आलौकिक राम राज्य की स्थापना हेतू सर्वप्रथम प्रभु राम को जानना होगा: श्रेया भारती

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श्री राम कथा में नतमस्तक हुए द ग्रेट खली- होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। युवा परिवार सेवा समिति द्वारा रोशन ग्र्राउंड में सात दिवसीय श्री राम कथामृत का भव्य आयोजन किया गया है। जिसमें दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान से श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री श्रेया भारती जी ने अंतिम दिवस में बताया कि राम राज्य क ो स्थापित करने के लिए राम को जानना होगा। साध्वी जी ने रामराज्य प्रसंग क ो बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। समस्त रामायणों के समन्वय से युक्त इस श्री राम क था में अनेकों ही दिव्य रहस्यों का उद्घाटन किया गया, जिनसे आज लोग पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।

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उन्होंने बताया कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के मार्गदर्शन में अयोध्या का राज्य सभी प्रकार से उन्नत था। लेकिन क्या यही राम राज्य की वास्तविक परिभाषा है तो इसका जवाब है नहीं। अगर यही रामराज्य की सही परिभाषा है तो लंका भी तो भाौतिक सम्पत्रता, समृद्वि, ऐश्वर्य, सुव्यवस्थित सेना में अग्रणी थी। परन्तु फि र भी उसे राम राज्य के समतुल्य नहीं कहा जाता क्योंकि लंकावासी मानसिक स्तर पर पूर्णता अविकसित थे। उनके भीतर आसुरी प्रवृत्तियों का बोलबाला था। वहाँ की वायु तक में भी अनीति, अनाचार औैर पाप की दुर्गन्ध थी। जहाँ चारों ओर भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता का ही सम्राज्य फ ैला हुआ था।

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राम के राज्य की बात सुनते हीे अकसर मन में विचार आते हैं कि राम राज्य आज भी होना चाहिये। पर विचारणीय बात है कि राम राज्य की स्थापना होगी कैसे? जिस राम के विषय में तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में बड़े विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने अपने राज्य के माध्यम से बता दिया कि एक आदर्श राज्य कैसा होना चाहिये। यहां एक आदर्श राजा शासन कर रहा हो।

राम राज्य में हर इन्सान धर्म संयुक्त आचरण करता था। श्रुति नीति भाव शास्त्रों मे जो जीवनचर्या की नीति थी जैसा आचारण करने को लिखा था वैसा ही आचरण था सबका। चारो चरण धर्म जगमांहि : राम जी के सम्पूर्ण शासन व्यवस्था का आधार क्या था? धर्म, वह स्वयं मूर्तिमान धर्म है और उनके राज्य में हर जगह पर व्यक्ति, हर वस्तु में एक चीज परिलक्षित हो रही है, धर्म। राम राज्य में अपराधिक प्रवृतियां नहीं थी। चलिये।

साध्वी जी ने कहा कि राम राज्य के आधार, श्री राम थे जो ब्रह्यज्ञानी थे। यही कारण था कि वो अपनी प्रजा के हितों का ध्यान रखते थे। उन्होनें अपनी प्रजा के साधरन लोगों क ो भी कभी अनदेखा नहीं किया। सब के लिए समान व्यवस्था थी। उनकी नज़र में कोई अपेक्षित नहीं था। इसलिए हमारे महापुरूषों ने कहा कि राजा को ब्रह्यज्ञानी होना चाहिए या फिर किसी ब्रह्यज्ञानी को राजा बना दो। वर्तमान समय में भी यदि हम ऐसे ही अलौकिक राम राज्य की स्थापना करना चाहतें है तो सर्व प्रथम प्रभु राम को जानना होगा।

इस अवसर पर स्वामी उमेशानंद, स्वामी सज्जानानंद, स्वामी चिन्मयानंद, स्वामी गिरदरानंद, मनवीर ङ्क्षसह राणा, दलीप ङ्क्षसह द ग्रेट खली, मुनीष गुप्ता (बिल्ला ब्रिक्स) एवं पत्नी, सतगुरू सेवा समिति, साजन विक्रमजीत ङ्क्षसह पन्थीयां, पं रामानुज, तहसीलदार अरिवंद प्रकाश वर्मा, पूर्व तहसीलदार विजय शर्मा, वीएस जसवाल आदि ने दीप प्रज्जवलित किया।

अंत में प्रभु की पावन आरती में पाषर्द सुनीता दुआ, संजीव दुआ, भारत भूषण वर्मा, पाषर्द कमलजीत कटारिया, डा. प्रितपाल पनेसर, डा. निशा पनेसर, संदीप शर्मा एवं परिवार, सागर, वरिंद्रर मरवाहा, प्रेम ङ्क्षसह परोहित, सुधीर कावरा, शाम सुंदर, मरवाहा परिवार, सरपंच परमजीत ङ्क्षसह, रमेश चंन्द्र गम्भीर, कुलदीप सैनी, शमिंदर ङ्क्षसह, हरिश खोसला, कृष्ण गोपाल आंनद, अकुंश गोयल, सुनील लाखा, भी मौजूद थे।

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