मंत्री परिषद के फ़ैसले का मंत्रियों और संसदों ने किया समर्थन

चंडीगढ़(द स्टैलर न्यूज़)। सीनियर कांग्रेसी नेताओं ने आज मंत्री परिषद द्वारा मौजूदा विधायकों के पुत्रों फतेहजंग सिंह बाजवा और राकेश पांडे को सरकारी नौकरी देने के फ़ैसले का समर्थन किया और कहा कि अलोचकों द्वारा कई सालों से चल रही प्रांतीय नीति की प्रसंशा न करना निंदनीय है। यहाँ मंत्रियों द्वारा जारी एक संयुक्त बयान जिसमें राणा गुरमीत सिंह सोढी, साधु सिंह धर्मसोत, विजय इंदर सिंगला, अरुणा चौधरी, सुंदर शाम अरोड़ा, गुरप्रीत सिंह कांगड़, बलबीर सिंह सिद्धू, ओ.पी. सोनी, भारत भूषण आशु और संसद मैंबर गुरजीत सिंह औजला, रवनीत सिंह बिट्टू, जसबीर सिंह डिम्पा और मुहम्मद सदीक ने कहा कि मौजूदा एम.एल.एज़ के पुत्रों को नौकरी देना पूरी तरह सही है और इस आधार पर पहले भी कई योग्य व्यक्तियों की नियुक्तियाँ की गई हैं। चेयरमैन पंजाब बोर्ड, लाल सिंह ने कैबिनेट के इस फ़ैसला का पुरज़ोर समर्थन किया और कांग्रेस कमेटी के सभी राजनैतिक नेताओं को सुझाव दिया कि किसी भी तरह की बयानबाज़ी से बचें जिससे पार्टी को नुक्सान हो सकता है। नेताओं ने ज़ोर देते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने घर-घर रोज़गार और कारोबार मिशन को सबसे अधिक ध्यान दिया है जिसके अंतर्गत पहले ही 17.60 लाख नौजवानों को रोज़गार दिया गया है जिसमें से 62,743 व्यक्तियों को सरकारी नौकरी दी गई, 9.97 लाख व्यक्तियों की स्व-रोज़गार के लिए मदद दी गई और 7,01,804 को प्राईवेट सैक्टर में नौकरियाँ मुहैया करवाई गईं।

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सरकार ने पहले ही एक लाख अतिरिक्त सरकारी नौकरियों के पद भरने की प्रक्रिया भी शुरू की हुई है। यह प्रक्रिया निर्विघ्न जारी रहेगी और सरकार राज्य में हर बेरोज़गार नौजवान को नौकरी दिलाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी।उन्होंने यह भी कहा किया कि पंजाब राज्य हमेशा एक ख़ुशहाल राज्य रहा है और यहाँ गंभीर और दुखदायी हालातों का सामना करने वाले अलग-अलग श्रेणियों के व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए नौकरियाँ दीं। आतंकवाद प्रभावित परिवारों के अलावा, दिव्यांग व्यक्ति, शारीरिक शोषण के शिकार और 1984 दंगा पीड़ित के परिवार, फ़ौज में शहीद हुए और कई मामलों में मृतक सरकारी मुलाजिमों के पारिवारिक सदस्यों को नौकरियाँ और वित्तीय सहायता दी गई है।उन्होंने गत समय के दौरान आतंकवाद प्रभावित पीड़ितों के परिवारों को दीं गई नौकरियों का विवरण देते हुए बताया कि मौजूदा समय में पंजाब के आई ए एस कैडर में कम-से-कम पाँच ऐसे अफ़सर हैं जिनकी नियुक्ति पंजाब सिविल सर्विसिज़ (कार्यकारी) में इसी आधार पर की गई है। उन्होंने आगे हवाला देते हुए बताया कि इसी आधार पर पीड़ितों को राहत देते हुए केवल कर और आबकारी विभाग में ही 108 नौकरियाँ दीं गईं, जिसमें 2 ईटीओज़ भी शामिल हैं। इसी तरह 6 आतंकवाद पीड़ितों की बतौर नायब तहसीलदार के तौर पर नियुक्ति की गई और अन्य पीड़ितों की भी कई विभागों में विशेष नियुक्तियाँ (डी एस पी और इंस्पेक्टर आदि) की गई और जो अब भी राज्य में उच्च पदों पर सेवाएं निभा रहे हैं।

