अब आतंक नहीं, सब चाहते है जम्मू-कश्मीर में अमन शांति और विकास

जम्मू-कश्मीर(द स्टैलर न्यूज़) रिपोर्ट: अनिल भारद्वाज । आतंक ग्रस्त राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनने के उपरांत अब पूरा प्रदेश अमन-शांति और तरक्की की राह पर चल रहा है। कश्मीर घाटी के चारों और अमन शांति की बातें हो रही हैं। कभी पाकिस्तान का राग रागने बाले आज आतंकवाद विरोधी दिख रहे है। कश्मीर घाटी का युवा पत्थरबाज-प्रदर्शन को छोड़ अब अमन से बैठना चाहता है और धरती का स्वर्ग कहे जाने बाले कश्मीर के लिए विकास चाहता है और उन्हें पता लग चुका है कि देश विरोधी लोग उन्हें गलत इस्तेमाल करते थे। जो अब नहीं होगा। युवा भारतीय सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहता है। कश्मीर के लाल चौक जहां पहले पास के मुल्क का झंडा लेकर लोग घूमते थे वहां अब भारतीय झंडा लहराया हुआ मिलता है।

Advertisements

आप को बतादें कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त किए जाने की दूसरी वर्षगांठ मनाई जा रही है क्या आप जानते है की दो वर्षो में क्या क्या हुआ जम्मू कश्मीर में, अगर नहीं तो पढ़े यह पूरी रिपोट जम्मू कश्मीर की आबोहवा अब बदल चुकी है पुरे जम्मू कश्मीर में आतंक के गढ़ रहे इलाकों से सरहद तक अमन की बयार बह रही है हर और तरक्की की बाते हो रही है कश्मीर में अब सड़कों पर न पत्थरबाज दिखते हैं और न ही राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन करने वाले, गांवों-शहरों में सरकारी इमारतों से लेकर सरहद तक हर और तिरंगा फहर रहा है, यहाँ तक लाल चोक में भी तिरंगा देखने को मिलता है , आतंकवाद को दरकिनार कर युवा पीढ़ी काम धंधे में जुटने लगी है जादातर युवा देश सेवा के लिए भारतीय सेना का रुख कर रहे है पिछले दिनों सेना में भर्ती होने के लिए कश्मीर घाटी और जम्मू में बड़ी बड़ी कतारों में देखे गए युवा का देश प्रेम देखने को मिलता है कश्मीर में बच्चे सड़कों में खेलते हुए नज़र आ रहे है कश्मीर में अब फ़िल्मी सितारे भी दुबारा से रुख कर रहे है और यहाँ पर फिर से फिल्मे बनाई जा रहे है कश्मीर की खूब सुरती को देखने के लिए हरकोई बेचने रहता है। अगर आप मुगल रोड के रास्ते से घाटी का रुख करेंगे तो प्रकृति सुंदरता आपका मन मोह लेगी। पीरपंजाल की सेवन लेक्स ( सात झीलें) तो पूछो ही न जनाव। बस आतंक की बजह से मुख्य सड़क मार्ग के संपर्क में आने से यह हरा और सफेद नुमा मनमोह देना बाला क्षेत्र विकास से कईं दशक वंचित रहा। प्रदेश के दूर से आ रहे लोग कईं-कईं दिनों तक अपने साथियों के साथ टेंट लगाकर दिन रातें विताते और मौजमस्ती करते मिलेंगे। युवापीढ़ी और होशियार बुजुर्ग पढेलिखे लोग हरेभरे पहाड़ों और सफेद चादर से ढकी चादर के दर्शन करते मिलेंगे।

देश-विरोधियों के दिन गए अब नहीं दिखते कश्मीर में पत्थरबाज, तीनों ओर से पाकिस्तान से घिरी उड़ी की भारतीय कमान पोस्ट पर लहराते 60 फीट ऊंचे तिरंगे के साथ आम लोगों के लिए दो सप्ताह पहले खुला भारतीय कैफे

हालांकि, कुछ इलाकों में आतंकी घटनाएं हो रही हैं, लेकिन सुरक्षा बलों के सख्त रुख के चलते ज्यादातर आतंकी व उनके मददगार गायब होने लगे हैं। बदले हालात में अब नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भी शांति है पाकिस्तान से समझौते के बाद दोनों ओर बंदूकें खामोश हैं इसी बीच, सेना ने उड़ी की आखिरी कमान पोस्ट अवाम के लिए खोल दी है तीनों ओर से पाकिस्तान से घिरी इस चौकी पर लहराते 60 फीट ऊंचे तिरंगे के साथ आम लोगों के लिए दो हफ्ते पहले खुला कैफे एलओसी पर स्थिति को बयां कर रहा है। अब यहां नागरिकों के आने पर सफेद झंडा नहीं लगाना पड़ता।

