होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। श्रावण माह में माता चिंतपूर्णी मेले के मद्देनजर माता के दर्शनों को जाने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई संस्थाओं और माता के भक्तों द्वारा यात्रियों के लिए स्थान-स्थान पर लंगर लगाए गए हैं। लंगर लगाने वालों की श्रद्धा और सेवा भावना पर कोई सवालिया निशान नहीं लगा सकता, मगर अधिकतर लंगर आयोजक पर्यावरण के प्रति अपने फर्ज को पूरी तरह से भूले हुए प्रतीत हो रहे हैं।
प्लास्टिक व थरमोकोल की प्लेट व डूने का प्रयोग न किया जाए संबंधी की गहई अपील का भी कई आयोजकों पर असर नहीं हुआ। जिसके चलते होशियारपुर से हिमाचल सीमा तक लगे गंदगी के ढेर पर्यावरण के प्रति हमारी उदासीनता को दर्शा रहे हैं। हालांकि समाज सेवी संस्थाओं और प्रशासन द्वारा दावे किए जा रहे हैं कि सफाई के लिए पुख्ता प्रबंध किए गए हैं और प्लास्टिक का प्रयोग न हो इसे लेकर विशेष ध्यान रखा जा रहा है। मगर दुख की बात है कि न तो मेले के दौरान ऐसा कुछ देखने को मिल रहा है और न ही प्रशासन द्वारा किसी पर कड़ी कार्यवाही की गई हो का कोई समाचार ही सामने आया है।
जबकि दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना प्रशासन द्वारा इस मामले को लेकर पूरी गंभीरता दिखाई गई और प्लास्टिक प्रयोग करने वाले व गंदगी डालने वालों के जहां चालान काटे गए वहीं पर्यावरण संरक्षण का ध्यान न रखने वाले कई लंगर आयोजकों के लंगर बंद भी करवाए गए। जिसका पर्यावरण प्रेमियों ने स्वागत किया है। चिंतकों का कहना है कि आस्था का सम्मान होना चाहिए, मगर इसके साथ ही हमें पर्यावरण के प्रति अपने फर्ज को भी निभाना चाहिए तथा समझना चाहिए कि गंदगी फैलने से किस प्रकार की बीमारियां फैल सकती हैं और आने वाले दिनों में इसके और किस प्रकार के दुष्प्रभाव निकल सकते हैं। प्लास्टिक के गिलासों में बिक रहा पानी और पानी पीने के बाद सडक़ के किनारों पर बिखरी प्लास्टिक पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है। इसके अलावा यह हमारी उदासीनता को भी दर्शाता है।
इसके अलावा कई संस्थाएं तो ऐसी हैं जो लंगर लगाने के बाद सफाई के नाम पर लंगर स्थल पर फैला कूड़ाकर्कट इक_ा करते हैं और उसे आग लगा देते हैं जिससे जहरीला धुआं उठने से वायु प्रदूषण फैलता है। इस पर भी सख्ती से रोक लगाई जानी समय की मांग है। आस्था की आड़ में पर्यावरण से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं दी जानी चाहिए।
समाज सेवी मनदीप शर्मा का कहना है कि वे व उनकी टीम लंगर लगाने वालों को समझा-समझा कर थक चुकी है, मगर कोई भी इस बात को गंभीरता से सुनने को तैयार नहीं। यहां तक कि लंगर लगाने के बाद लंगर वाले स्थान की सफाई करवाना भी उचित नहीं समझा जा रहा। उन्होंने कहा कि बाहर से यहां आकर लंगर लगाने वाले तो लंगर लगाने उपरांत चले जाते हैं पर गंदगी यहीं छोड़ जाते हैं जोकि होशियारपुर व आसपास के लोगों के लिए परेशानी का सबब बनती है तथा इससे वन क्षेत्र को भी भारी क्षति पहुंचती है। हालांकि सफाई व्यवस्था को बनाए रखने के लिए वे व उनके जैसी कई संस्थाएं अपना फर्ज निभा रही हैं, परन्तु यह प्रयास नाकाफी हैं। इसमें सफलता तभी मिलेगी जब हम सभी प्लास्टिक को नकार कर पत्तों से बनी पत्तल व डूने के अलावा स्टील की प्लेटों का प्रयोग सुनिश्चित बनाएंगे। इतना ही नहीं सडक़ों पर खड़े होकर लंगर बरताने पर भी पूर्ण तौर पर पाबंदी लगनी चाहिए और वे समझते हैं कि ऐसा करने में किसी संस्था को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।