दातारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। सभी महीनों के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कही जाती है, परन्तु फाल्गुन की चतुर्दशी सबसे महत्त्वपूर्ण है और महाशिवरात्रि कहलाती है। हमारे सभी शास्त्रों एवं पुरानों पुराणों में उसका वर्णन है। परम शिवभक्त एब्व्म कई शिव मन्दिरों में अगाध श्रद्धा रखने वाले मुकेश रंजन ने कहा जो भी भक्त महाशिवरात्रि के दिन पूरी श्रद्धा एवं आस्था से व्रत उपवास करके बिल्व के पत्तों से आशुतोष शिव की पूजा करता है और रात्रि भर जागरण करता है तो शिव उसे नरक से और तमाम विपत्तियों से बचाते हैं और सुख वैभव एवं मोक्ष प्रदान करते हैं और व्यक्ति स्वयं शिवमय हो जाता है। दान, यज्ञ, तप, तीर्थ यात्राएं, व्रत इसके कोटि अंश के बराबर भी नहीं हैं। मुकेश रंजन ने कहा शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव और प्रभा वाले लिंग रूप में प्रकट हुए।
उन्होंने कहा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के निकट होता है। अतः इसी समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग अथवा मिलन होता है। अतः इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है दुखों और विपत्तियों से छुटकारा मिलता है ,सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है । यही शिवरात्रि का महत्त्व है। उन्होंने कहा इसमें व्रत रखने का विशेष महत्त्व है ,पूरी रात्री जागकर चार प्रहर की पूजा का बहुत लाभ होता है , उसमें शंकर के कथन को आधार माना गया है- ‘मैं उस तिथि पर न तो स्नान, न वस्त्रों, न धूप, न पूजा, न पुष्पों से उतना प्रसन्न होता हूं, जितना उपवास से बल्कि श्रद्धा और उपवास से प्रसन्न होता हूँ ।
उन्होंने कहा इसकेलिए रात्रि में उपवास चार प्रहर की पूजा करें करें। दिन में केवल फल और दूध पिएं। भगवान शिव की विस्तृत पूजा करें, रुद्राभिषेक करें तथा शिव के मन्त्रों का जाप करें। उन्होंने कहा शिव मन्त्र का यथा शक्ति पाठ करें और शिव महिमा से युक्त भजन गाएं। ‘ऊं नमः शिवाय’ मंत्र का उच्चारण जितनी बार हो सके, करें तथा मात्र शिवमूर्ति और भगवान शिव की लीलाओं का चिंतन करें। रात्रि में चारों पहरों की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे में शहद को मुख्यतः शामिल करना चाहिए।
मुकेश रंजन ने कहा महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों द्वारा अत्यंत श्रद्धा व भक्ति से मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिन एक मार्च को है। शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए बहुत शुभ है। भक्तगण विशेष पूजा आयोजित करते हैं, विशेष ध्यान व नियमों का पालन करते हैं। इस विशेष दिन मंदिर शिव भक्तों से भरे रहते हैं, वे शिव के चरणों में प्रणाम करने को आतुर रहते हैं। मंदिरों की सजावट देखते ही बनती है। हजारों भक्त इस दिन कांवड़ में गंगा जल लाकर भगवान शिव को स्नान कराते हैं। महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित दो कथाएं इस पर्व से जुड़ी हैं। उन्होंने बताया एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्घ्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से। उन्होंने कहा इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का तांडव और भगवती का नृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा तांडव नृत्य से सृष्टि खंड-खंड हो जाए। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।