“आप”: अन्ना के साथ शुरु किया स्वराज आंदोलन, पूंजीपतियों के हाथों का बना खिलौना

देश में 2011 का समय ऐसा आया जब अन्ना हजारे की तरफ से स्वराज की नारा देकर शुरु किया गया आंदोलन देश की जनता के लिए एक नए सवेरे की आस लेकर आया। उस दौरान अन्ना के साथ मंचों पर बैठकर बड़े-बड़े भाषण देने वाले अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम द्वारा भी खूब शोर मचाया गया। अन्ना हजारे तो शायद इस सिस्टम के आगे हार मान गए, मगर अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम को यह आंदोलन ऐसा रास आया कि राजनीतिक कीचड़ में उतरकर इसमें फैली गंदगी को साफ करने का हवाला देते हुए राजनीति में कूद गए और दिल्ली की सत्ता प्राप्त करने में कामयाब भी हुए। इसी आंदोलन का हिस्सा बने पंजाब के कई नेता व कार्यकर्ताओं को भी एक उम्मीद की किरण दिखाई दी, मगर जिन सिद्धांतों का हवाला देकर आप राजनीति में आई उन सिद्धांतों की बलि किस प्रकार दी गई यह सभी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में देखा और इसके क्या परिणाम रहे यह शायद बताने की जरुरत नहीं। बात अगर होशियारपुर विधानसभा एवं लोकसभा हल्के की करें तो यहां भी जो हुआ वह किसी से छिपा नहीं। आप तो आम आदमी की पार्टी है, की बात करने वाले दिल्ली बैठे नेताओं ने किस प्रकार अधिकतर सीटें पूंजीपतियों के हाथों सौंप दी और अब लोकसभा चुनाव में भी चुनाव की तारीख घोषित होने के लगभग 6 माह पहले ही एक पूंजीपति को उम्मीदवार घोषित करके आम आदमी से आम होने का हक ही छीन लिया था।

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लालाजी स्टैलर की राजनीतिक चुटकी

मौजूदा समय में आम आदमी पार्टी को पंजाब में आज भी दिल्ली के नेताओं द्वारा ही चलाया जा रहा है। सूत्रों की माने तो पंजाब में आप को चलाने वालों में दुर्गेश पाठक व नांगलिया एडं कंपनी का ही बोलबाला है और जो वे चाहते हैं उसी के हिसाब से पंजाब की टीम को काम करना पड़ रहा है। लोकसभा हल्का होशियारपुर की तो तस्वीर ही पूरी तरह से बदल चुकी है। यहां पर विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार रहे परमजीत सिंह सचदेवा द्वारा सिद्धांतों से भटकी आप को अलविदा कह दिया गया। इसके बाद पार्टी ने डा. रवजोत सिंह को दोआबा जोन का अध्यक्ष लगा दिया गया और उन्हीं को लोकसभा प्रत्याशी भी घोषित किया गया, क्योंकि वह आर्थिक तौर से समृद्ध नेता के रुप में पार्टी के समक्ष खुद को साबित करने में सफल रहे।

इसके बाद धीरे-धीरे करके पार्टी के पुराने एवं कर्मठ नेताओं को खुड्डेलाइन (दरकिनार करने) करने की नीति पर कार्य किया जाने लगा। बात अगर विधानसभा होशियारपुर हल्का की करें तो पार्टी नीतियों को पथभ्रष्ट होता देख यहां से वरिष्ठ नेता एडवोकेट नवीन जैरथ, वरिंदर परिहार, अमरपाल काका व डा. नरेश सगड़ सहित अन्य कई कार्यकर्ताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया। होशियारपुर में जहां तक संदीप सैनी की बात है तो पार्टी ने उन्हें भी लंबे समय तक अनदेखा ही किया और विधानसभा चुनाव के बाद 2018 पार्टी को जब कोई और चेहरा न मिला तो उन्होंने संदीप सैनी की एहमियत को समझते हुए उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष एवं हल्का इंचार्ज की जिम्मेदारी से नवाजा। मगर कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर भी भारी नाराजगी देखने को मिल रही है कि अगर पार्टी को संदीप सैनी जैसे नेताओं की कद्र इतनी देरी से की तो उनका क्या अस्तित्व है तथा इस बात की क्या गारंटी है कि भविष्य में पार्टी आम कार्यकर्ता की अनदेखी नहीं करेगी।

