होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। आईएमए होशियारपुर कार्यकारिणी की एक आपातकाल बैठक बुलाई गई जिसमें पंजाब क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2019 के मसौदे में सार्वजनिक रूप से पंजाब सरकार की निंदा की गई। बैठक में आईएमए के पूर्व पंजाब प्रधान डा. राजिंदर शर्मा व डा. कुलदीप सिंह, होशियारपुर के पूर्व प्रधान डा. नरेश सूद, सचिव डा. विजय शर्मा व अन्य सदस्य मौजूद थे। उन्होंने बताया कि पंजाब क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2019 लोगों और चिकित्सकों के विरुद्ध है और इसे पूरी तरह से खारिज किया जाना चाहिए।
यह छोटे से लेकर मध्यम स्वास्थ्य क्षेत्र को खत्म करने और निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को पिछले दरवाजे से एंट्री करवाने का एक प्रयास है का एक प्रयास है जोकि यह पंजाब सरकार द्वारा जनता से एक विश्वासघात है।
उन्होंने बताया कि इस एक्ट को तैयार करते समय आई.एम.ए. की भूमिका को अनदेखा किया गया है। पिछले दो साल से आईएमए पंजाब रैगुलेट्री एक्ट बनाने हेतू पंजाब मैडिकल कौंसिल की देखरेख में स्वास्थ्य मंत्रालय के संपर्क में थातथा उन्हें आश्वस्त किया गया था कि इसे लागू करते समय आई.एम.ए. साथ रखा जाएगा। परंतु, अब अचानक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने इस मसौदे को सार्वजनिक डोमेन में डाल दिया है तथा आई.एम.ए. पंजाब को इस संबंधी पूरी तरह अंधेरे में रखा गया। आई.एम.ए. सदस्यों ने कहा कि अगर ऐसा ही करना था तो दो साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किए गए क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट बिल ड्राफ्ट को पंजाब सरकार, पंजाब मेडिकल काउंसिल और आई.एम.ए. पंजाब से क्यों मंगवाया गया?
स्वास्थ्य मंत्रालय बिना इस संबंध में चर्चा किए किसके हितों को मुख्य रखते हुए यह बिल लाना चाहता है तथा इसके पीछे क्या उद्देश्य है?
आई.एम.ए पदाधिकारियों ने कहा कि अगर यह बिल लागू हुआ तो प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। जिसके चलते छोटे व मध्यम अस्पताल और जनता परेशान होगी। संबंधित अधिकारियों द्वारा बिल बनाने में एकतरफा कार्रवाई करते हुए पहले की गई सारी मेहनत को कूड़ेदान में फैंक दिया गया है। बिल में पंजीकरण प्राधिकरण एक ऐसा हथियार है जो एक हाथ में बहुत सारी शक्तियां देने के समान है जो कि बेहद खतरनाक है। यह प्रणाली इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा देगी जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। बिल में उपचार तथा कंस्लटैंसी फीस तय किया जाना स्वीकार नहीं किया जा सकता।
क्योंकि, जब एडवोकेसी, सी.ए. व ऐसे अन्य पेशों में सरकार द्वारा फीस तय नहीं की गई तो यह नियम उनपर क्यों थोपा जा रहा है? दिल्ली हाई कोर्ट ने भी हाल ही में एक फैसले में कहा है कि सभी अस्पतालों के लिए उपचार का शुल्क समान नहीं हो सकता। अगर यह बिल इस तरह लगाया जाता है तो इससे उपचार लागत कई गुना बढ़ जाएगी और आम आदमी को नुकसान होगा। ज्यादातर छोटे से मध्यम अस्पताल बंद हो जाएंगे और लोगों के पास बड़े महंगे अस्पतालों में इलाज कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। यह बिल राज्य में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में शून्य पैदा करने वाले मध्य स्तर के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक मौत का झटका होगा, जो बहुमत के स्वास्थ्य को खतरे में डाल देगा। इस ड्राफ्ट बिल के प्रावधान से सिविल सर्जनों और डी.एच.एस. के माध्यम से निजी स्वास्थ्य क्षेत्र पर सख्त वित्तीय, पेशेवर और प्रशासनिक नियंत्रण हो जाएगा। यह सरकार द्वारा निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को संभालने के इरादे से विश्वासघात करना है। क्योंकि, यह अपने स्वयं के स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के मानकों को बनाए रखने में विफल रहा है।
उन्होंने मांग करते हुए कहा कि बिल को अंतिम रूप देने से पहले सरकार को तुरंत आईएमए पंजाब और अन्य हितधारकों के साथ संलग्न होना चाहिए अन्यथा वे अनिश्चित काल के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की पूर्ण वापसी के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाने के लिए मजबूर होंगे। जनता को होने वाली किसी भी असुविधा के लिए सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार होगी।