होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: संदीप डोगरा। लोकसभा चुनावों की सरगर्मियों अपनी चरमसीमा पर हैं और हर पार्टी अपने-अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। अगर हम बात कांग्रेस व भाजपा की करें तो यहं पर दोनों की परिस्थितियां पूरी तरह से विपरीत दिखाई दे रही हैं। क्योंकि, कांग्रेस की प्रदेश में सरकार है और लोकसभा हल्का होशियारपुर के तहत अगर बात जिला होशियारपुर के तहत आते विधानसभा क्षेत्र होशियारपुर की करें तो यहां से कांग्रेस के सुन्दर शाम अरोड़ा विधायक व सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, हल्का शाम चौरासी से पवन आदिया विधायक हैं, हल्का चब्बेवाल से डा. राज कुमार जोकि लोकसभा प्रत्याशी हैं वे विधायक हैं, हल्का दसूहा से अरुण डोगरा मिक्की तथा मुकेरियां से भी कांग्रेस के ही रजनीश बब्बी विधायक हैं। दूसरी तरफ भाजपा व इसकी सहयोगी पार्टी अकाली दल को हर हल्के से शिकस्त का सामना करना पड़ा।
होशियारपुर से तीक्ष्ण सूद और मुकेरियां से अरुणेश शाकर दो बार देख चुके हैं हार का मुंह, जंगी लाल महाजन भी आजाद खड़े होकर लगा चुके पार्टी को झटका
इनमें कुछेक नेता तो ऐसे हैं जो लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देख चुके हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि जहां कांग्रेसी प्रत्याशी डा. राज कुमार को जीते हुए विधायकों का सहारा है और प्रदेश में कांग्रेस सरकार का भी उन्हें लाभ मिलना लगभग तय है और कांग्रेस द्वारा उनकी टिकट काफी पहले घोषित किए जाने से उन्हें चुनाव प्रचार के लिए काफी समय मिल गया, जिससे उनकी स्थिति जमीनी स्तर पर प्रचार करने में मजबूत मानी जा रही है। हालांकि जनता पर मोदी फैक्टर काफी हावी है, मगर लोग यह बात भी सोचने को विवश हैं कि भाजपा के जो नेता अपने प्रत्याशी की जीत का दावा कर रहे हैं वे अगर अच्छे होते तो जनता उन्हें क्यों नकारती। इसके अलावा मुकेरियां से जहां अरुणेश शाकर पिछली विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे तो उनके खिलाफ भाजपा के ही जंगी लाल महाजन ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर अपना भाग्य आजमाया था। जिसमें न वे जीते और न ही अरुणेश शाकर को जीत मिली। होशियारपुर की बात करें तो तीक्ष्ण सूद यहां से दो बार हार चुके हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में भी होशियारपुर हल्का डाउन ही रहा था। जिसके चलते भाजपा की स्थिति कमजोर मानी जा रही है। भले ही मोदी जी की कार्यप्रणाली को लेकर जनता पर विशेष प्रभाव है की सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता और वर्तमान समय में यह नेता भी मोदी फैक्टर के पर्दे के पीछे अपनी कमियों व नाकामियों को छिपाने में कामयाब समझे जा रहे हैं।
अपनी उपलब्धियों की बजाए मोदी के नाम का गुणगान करके जनता को दिखा रहे सब्जबाग
अगर इन्होंने पहली बार हुई हार से सबक लिया होता तो शायद इन्हें दूसरी बार भी हार का मुंह न देखना पड़ता। पूरी तरह से गुटबाजी का शिकार भाजपा के पास जीत का कोई मौका कांग्रेसी नेता सुन्दर शाम अरोड़ा ने नहीं छोड़ा। एक गुट से नाराज नेताओं व कार्यकर्ताओं का लाभ कांग्रेस को मिला और जो थोड़ी बहुत जनता भाजपा के प्रति विश्वास रखती भी है उनमें से अधिकतर नगर निगम की कार्यप्रणाली को लेकर भी काफी दुखी हैं। निगम में बैठे कुछ अधिकारी तो ऐसे हैं जो पहले भाजपा नेता की चौखट नहीं छोड़ते थे और वर्तमान समय में वे कांग्रेसी नेता के घुटने दबाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। जिस कारण न तो आला अधिकारियों की चल रही है और न ही हाउस व मेयर द्वारा कोई काम कहे जाने पर हो रहा है। हालात ऐसे हैं कि समझ ही नहीं आता कि आखिर निगम को चला कौन रहा है। यह बात पहले भी कई बार उजागर हो चुकी है कि निगम से भेदभावपूर्ण कार्यवाही को अंजाम दिया जा रहा है। निगम द्वारा की जाने वाली कार्यवाही में आम नागरिक के लिए अलग कानून है तो रसूखदार व पैसे वाले के लिए अलग कानून है। जिसके कारण शहर निवासियों में काफी रोष है और शायद