कहानी “समय”(भाग-2)

समय जैसा कि हम कहानी के पिछले भाग में पढ़ चुके है शेखर नाम का एक व्यक्ति जयपुर में नया-नया आया था और वह सरकारी कर्मचारी था। वह जयपुर में किसी को नहीं मानता। जब वह पहले दिन दफ्तर के लिए निकलता है तब अचानक उसकी गाड़ी चलते-चलते बंद हो गई थी। वह गाड़ी को ठीक करवाने के लिए गिराज के पास ले गया था क्योंकि गाड़ी को ठीक होने के लिए काफी समय लग रहा था। तब वह किसी दुकान में चाय पीने के लिए रुका। वहां उसकी मुलाकात किसी गिरिघर नाम के व्यक्ति से हुई और गिरिघर की ही दुकान थी।
अब-आगे
शेखर ने दुकान वाले भाई को उसके छोटे नाम से पुकारी और मुस्कराया। तब गिरिघर बोला-माफ कीजिए साहब हमने आपको पहचाना नहीं और आप मेरा छोटा नास कैसे जानते हो तब शेखर ने बोला अरे गिरि यार तुम लगता बूढ़े हो चुके हो या फिर तुम्हारी यादशात कमजोर हो चुकी अरे मैं हूं तुम्हारा शेखू। याद नहीं क्या तुम्हें गीता मैडम के घर में दूध पहुंचाया करते है रविवार के इक्ट्ठे नदी पर जाया करते थे और वो गणित वाले मास्टर का किस्सा भी भूल गए। एक बार उन्हें मुझे स्कूल लेट पहुंचने पर मेरी डंडे से पिटाई की थी। तब तुमने गुस्से में आकर चोरी-चुपे उनकी साइकिल के टायर की हवा निकाल दी थी। ये सब बात सुनकर गिरि खूब हंसा और बोला अरे तो, तुम शेखू हो अरे वाह-तुम तो पूरे जैटलमैन बन चुके हो। ये कह कर दो ने एक-दूसरे के गले मिले और दोनों की खुशी से आंसू टपक रहे थे। तब शेखर बोला अरे यार अब रोता ही रहेगा क्या या फिर चाय भी पिलाएगा। हां, क्यों नहीं गिरिधर ने तुरंत चाय बनाई और दोनो दोस्त मिलकर पिछली बाते करने लगे और तब गिरि ने पूछा-तुम यहां कैसे तब शेखू ने जवाब दिया कि वो अब सरकारी कर्मचारी बन चुका है और अभी एक हफ्ते पहले उसका तबादला जयपुर में हुआ था। शेखू ने परिवार के बारे में बताया कि वो और उसकी पत्नी साक्षी और दो लडक़ो के साथ रहता है। माँ का पिछले साल देहांत हो चुका था। पिता जी के बारे में तो तुम पहले ही जानते थे। वो स्कूल मे चपड़ासी का काम करते थे। पर अब तो उनके गुजरे कई साल बीत चुके है। मेरे दोनों बेटे जुड़वा है और दोनों एक साथ नौंवी कक्षा में पढ़ते है। अरे ये तो मैं ही अकेला बोले जा रहा हूं तुम भी सुनायो यार। गिरि बोला मैं क्या सुनाऊं तुम जानते हो सब कुछ मेरे बारे में। हाँ, जानता तो हूं शेखर ने ये कहकर उसके कंधे पर हाथ रखकर। गिरि तुम तो जानते हो पिता जी के चले जाने के बाद मेरे मामा को हमें अपने शहर ले गए। वहां मां ने एक फैक्ट्ररी में काम करके मुझे पढ़ाया और मैं भी कभी-कभी जब टाइम मिलता तो फैक्ट्ररी चला जाता था। फिर जैसे-तैसे मैंने कॉलेज पास किया।

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पार्ट-टाइम नौकरी करने लगा फिर कहीं जाकर मैनें सरकारी नौकरी के लिए आवेदन दिया और मैं वन-विभाग में नियुक्त हुआ। चौदह साल पहले मेरी शादी साक्षी नाम की लडक़ी से हुई थी और मेरे भाभी की बहन की देवरानी की बेटी थी। तो कभी-कभी अपने भाई जी के साथ घर आती थी और वहीं पर माँ को पसंद आई थी और मुझे भी। मैं अब एक खुशहाल जीवन व्यतीत करता हूं। अरे ये तो थी मेरी आप बीती शेखर ने गिरि से कहा अब तुम कुछ कहो दोस्त अरे तुम भी तो मेरे बारे सब-कुछ जानते हो तुम जब शहर चले गए तो मैने बाहरवीं कर कॉलेज में दाखिला लिया। वहाँ मेरी मुलाकात विपिन नाम के लडक़े से हुई जो कि बहुत अमीर था पर इतना कहकर गिरि की आँखे नम हो गई। अरे ये क्या तुम तो नए दोस्त का नाम लेते ही रोने लगे लगता है बहुत खास है ये विपिन यह कह कर शेखर ने गिरि को अपने गले से लगा लिया। तब गिरि बोला बस यहीं समझो उस दिन से मेरी बर्बादी के दिन शुरू हो गए थे। क्या शेखर ने बड़ी हैरान से गिरि को देखा और बोला ये कह रहे हो तुम मैं कुछ समझा नहीं विपिन दोस्त नहीं ब्लकि, दुश्मन से भी ज्यादा गिरा हुआ और कही न कही मैं भी उसकी संगत में मिल चुका था। मैं सिर्फ कालेज टाइम पास के लिए जाता था। पढ़ाई तो बस बहाना थी। दिन भर अवारा गर्दी करना। पैसा फिजूल करता था। जुआ भी खेलने लगा था और तो मां बाबू के साथ झगड़ा करता दिन-बीत गए मैं विपिन दोनों साथ में रहते थे और चार-पांच लडक़े भी मेरे साथ रहते थे। हम सब मिलकर खूब मौज मस्ती करते थे। मैं घरवालों से झूठ बोल कर फीस के नाम पर पैसे ठगने लगा और फिर एक दिन-एक दिन क्या थे कह कर गिरि जोर से रोने लगा गया। एक दिन क्या हुआ कुछ बोलो वो एक दिन…. अगला भाग शेष

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