योग का मार्ग कठिन है, लेकिन मंजिल तक जरूर पहुंचाता है: आचार्य चंद्र मोहन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। प्रभु राम लाल जी महाराज, स्वामी मुलखराज जी महाराज तथा सदगुरुदेव चमन लाल जी महाराज की अनुकंपा से योग साधन आश्रम डगाना रोड पर मनाए जा रहे चार दिवसीय व्यास पूजा महोत्सव के तीसरे दिन भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए आश्रम के आचार्य चंद्र मोहन ने कहा कि गुरु अपने शिष्यों से अपार प्रेम करते हैं। उनका संबंध मन की तारों से होता है। जब तारे खटकती है तो फिर रुका नहीं जाता। सदगुरुदेव जब शारीरिक रूप में हमारे साथ है तो हम उनसे बातें करके अपनी जिज्ञासाओं का निवारण करते थे। आज भी वह हमारे साथ हैं क्योंकि ईश्वर कन कन में विराजमान होता है। वह आज भी हमें शिक्षाएं प्रदान कर रहे हैं। हम गुरु धाम पर उनके साथ जुड़ी हुई अपनी यादों को ताजा करने के लिए ही आते हैं।

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गुरुधाम में आकर हम बाहरी दुनिया को अगर भूल ना पाए तो वहां आने का भी कोई लाभ नहीं, लेकिन गुरु की कृपा पाने के लिए हमें कुछ ना कुछ तो करना होगा। गुरु महाराज कहा करते थे कि योग का मार्ग कठिन है, लेकिन मंजिल तक जरूर पहुंचाता है। जब तक हम योग के मार्ग पर नहीं चलेंगे तो प्रभु का आशीर्वाद कैसे मिलेगा। अगर हम दुनिया में ही मस्त रहना चाहते हैं तो फिर मोक्ष प्राप्ति के लिए ना जाने हमें कितने जन्म तक भटकना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि योग मार्ग पर चलने के लिए संसार से जूझना पड़ता है। संसार के शोर में हम कहीं खो ना जाए इसका ध्यान रखना होगा। सबसे पहले अपनी मंजिल निश्चित करनी होगी। उन्होंने कहा कि एक तरफ प्रभु धाम है तो दूसरी तरफ संसार की माया।

उन्होंने कहा कि सच्चे गुरु जब अपने शिष्य को शरण प्रदान करते हैं तो फिर उसको रास्ते में नहीं छोड़ते। उन्होंने कहा कि हमें एक बात समझ लेनी चाहिए कि प्रभु के भक्त सामाजिक प्राणी नहीं बल्कि प्रभु के प्राणी होते हैं, लेकिन हम आजकल सांसारिक चीजों का अधिक ध्यान रखते हैं और इसके लिए भक्ति तक छोडऩे को तैयार हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु का रास्ता साफ है और इसमें लाभ हानि नहीं देखी जाती, परंतु लोग योग को भी औपचारिक रूप से ग्रहण करते हैं। उन्होंने कहां की अगर भगवान से प्रेम करना है तो सच्चा प्रेम करो। इसके मुकाबले में कोई भी चीज रास्ते में नहीं आनी चाहिए। जिस प्रकार हम संसार में किसी चीज से प्रेम करते हैं तो उसके लिए सब कुछ छोडऩे को तैयार हो जाते हैं और हर समय उसी की बातें करते हैं। उसी के ध्यान में मगन रहते हैं। इसी तरह हमें भगवान की भक्ति करते समय भी बाहरी दुनिया से मुख मोडऩा होगा। केवल भगवान की बातें करनी होगी। उनकी महिमा का गुणगान करना होगा। इसके लिए अपने मन को मजबूत करना होगा।

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