ऋषियों की विद्या योग तभी सार्थक हो सकती है अगर हम इस पर अमल करें: आचार्य चंद्र मोहन जी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन मे सप्ताहिक सत्संग के दौरान भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए आश्रम के आचार्य चंद्र मोहन जी ने कहां की प्रभु रामलाल जी हजारों वर्षों के बाद योग को फिर से उजागर करके हमारे सामने लाए। उन्होंने कहा कि ऋषियों की विद्या योग तभी सार्थक हो सकती है अगर हम इस पर अमल करें। उन्होंने कहा कि सदगुरुदेव चमन लाल जी महाराज कहा करते थे कि योग सभी के लिए सुखदायक है। यह कोई दिखावा नहीं है। दूसरी चीजों का अंत नाश होता है। संसार का ज्ञान भ्रमित हो रहा है। योग संसार के दुख दूर करने के लिए है। हम हठयोग नहीं करते इसीलिए हम दुखी हैं। प्रभु संसार की माया के स्वामी है और हम इस माया के दास हैं। देश में धर्म पीछे की तरफ जा रहा है। धर्म सत्य अहिंसा पर आधारित है।

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संसार अपने लाभ के लिए धर्म को छोड़ सकता है।जबकि भगवान राम ने सत्य के लिए सिंहासन छोड़ दिया था श्रवण ने धर्म के लिए प्राण दे दिए थे। उन्होंने कहा कि शरीर में कई चीजें हैं जिन्हें हमने ठीक रखना है। क्योंकि धर्म के लिए शरीर जरूरी है। धर्म करना है तो शरीर को ठीक रखना ही होगा। उन्होंने कहा कि हठयोग की बजाय हम लोग दवाई से रोग ठीक करना चाहते हैं। जबकि योग के साधनों से वह रोग भी ठीक हो जाते हैं जो किसी दवा से ठीक नहीं होते। हठयोग संपूर्ण विज्ञान है। उन्होंने कहा कि शरीर को अन्नमय कोष कहा गया है। लेकिन अन्न भी सात्विक होना चाहिए। तामसिक बा राजसिक अन्न हमें बीमारी की तरफ ले जाता है। सात्विक आहार के द्वारा हम लंबी आयु जी सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमने इस कोष को रोगमय कोष बना दिया है।शरीर का एक भाग मन भी है। इस मन को कैसे ठीक रखना है। इसका काम संकल्प लेकर काम करना है। इसके अंदर भाव चलते रहते हैं।

भाव गलत हों तो मन दुखी हो जाएगा। हमें अपने भावों को शुद्ध रखना होगा। मन साफ हो जाएगा तो सारे दुख दूर हो जाएंगे। ईश्वर से प्रार्थना करो कि हमारे मन में कोई  बुरा विचार ना आए। मन को शुद्ध रखने के लिए ध्यान जरूरी है। ईश्वर का स्मरण व चिंतन करो। मनोमय कोष बहुत बड़ा है इसमें चिंताएं मत भरो। इसको चिंतामय कोष ना बनाओ| भगवान के नाम की मस्ती करो| जिसके अंदर चिंता है वह कभी भी स्थिर नहीं हो सकता| मन के आगे बुद्धि है। इसे विज्ञानमय कोष कहते हैं।पर बुद्धि में हमने संसार की चिंताएं भर रखी हैं। ऋषि-मुनियों ने हमें बहुत ज्ञान दिया है । उसे हमने बुद्धि में भरना है। धार्मिक किताबों में ज्ञान भरा पड़ा है । पर हमने उन्हें तांलों के अंदर बंद करके रखा हुआ है। जब यह कोष खराब हो जाता है तो नींद नहीं आती । हमें परेशान करती हैं। हमने इसे भ्रममय कोष बना लिया है। इसके आगे आत्मा है जो आनंद का कोष है। इसमें प्रकाश ही प्रकाश है। जो जहां तक पहुंच जाता है उसे आनंद की प्राप्ति होती है। पर इसके लिए हमें पहले तीनों कोषों को ठीक करना होगा।

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