इन परिवारों को प्राथमिकता देते हुए पेट्रोल पंप, राशन डीपू और अन्य स्व-रोज़गार स्थापित करने में मदद की गई। उन्होंने कहा कि 1984 के दंगों के शिकार हुए पीड़ितों को भी इसी तरह के लाभ दिए गए और इनको वित्तीय सहायता भी मुहैया करवाई गई।उन्होंने आगे कहा कि पिछले चार सालों के दौरान फ़ौज में शहीद हुए 72 व्यक्तियों को नौकरियाँ दीं गईं जिसमें पीसीएस (कार्यकारी), जैसे कि तहसीलदार, ईटीओ, एसिसटेंट रजिस्ट्रार सहकारी सभा आदि शामिल हैं। और दस व्यक्तियों को जल्द ही इंटरव्यू के लिए बुलाया जा रहा है जबकि 9 परिवारों के नाबालिग बच्चों के लिए नौकरियाँ आरक्षित की गई हैं। इन परिवारों को सम्मान के तौर पर 50 लाख रुपए की वित्तीय सहायता भी मुहैया करवाई जा रही है।राज्य सरकार ने हाल ही में केंद्रीय कृषि कानूनों के विरुद्ध हुए किसान आंदोलन दौरान जान गंवाने वाले किसानों के प्रत्येक परिवार को नौकरी देने का भरोसा दिया है और इस सम्बन्धी प्रक्रिया पहले ही जारी है। ऐसे सभी परिवारों को वित्तीय सहायता भी दी जा रही है।नेताओं ने ज़ोर देकर कहा कि जब ऐसे दूसरे व्यक्तियों को प्रांतीय नीति के अंतर्गत नियमित तौर पर लाभ दिए जा रहे हैं तो इन विधायकों के बच्चों के साथ भेदभाव जायज नहीं होगा क्योंकि मौजूदा समय के दौरान उनके पिता विधायक हैं।

पिछले समय में भी सरकार द्वारा ऐसे लाभ देते समय परिवारों की सामाजिक या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं किया गया। इस कदम की आलोचना करने वाले लोग यह तथ्य भूल गए हैं कि आतंकवादियों द्वारा कत्ल किये गए पूर्व मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह के पोते को डी.एस.पी. की नौकरी दी गई थी। इसी तरह स्वर्गीय विधायक बलदेव सिंह की पत्नी को नायब तहसीलदार की नौकरी दी गई थी। और हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि डिआईजी ए.एस. अटवाल की हत्या के बाद उनकी पत्नी को पी.सी.एस. (कार्यकारी) नियुक्त किया गया था और बाद में उनके पुत्र को पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर के तौर पर नौकरी दी गई थी। मौजूदा मामले में फतेहजंग सिंह बाजवा तब एक नाबालिग था जब दुखद घटना के दौरान उसके पिता ने जान गंवाई थी, जबकि एक हादसे का शिकार होने के कारण राकेश पांडे राज्य सरकार में रोज़गार लेने के समर्थ नहीं था। नतीजे के तौर पर यह बिल्कुल जायज है कि उनके बच्चों को इन नौकरियों की पेशकश की जानी चाहिए।  ज़िक्रयोग्य है कि मुख्यमंत्री ने मंत्रीमंडल के इस फ़ैसले की हिमायत करते हुए यह भी कहा कि एसे बलिदानों को व्यर्थ नहीं जाने दिया जायेगा और उन्होंने दोहराया कि पंजाब सरकार राज्य की शान्ति और सद्भावना के लिए ऐसे हर योगदान को मान्यता देती रहेगी।  

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