श्रीनगर से उत्तरी कश्मीर के बारामुला और उड़ी की ओर जाते पट्टन वैली में हाईवे किनारे सेब के खूबसूरत बागों में लोग काम में मशगूल हैं। कभी आतंक के गढ़ रहे बारामुला में भी माहौल बदला है। पत्थरबाजी के लिए बदनाम यहां के ओल्ड टाउन में अब हुड़दंगी नहीं दिखते हैं। बारामुला के मुज्जफर बताते हैं कि झेलम में बहुत पानी बह चुका है। आतंकवाद से लोगों को कुछ मिला नहीं, सिर्फ तबाही हुई है। एक साल से यहां अमन है। यहीं दुकान पर बैठे सफेद दाढ़ी वाले व्यक्ति से जब माहौल पर बात की तो उन्होंने सड़क के निचली ओर दफनाए आतंकियों की ओर इशारा कर कहा, हुकूमत का संदेश सबकी समझ में आ रहा है। अब कोई बचाने नहीं आएगा। काम के सिलसिले में उड़ी आए एलओसी से सटे क्षेत्र के ग्रामीण ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि कोरोना संकट में सेना उनकी बहुत मदद कर रही है।
उधर, दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग और पुलवामा में भी हालात काफी बदल रहे हैं। अनंतनाग के अनीश अहमद का कहना है कि आतंकवाद का यहां भारी नुकसान हुआ है। युवा अब इस रास्ते पर नहीं जाना चाहते। कश्मीर के लोग खुद को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 का चंद लोगों ने फायदा उठाया। बदले माहौल में अब सड़कें बनने लगी हैं। विकास के और भी काम शुरू हुए हैं। अनंतनाग के ही तारिक अहमद ने कहा कि हालात सामान्य हो रहे हैं। कुदरत ने हमें जन्नत बख्शी है, लेकिन दहशतगर्दी से घाटी बदनाम हो गई। अब लोगों को सब समझ में आ रहा है। उम्मीद है जल्द ही कश्मीर पर्यटकों से फिर गुलजार होगा
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में काफी कमी आई है। घाटी में साल 2019 में पथराव की 1999 घटनाएं सामने आईं, जबकि 2020 में 255 बार ही पत्थरबाजी हुई। इस साल 2 मई को पुलवामा के डागरपोरा में मुठभेड़ के दौरान आतंकियों को बचाने के लिए लोगों ने पथराव किया। इसके बाद बारपोरा में 12 मई को भी नकाबपोशों ने पथराव किया था। इसके अलावा साल 2021 में पत्थरबाजी की कोई बड़ी घटना सामने नहीं आई है। इससे पूर्व 2018 और 2017 में पत्थरबाजी की , 1458 और 1412 घटनाएं दर्ज हुईं थीं।
बदली आबोहवा में अब कश्मीरी पंडित भी लौटने लगे हैं। धार्मिक महत्त्व के मट्टन में कभी कश्मीरी पंडितों के 500 से ज्यादा परिवार रहते थे, लेकिन 1990 में बदली परिस्थितियों ने उन्हें अपना घर-गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया। मट्टन के ऐतिहासिक मंदिर में वर्षों से सेवा कर रहे वयोवृद्ध सुरेंद्र खेर ने बताया कि कश्मीरी पंडित अब लौट रहे हैं। मट्टन में कश्मीरी पंडितों के 20 परिवार हो गए हैं। करीब 30 वर्ष पहले पलायन कर गए लोग फिर घाटी में मकान बना रहे हैं। उनका कहना है कि कश्मीर बदल रहा है। सभी अमन चाहते हैं।
कोरोना के चलते भले ही लोग घरों से कम निकल रहे, लेकिन कश्मीर की दिलकश वादियां पर्यटकों को खींचने लगी हैं। बदले हालातों का पर्यटन पर असर दिखने लगा है। पर्यटन कारोबारियों का कहना है कि इस साल शुरू में काफी सैलानियों ने घाटी का रुख किया। पहलगाम में पर्यटन से जुड़े फयाज और जावेद अहमद का कहना है कि जनवरी- फरवरी में बड़ी तादाद में पहुंचे पर्यटकों ने उम्मीद जगाई है। बेशक, इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर ने सब कुछ चौपट कर दिया लेकिन आने वाले समय में फिर कश्मीर पर्यटकों की पहली पसंद होगा। उधर, श्रीनगर में डल झील किनारे, व पीरपंजाल के पीर की गली भी सुबह-शाम रौनक दिखने लगी है। हालांकि, पर्यटक कम हैं, लेकिन लोग बेफिक्र होकर परिवार के साथ टहल रहे हैं
