होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से स्थानीय आश्रम गौतम नगर में धार्मिक कार्यक्रम करवाया गया। जिसमें आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री कमलेश भारती जी ने बताया कि वैदिक गुरूकुल को मानव निर्माण की उद्योगशालाएं कहा जाता था क्यों कि उद्योगशालायों में विद्यार्थियों के अंदर कूट-कूट कर सृजनात्मक विचार भर दिए जाते थे। वहां होता था, उनके प्रत्येक पक्ष का पूरण परिष्कार! प्रति भायों सहज अंकुरण! चरम विकास! बस यूं कहिए, इन गुरूकुलों की पावन गोद में पहले बालकों का सवार्गीन निर्माण किया जाता था। वहां कर्म कुरू- कर्म करो, पुरूषार्थ करो। दिवा मा स्वापसी .. उपरि शय्यां वर्जय-मात्र रात्रि में शयन करो, दिन मे शैया का संग मत करो यानि आलस्य का त्याग करो जैसी शिक्षा दी जाती थी।
उस समय जब पाठ पढायें जाते थे तो केवल मात्र श्यामपट पर लिखा नहीं दिया जाता था जिसे बच्चों ने अपनी कापियों पर उतार लिया और फिर जब परीक्षा काल आया तो उसका रट्टा लगाया और उत्तर पत्र पर उड़ेल दिया। नहीं! वहा तो गुरूदेव कई योजनाबद्ध विधियों से तथ्यों को समझाते थे। कभी आगमन, कभी निगमन पद्धति का सहारा लेते थे भाव कि गुरूकुल से केवल एक शात्र का नहीं अपितु एक श्रेष्ठ मानव का निर्माण होता था। किन्तु वर्तमान समय में इस प्रकार के गुरूकुलों का सर्वथा अभाव है। अंत: जितना संभव हो, उतना उसमें उक्त विधाएं जोडऩे का प्रयास किया जाना चाहिए। आज हमें अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ वैदिक ग्रंथों, अच्छे साहित्य में दिए ऐसे दिव्य विचारों से परिचित कराना होगा, जहां से उन्हें शुभ संस्कार मिल पाएं, नैतिक शिक्षा उनके व्यवहार व आचरण में उतार सके।