर फैक्ट्री लगाई जानी इतनी ही जरुरी थी तो इसे किसी अन्य स्थान पर भी लगाया जा सकता था, चेतावनी वाले क्षेत्र में लगाना अपने आप में एक सवाल है?

यह सत्य है कि इंडस्ट्री के माध्यम से रोजगार के साधन पैदा किए जा सकते हैं तथा इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मगर पर्यावरण व भविष्य को पहुंचने वाले नुकसान को अनदेखा किया जाना कहां तक सही है, इसका सटीक जवाब शायद किसी के पास नहीं। इस फैक्ट्री के लगने से जहां एक लॉबी काफी खुश दिखाई दे रही है वहीं पर्यावरण चिंतकों की परेशानियां बढ़ गई हैं। एक फैक्ट्री लगाने के लिए कई विभागों से एन.ओ.सी. ली जानी जरुरी होती है तथा अब सवाल ये है कि गहराते जल संकट को देखते हुए तथा इस संबंधी चेतावनियां जारी होने के बावजूद उन्हें अनदेखा क्यों कर दिया गया। ऐसे में एन.ओ.सी. जारी करने वाले विभागों की कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में मानी जा रही है। इतना ही नहीं सूत्रों की मानें तो इस प्रोजैक्ट के लगने, संघर्ष व समझौता तथा मीडिया मैनेजमैंट के लिए जो दाव खेला गया उसमें कहीं न कहीं उच्च राजनीतिक पहुंच का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है।

सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि जब ये प्लांट एक बार शुरु हो जाएगा तो इसे बंद नहीं किया जा सकता बल्कि यह कानटिन्यू चलेगा। ऐसे में कहा जा सकता है कि करीब 5 लाख लीटर पानी के हिसाब से प्रतिमाह करीब डेढ करोड़ लीटर पानी की खप्त होगी, यानि अगर इसे साल दर साल जोड़ा जाए तो आने वाले समय में इलाके से भूमिजल संपन्न हो जाएगा की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा अगर यह कहा जाए कि वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से लाखों लीटर पानी रीचार्ज होगा तो उसकी कैल्कुलेशन भी इतनी बड़ी कमी के अंतर को पूरा नहीं कर पाएगी। अब सवाल ये है कि जल संरक्षण एवं पर्यावरण को लेकर चिंतत संस्थाएं इस समस्या से निपटने के लिए कितनी संजीदा हैं तथा इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर हर कोई ग्रीन ट्रिव्यूनल से आशाएं लगाए बैठा है तथा फैसले के इंतजार में है।

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