नंबर-1 में प्रति टिप्पर 1500, ट्राली से 1000, 75000 दिन की कमाई और फिर भी मां के आंचल पर भू-माफिया की गलत नजऱ

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। गांव डाडा में लंबे समय से चली आ रही अवैध माइनिंग मामले को जिस प्रकार से दबाने और उसकी जांच को घुमाने का प्रयास किया जा रहा है, उससे साफ है कि दाल में बहुत कुछ काला है और बड़े मगरमच्छों को पकडऩे से पहले या उनके नाम सार्वजनिक होने से पहले ही उनके असर-रसूख के आगे प्रशासनिक कार्यवाही दम तोडऩे लगी है। क्योंकि, प्रशासन द्वारा मौका मुआयना करके अगर असलीयत को साफ करना होता तो वे डाडा को छोड़ किसी अन्य स्थान पर हो रही माइनिंग को इससे न जोड़ता। गांव नारा में की गई कार्यवाही को डाडा के साथ जोडक़र देखना एवं यहां पर माइनिंग करने वालों की अनदेखी करना कई सवाल खड़े करता है। सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रशासनिक जांच से ऐसा लग रहा है कि प्रशासन किसी दवाब एवं असर के तहत कार्यवाही को अंजाम देते हुए मामले के असल आरोपियों को बचाने का ढंग-तरीका अपना रहा है और उसके द्वारा फर्ज की इतिश्री की जा रही है।

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माहिरों की मानें तो एक एकड़ जगह से माइनिंग करने के लिए सरकार को 10 रुपये मिट्रिकटन के हिसाब से पैसे जमा करवाने पड़ते हैं तथा जितने फिट तक खुदाई करनी हो उसके हिसाब से पैसे जमा होते हैं। इसके अलावा डी.एम.एफ. व ई.एम.एफ. रॉयल्टिी के रुप में जमा होता है जोकि कुछ रिफंडेबल होती है व कुछ इनकम टैक्स के रुप में जमा रहता है। अब आपको आसान सी कैलकुलेशन में समझाते हैं कि एक एकड़-एक फिट तक खुदाई की बात की जाए तो सरकार के खजाने में करीब 30 हजार रुपये जमा करवाने होते हैं। जोकि 400 रुपये प्रति टिप्पर खर्च पड़ता है। मिट्टी की खुदाई करने वाले को पडऩे वाले खर्च का हिसाब लगाया जाए तो 400 रुपये प्रति टिप्पर सरकारी खर्च, 600 रुपये जिसके खेत या जगह से मिट्टी उठानी हो तथा 1 हजार रुपये जे.सी.बी. व तेल आदि का खर्च होता है। इनका कुल 2000 रुपये बनता है प्रति टिप्पर और ग्राहक से लिए जाते हैं 3500 से 4 हजार रुपये। ऐसे में बात की जाए तो एक टिप्पर से मिट्टी उठाने वाला सभी खर्च निकाल कर 1500 से 2 हजार रुपये की कमाई करता है तथा रोजाना के अगर कोई 25 से 30 टिप्पर भी भरे और बेचे, उससे वह करीब 45 हजार रुपये की कमाई है। इसके अलावा एक ट्राली में करीब 150 फिट रेत व मिट्टी आती है तथा उससे भरने व फेंकने का खर्च एक हजार रुपये लगा लिया जाए तो गांव में ट्राली 2 हजार रुपये में फेंकी जाती है तो शहरी इलाके में 2500-3000 रुपये तक ट्राली फेंकी जाती है। शहरी इलाकों में पुलिस खर्च व बगार के नाम पर 500 से 1 हजार रुपये अधिक रुपये लोगों से वसूले जाते हैं