वहीं दूसरी और नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम के छह महीने पूरे होने पर राजौरी और पुंछ जिले में सीमा पर रहने वाले लोग ऐसे ही शांति बने रहने की भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं, राजौरी जिले में 120 किलोमीटर और पुंछ में 90 किलोमीटर तक फैली नियंत्रण रेखा से लगे गांवों में रहने वाले लोग सीमा पर गोलाबारी में जान-माल की हानि के कारण भय और पीड़ा से भरा जीवन व्यतीत करते थे। राजौरी में नियंत्रण रेखा के सटे 50 से अधिक गांव और पुंछ जिले में लगभग 30 गांव हैं। राजौरी के चार गांव घनी आबादी वाले हैं, जो कांटेदार तार के आगे स्थित हैं, जबकि आठ गांव पुंछ जिले में कंटीले तार से आगे स्थित हैं। राजौरी के नौशहरा सेक्टर के डिंग के सरपंच रमेश चौधरी ने कहा कि हमारे गांव में आए दिन गोला बारी होती थी कठुआ से ले कर पुंछ तक गोला बारी होती थी पाकिस्थान द्वारा संघर्ष विराम किया जाता था अब दोनों देशो ने एक साथ जो फेसला लिया था उस से लोगो में आज ख़ुशी का महोल है क्यों की संघर्ष विराम को बंद हुए छे महीने हुए है संघर्ष विराम उल्लंघन में कई लोगों की मौत और कई लोगों के घायल होने के साथ-साथ दर्जन से अधिक घरों को नुकसान पहुंचा है। गोलाबारी के डर से हम फसल की बुआई व कटाई भी ठीक से नहीं कर पा रहे थे अपने खेतो में नहीं जा पाते थे कहीं आ जा नहीं सकते थे उन्होंने कहा की आज में दोनों देशों को मुबारखबाद देते हुए जो आज छे महीने हो गए और गोला बारी नहीं हुई उन्होंने कहा की सीमा पर रहने वाले लोगो में ख़ुशी का माहौल है क्यों कि गोलाबारी में दोनों देशो में जब गोला बारी होती थी तो गरीब ही मारा जाता था दोनों तरफ उन्होंने कहा की आज हमारे बच्चे पढ़ाई कर रहे है किसान फसल उगा और काट रहा है बिना किसी डर के उन्होंने कहा की में दोनों देश की जनता और सरकार को मुबारख देता हूं उन्होंने आगे कहा कि सौ दिन एक सपने के सच होने की तरह हैं, जहां एलओसी पर एक भी गोली नहीं चलाई गई है और एक अप्रत्याशित शांति बनी हुई है
केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के बाद अब ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं कि केंद्र की मोदी सरकार भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने को लेकर तैयारी शुरू करने जा रही है. जम्मू कश्मीर में परिसीमन भी किया जा रहा है ताकि सभी को बराबर का हक़ मिले कश्मीर को अपना और जम्मू को अपना हक़ मिले। जम्मू कश्मीर में आने वाले समय में काफी बदलाव होगा केंद्र कश्मीर में युवाओ को रोज़गार देने का प्रयास कर रहा है कश्मीर हो या फिर जम्मू बदलाव हो रहा है । कश्मीर में जहां एक समय में जाने से लोग डरते थे अब वाही लोग कश्मीर का रुख कर रहे है अब हर कोई कश्मीर में जाना चाहता है
राजौरी के नोशहरा इलाके के भवानी पंचायत के सरपंच सुनील चोधरी ने भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच इस संघर्ष विराम समझौते को प्रभावी बताते हुए कहा कि दोनों पक्षों की सेनाओं के बीच शांति प्रक्रिया को इसी तरह से कायम रखने के लिए कदम उठाने चाहिए। हम गांव में रहते हैं और एलओसी पर एक भी गोली ग्रामीणों द्वारा स्पष्ट रूप से सुनी जाती है। कई बार लगातार भारी गोलाबारी रात की नींद हराम कर देती थी और हम लोग दहशत में रहते थे उन्होंने कहा की हम ने कई बार आवाज़ उठाई थी की इस संघर्ष विराम उल्लंघन को बंद किया जाए उन्होंने कहा की हमारे बच्चे आज पड़ाई कर रहे है उन्होंने कहा की इन सो दिनों में हमारे सीमा के लोगो ने ख़ुशी से गुज़ारे
वहीं दूसरी और नोशहरा के रहने वाले रोहित चौधरी ने संघर्ष विराम उल्लंघन को बाद हुए और एक सौ दिन पुरे होने पर भारत और पाकिस्थान देश को बधाई दी उन्होंने कहा की जब भी गोला बारी होती थी तो दोनों देश के हालत खराब होते थे उन्होंने कहा की सौ दिनों से दोनों और शांति बनी हुई है और सीमा पर रहने वाले लोग अमन और शांति से आज जी रहे है में दोनों और की सरकारों से मांग करता हूं की इसी तहर हमेशा के लिए शांति बनी रहे ताकि सीमा पर रहने वाले लोग अमन और चेन की जिंदगी गुज़ार सके । 26 फरवरी के बाद से एलओसी पर एक भी गोली नहीं चलाई गई है जो दर्शाता है कि संघर्ष विराम समझौता पूरी तरह से प्रभावी है। इस प्रदेश का हरेक व्यक्ति विकास चाहता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here