यह रोष इस चुनाव में देखने को भी मिले। गत दिवस ही निगम द्वारा एक ऐसी इमारत पर यह कहते हुए बुलडोजर चला दिया गया कि निर्माण करने वाले ने नक्शे के अनुसार इमारत का निर्माण नहीं किया यानि कि घरेलू नक्शा पास करवाकर कमर्शियल इमारत बना ली। मगर दूसरी तरफ शहर में कई ऐसी इमारतें हैं जो घरेलू नक्शों पर कमर्शियलव बनी हुई हैं और उनके बारे में पता होने के बावजूद कोई कार्रवाई न होना मिलीभगत की तरफ इशारा करता है। अगर मिलीभगत न हो तो कानून अनुसार सभी पर एक जैसी कार्यवाही की जाती। ताजा मामले में शिमला पहाड़ी के समीप ही बिना नक्शा पास हुए हो रहे निर्माण कार्य के बारे में निगम को पता होने के बावजूद भी कार्रवाई कागजों तक ही सीमित है।
इतना ही नहीं यह भी पता चला है कि उस क्षेत्र में और भी कई इमारते हैं जो पास नक्शों के बिलकुल विपरीत बनी हैं और इनकी जांच करवाई जानी बेहद जरुरी है। ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि लोग सिर्फ मोदी का चेहरा देखकर वोट करेंगे, जबकि छोटे-छोटे कार्यों के लिए लोगों को इन्हीं नेताओं व निगम के चक्कर लगाने को मजबूर होना पड़ेगा। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार पार्टी हाईकमांड सारी स्थिति से अवगत होने के बावजूद उसके प्रयास खानापूर्ति तक ही सीमित नजर आ रहे हैं, क्योंकि एक गुट की पकड़ ऊपर तक इतनी मजबूत है कि वो किसी दूसरे को आगे बढ़ता देख ही नहीं सकता और इसी खींचतान में लंबे समय तक भाजपा का गढ़ रही होशियारपुर व मुकेरियां की सीट भाजपा के हाथों से खिस्क कर कांग्रेस के हाथ में चली गई। इस बार भले ही फिर से मोदी के नाम का सहारा लिया जा रहा है, मगर मोदी द्वारा लिए गए कुछेक सख्त फैसलों के कारण जनता को हुई असुविधा का मलाल आज तक उनके दिलों में है। जिसके कारण वोट प्रतिशत पर असर पडऩा स्वभाविक है। इन दिनों जहां लोग सोम प्रकाश व डा. राज कुमार का मूल्यांकन कर रहे हैं वहीं भाजपा के पिछले सांसद विजय सांपला की नाकामियों को भी जमकर कोस रहे हैं, अगर उन्होंने होशियारपुर के लिए कोई बड़ा प्रोजैक्ट लगवाया होता या लोकसभा हल्के का नाम विश्व पटल पर लाने का कोई बड़ा प्रयास किया होता तो उनकी रिपोर्ट नेगेटिव न होती। हालांकि उन्होंने कुछेक काम ऐसे भी करवाए जिनका आने वाले समय में लाभ मिलेगा, मगर उनमें से भी एक कार्य ऐसा भी है जिसका लाभ अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ होशियारपुर निवासियों को मिल रहा है, मगर इसका श्रेय सदैव जिला जालंधर के नाम ही रहेगा और वह है आदमपुर हवाई अड्डा। जब केन्द्र में भाजपा सरकार बनी तो होशियारपुर से दो सांसद थे एक राज्य सभा सांसद अविनाश राय खन्ना और दूसरे लोकसभा सांसद विजय सांपला। दोनों की होशियारपुर के लिए कुछ ऐसा करने में नाकाम रहे जिसका नाम लेकर लोग इन्हें याद करें या भाजपा के पक्ष में जाएं व राजनीतिक मंचों से यह नेता अपनी उपलब्धियां गिना सकें।
जबकि दूसरी तरफ कांग्रेसी विधायक व कैबिनेट मंत्री सुन्दर शाम अरोड़ा शहर के लिए करोड़ों रुपये के प्रोजैक्ट लाने में सफल रहे व हल्का शाम चौरासी विधायक पवन आदिया व चब्बेवाल से विधायत डा. राज कुमार मात्र दो साल में ही अपने-अपने हल्के के लिए सरकारी कालेज मंजूर करवाने में सफल हुए। इन्होंने कई ऐसे कार्य शुरु करवाए हैं जो आने वाले दिनों में जनता के लिए काफी राहत भरे रहेंगे। बात अगर तीक्ष्ण सूद की करें तो उन्होंने जो प्रोजैक्ट लगाए उनके लिए जनता सदैव उनकी ऋणि भी रहेगी और उनकी सराहना करती नहीं थकती, मगर गुटबाजी का पेंच व उनके कुछ साथियों व नगर निगम की कार्यप्रणाली उनकी असफलता का कारण मानी जाती है। जो नेता दो-दो बार हार कर व सिर्फ कुर्सी के लालच में आजाद खड़े होकर पार्टी का नुकसान कर चुके हों, उनके द्वारा पार्टी प्रत्याशी सोम प्रकाश के लिए जीत का दावा करना सच्चाई से कोसों दूर दिखाई दे रहा है। जो सोम प्रकाश की राहें और भी मुश्किल बना देता है। अब यह तो समय ही बताएगा कि ऊंट किस करवट बैठता है, मगर फिलहाल भाजपा की गुटबाजी व खींचतान के कारण इनके ग्राफ की स्थिति चिंताजनक मानी जा रही है।