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सरकार द्वारा बनाई गई माइनिंग पालिसी के अनुसार भी अगर कार्य किया जाए तो उक्त कैलकुलेशन के हिसाब से भी माइनिंग से जुड़े लोग दिन भर में खासा मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन सरकार को चूना लगाने और अपने असर-रसूख के चलते वन संपदा और प्रकृति को नुकसान पहुचाने वाले भू-खनन माफिया द्वारा धरती मां के आंचल पर गलत नजऱ रखी जा रही है व सरकारी खर्च एवं टैक्स के रुप में सरकार के खजाने में आने वाली राशि का गबन किया जा रहा है। एक तरह से यह लोग जहां प्रकृति का दोहन कर रहे हैं वहीं सरकार को आर्थिक क्षति भी पहुंचा रहे हैं। ऐसे लोगों के कारण ही विकास के बहुत सारे कार्य अधर में लटके हुए हैं तथा अवैध रुप से चलने वाले असंख्य टिप्परों के कारण रास्तों एवं सडक़ों को पहुंचने वाले नुकसान की भरपाई न होने से लोग सरकार को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं, जबकि ऐसे लोगों पर नकेल कसी जानी समय की मांग है।

गैरकानूनी ढंग से गांव डाडा में चल रहे अवैध खनन के बारे में मोटा-मोटा अंदाजा भी लगाया जाए तो भू-माफिया ने पिछले 4-5 साल में ही सरकार को फीस एवं टैक्स के रुप में 2 से ढाई करोड़ रुपये का चूना लगाया तथा इनकम टैक्स की चोरी की वो अलग से। इसके साथ-साथ वन संपदा को पहुंचे नुकसान का अंदाजा लगाया जाए तो वे भी करोड़ों रुपये ही होगा तथा भारी भरकम टिप्परों के छोटी सडक़ों से गुजरने पर उन्हें पहुंचा नुकसान अलग से। यानि की सीधे शब्दों में कहें तो भू-खनन माफिया ने सरकार को 15 से 20 करोड़ रुपये का चूना लगाया तथा मामला खुलने पर अब इसे रफा-दफा करने की कवायद शुरु करते हुए दूसरी जगह हो रही माइनिंग पर ध्यान डायवरट करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि दफा वाली जमीन को पहले दफा से हटवाया गया और फिर उस पर अवैध तौर से मशीनरी चलाते हुए दिन रात माइनिंग करके खूब माल बटोरा गया। सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी गांव डाडा में जिस जगह पर धरती का चीर हरण हुआ वहां से रोजाना करीब 25-30 टिप्पर और 40-50 ट्रालियां भरी जाती थी, जिससे भू-खनन माफिया बिना किसी डर एवं खौफ के तथा संबंधित विभागों की कथित मिलीभगत से करीब-करीब एक लाख रुपये तिजोरी में भर रहा था। अगर यह वैध कार्य होता तो सरकार को टैक्स व फीस देने के बावजूद इन्हें करीब 70 से 75 हजार रुपये का मुनाफा होता। लेकिन लालच एवं असर-रसूख और भूमि पर बुरी नजर रखने वाले इस भू-खनन माफिया ने सरकार एवं प्रकृति दोनों को धोखा देकर पिछले 4-5 सालों में काफी माल अंदर किया। जिसकी गहनता से जांच बहुत जरुरी है। क्योंकि उक्त स्थान से एकाध या 2-4 फिट नहीं बल्कि 15 से 20 फिट तक की खुदाई करके अवैध माइनिंग की जा चुकी है व ऐसे में सरकार को लगाए गए चूने की रकम और भी बढ़ जाती है।

भू-माफिया की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि संबंधित विभाग एवं गांव निवासियों को उनके नाम पता होने के बावजूद कोई भी खुलकर सामने आने को तैयार नहीं, जिससे ऐसे लोगों के हौंसले और भी बुलंद हो रहे हैं। जबकि कांग्रेस संरक्षण प्राप्त भाजपा से जुड़े एक बड़े नेता व उसके साथी का नाम इसमें सामने आ रहा है। जिसके कारण मामले को दबाने एवं घुमाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि प्रशासनिक जांच क्या रंग लाती है, क्या मामले से जुड़े असली चेहरों को बेनकाब किया जाता है या फिर किसी और की बलि देकर मामला दफ्तर दाखिल कर दिया जाता है।

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