मान साहबः नई कमिशनर के आते ही चकाचक हो गया कमरा, जनता लई ठन-ठन गोपाल, कमरे की साज सज्जा है जरुरी

पिछले 2-3 दिन से नगर निगम होशियारपुर में स्थित निगम कमिशन का कमरा काफी चर्चाओं में है। कारण है कि एक तरफ तो आदर्श चुनाव आचार संहिता के लागू होने के चलते नए विकास कार्य बंद हैं व जो पहले से चल रहे थे या संहिता से पहले जारी कर दिए गए वही चल रहे हैं तथा दूसरी तरफ निगम कमिशनर के कमरे की साज सज्जा करवा दी गई। आपको बता दें कि शहर के विकास का छोटा सा काम भी करवाया जाना हो तो पहले वह काम हाउस में पास होता है, इसके बाद टैंडर लगाए जाते हैं और उसके बाद वर्क आर्डर आदि जैसी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद जिसमें लगभग तीन से चार माह का समय लग जाता है, फिर कहीं जाकर काम शुरु होता है। लेकिन अधिकारी वर्ग के लिए फंड खर्च करना कितना आसान है कि उन्हें किसी की इजाजत की भी जरुरत नहीं। भले ही फंड 10-20 हजार का ही खर्च किया गया हो, लेकिन सवाल है कि आखिर एेसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी कि निगम को कमिशनर के कार्यालय पर एकाएक खर्च करके उसे और सुन्दर बनाने की कवायद करनी पड़ी, जबकि शहर के कई विकास कार्य शुरु होने के इंतजार में हैं। इतना ही नहीं नगर निगम की अलग-अलग ब्रांचों में कई प्रकार की सामग्री की जरुर है, जिनमें कम्युटर व प्रिंटर जैसे महत्वपूर्ण उपकरण शामिल हैं को लेना निगम द्वारा जरुरी नहीं समझा गया तथा पूछने पर एक ही जवाब दिया जाता है कि जल्द ही सारा सामान खरीदा जा रहा है, लेकिन सामान निगम में कब आएगा इसके बारे में कोई भी वाजिव जवाब देने में असमर्थता जता रहा है।

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चर्चा है कि आदर्श चुनाव आचार संहिता के चलते कई अधिकारियों को बदली का डर सता रहा है तथा एेसे में अगर बड़ा अधिकारी पक्ष में रहे तो काफी राहत मिल जाती है तथा अधिकारी को खुश करने का इससे बड़ा उपाय क्या हो सकता है कि एक्ट में से कोई एेसा पेंच निकाला जाए कि कमरे की साज सज्जा भी हो जाए और उन पर कोई सवाल भी न उठाए। वैसे सच ही कहा गया है कि जथा राजा तथा प्रजा। जब पंजाब सरकार के कई बड़े मंत्री एवं विधायक जिनके पास पहले क्या था और आज क्या है की हकीकत सभी के सामने है तो एसे में अधिकारी वर्ग पीछे क्यों रहे। इतना ही नहीं अधिकारी जिसे निगम में चार्ज संभाले हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं के द्वारा लोगों से मिलने का समय भी तय कर दिया गया है।

अब जबकि उसके द्वारा समय तय कर दिया गया है तो एेसे में जनता को छोड़ अन्य कार्यों में व्यस्त होना भी तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता। अधिकारी द्वारा जनता का समय फिक्स किए जाने के बाद जब लोग उनसे मिलने पहुंचे तो पता चला कि पहले तो अधिकारी सीवरेज बोर्ड के अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे तो बाद में कार्यालय के अधिकारियों के साथ किसी मामले पर चर्चा चल रही थी। यानि कि 12 बजे से लेकर करीब पौने एक बजे से अधिक समय तक जनता बाहर इंतजार करती रही और अधिकारी अपने में व्यस्त रहे। भले ही मिलने वाले 2-4 ही क्यों न हों, लेकिन सवाल है कि जब जनता के लिए समय फिक्स कर दिया है तो फिर कार्यालय के काम के लिए तो समय ही समय है।

खैर छोड़िए यह सब तो चलता ही रहेगा, क्योंकि अधिकारी वर्ग के पास अधिकार और उनकी कलम की ताकत ही इतनी है कि वे किसी मंत्री या अन्य संवैधानिक पदों पर आसीन की बात सुनना या उसे अनसुना करना अपना अधिकार और शान समझते हैं। क्योंकि किसी भी कागज पर अधिकारी के साइन होंगे तो ही तो बात आगे बढ़ेगी। आगे तो आप सब समझदार हैं। मुझे दें इजाजत, जय राम जी की।

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