दसूहा विधानसभा से मनजीत सिंह दसूहा, बीबी फुल व बीबी बाजवा आदि जैसे प्रमुख नेता पार्टी से दूर हो गए, मुकेरियां हल्के से पुराने कार्यकर्ता व नेता सुलखन सिंह जग्गी, जोकि विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं की अनदेखी करते हुए एक पूंजीपति को आगे किया गया, हल्का उड़मुड़ से विधानसभा चुनाव लडऩे वाले जसवीर सिंह राजा चुनावों के बाद कहीं नजर नहीं आए और जितने भी वहां कार्यकर्ता थे वे मायूस होकर घरों में बैठने को मजबूर हुए या अन्य राजनीतिक पार्टियों की शरण में चले गए, हल्का शाम चौरासी की बात करें तो यहां भी वनमैन शो एवं पार्टी की गलत नीतियों के कारण पहले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और वर्तमान में भी स्थिति कोई ठीक नहीं कही जा सकती। क्योंकि वनमैन शो होने के कारण पुराने एवं आम कार्यकर्ता की कोई सुनवाई नहीं होने से सभी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। हल्का चब्बेवाल में विधानसभा चुनाव लड़ चुके रमन कुमार व उनकी टीम को साइडलाइन करके एक पूंजीपति को आगे किया गया।

आम आदमी पार्टी द्वारा घोषित किए गए लोकसभा प्रत्याशी की बात की जाए तो पहले-पहल उनकी छवि एक समाज सेवक और माहिर डाक्टर के रुप में स्थापित हुई। मगर धीरे-धीरे वह भी एक व्यापारी की तरह सोचने लगे और अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए जनसंपर्क में लगे रहे तथा अब भी लगे हुए हैं। सूत्रों से पता चला है कि उक्त नेता जहां शराब के ठेके लेने में कामयाब रहे वहीं उन्होंने एक पैट्रोल पंप लगाकर अपने व्यापार को बढ़ाने की तरफ कदम बढ़ा लिए हैं। हालांकि अभी तक उनके द्वारा इसकी स्पष्ट तौर से पुष्टि तो नहीं की गई, मगर सवाल यह है कि जनसभाओं में नौजवानों को नशों व अन्य बुराईयों से दूर रहने की शिक्षा देने वाले उक्त नेता जी चंद सिक्कों की खातिर खुद ही नशे का कारोबार करने लगे तो आने वाला समय और हमारी नौजवान पीढ़ी कैसी होगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

इस बात का दर्द कई नेताओं का है, मगर पार्टी की नीतियों और दिल्ली दरबार में सुनवाई न होने के चलते वे भी मन मसोस कर बैठने में ही भलाई समझे हुए हैं। इतना ही नहीं जिन नेताओं को नीतियां पसंद नहीं आईं वे घर बैठ गए और जिन्होंने अन्य पार्टियों में कोई अच्छाई देखी वे उनमें शामिल हो गए।

राजनीतिक पार्टियों को लेकर जब आम जनता से बात की जाती है तो आज भी कई लोग आम आदमी पार्टी की बात करते हुए इतना जरुर कहते हैं कि अगर आप अपने सिद्धांतों पर लौट आए और आम आदमी को आगे करे तो इसे देश में सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता। मगर, वर्तमान समय में पूंजीपतियों के हाथों का खिलौना बने स्वराज के नारे के कारण यह उम्मीद की जानी शायद बेमायने होगी?

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