अमृतसर (द स्टैलर न्यूज़)। जब जब भी चुनावों का मौसम देश में आता है, दल बदल का लोकतंत्र विरोधी खेल चलता ही है। इसके साथ ही कोई न कोई व्यर्थ का झगड़ा दूसरी पार्टियों को बदनाम करने के लिए यह चुनावी वीर उठाते हैं। यह भी सच है कि चुनाव के बाद न नेता दिखाई देते हैं न जनता की कोई चिंता करते हैं। इन दिनों कुछ नेताओं ने भगत सिंह की फोटो केजरीवाल के साथ लगाने पर जो बवाल मचाया है, एक दम सारहीन है। हम सब अपने घरों में अपने नेताओं, देवी देवताओं और अपनी फोटो लगाते हैं। कई बार तो सभी महापुरुषों के चित्र एक ही फ्रेम में बंद करके रखते हैं। अगर नहीं लगने चाहिए तो उनके चित्र नहीं लगने चाहिए जो अलगाववादी है, आतंकवादी है, देश के दुश्मन है या स्वतंत्रता के संग्राम में जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया और आज भी देश में सत्ता के शिखरों पर कब्जा करके बैठे हैं।
क्या देश के नेता और जागरूक जनता नहीं जानती कि कुछ ऐसे भी तथाकथित अहिंसा वादी नेता हैं जिन्होंने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की फांसी पर रोक लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। ऐसे भी नेता हैं जो वीर सावरकर की कुर्बानी को कम करके आंकते हैं। ऐसे भी नेता हैं जिनके पूर्वज अंग्रेजों से मिले रहे और 1857 की क्रांति में इनके पूर्वजों की सेनाओं ने अंग्रेजों का साथ दिया और हम 1857 की क्रांति विफल करने का कारण बने। पंजाब, मध्यप्रदेश आदि प्रांतों में ऐसे बहुत से राज परिवार हैं जिन्होंने अंग्रेजों के जमाने में भी राजा बनकर मौज मस्ती की और अब भी हमारे लोकतंत्र के राजा बने बैठे हैं।
अच्छा हो इनको सत्ता के शिखरों से दूर किया जाए और इनकी फोटो न लगाई जाए। जो भी देशभक्त नागरिक अपना आदर्श शहीदों को मानता है वे शहीदों के साथ अपना चित्र क्यों न लगाएं। लगाने में बुराई क्या है? जो देश चंद्र और मंगल तक पहुंच रहा है उस देश के नेता इसी बात पर लड़वा रहे हैं कि किसके गले में माला डाली और उतारकर किसको पहनाई। बहुत अच्छा हो यह चुनावी विवाद वीर नेता अपना आत्मविश्लेषण करें और देखें कि क्या वे शहीदों के बताए रास्ते पर चल रहे हैं।