होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: जतिंदर प्रिंस। जिस प्रकार भगवान श्री गणेश जी की अलग-अलग मूर्तियां होती हैं उसी प्रकार वह अलग-अलग तरह के परिणाम देती हैं। सबसे ज्यादा पीले रंग की और रक्त वर्ण की मूर्ति की उपासना की जाती है जोकि शुभ होती है। नीले रंग के गणेश जी को “उच्छिष्ट गणपति” कहते हैं, इनकी उपासना विशेष दशाओं में ही की जाती है।
हल्दी से बनी हुई या हल्दी का लेपन की हुई मूर्ति “हरिद्रा गणपति” कहलाती है। यह कुछ विशेष मनोकामनाओं के लिए शुभ मानी जाती है। एकदंत गणपति, श्यामवर्ण के होते हैं। इनकी उपासना से अदभुत पराक्रम की प्राप्ति होती है। सफेद रंग के गणपति को ऋणमोचन गणपति कहते हैं। जिसकी उपासना करने से ऋणों से मुक्ति मिलती है। चार भुजाओं वाले रक्त-वर्ण के गणपति “संकष्टहरण गणपति” कहलाते हैं। इनकी उपासना करने से संकटों का नाश होता है।
त्रिनेत्रधारी, रक्तवर्ण और दस भुजाधारी गणेश “महागणपति” कहलाते हैं। इनके अन्दर समस्त गणपति समाहित होते हैं। सामान्यत: पीले रंग की या रक्त वर्ण की प्रतिमा जिसका आकार मध्यम हो, घर में स्थापित करनी चाहिए। गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना दोपहर के समय करें, कलश भी स्थापित करें। लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर मूर्ति की स्थापना करें। दिनभर जलीय आहार ग्रहण करें अथवा केवल फलाहार करें। सायंकाल गणेश जी की यथा शक्ति पूजा करें व घी का दीपक जलाएं।