अंगहीनों के लिए जल्द बनाई जाए राष्ट्रीय नीति: जरनैल धीर

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। शरीर अरोग रहे, यह हर व्यक्ति की ख्वाहिश होती है। बुज़ुर्ग कहते हैं कि ’’पहला सुख निरोग काया’’ शरीर को किसी भी तरह का कोई रोग हो तो दुखदायक होता है। वो चाहे शारीरिक हो या मानसिक।

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अंगहीन व्यक्तियों के लिए अधिकार एक्ट-2016 अभी तक नहीं दे पाया लाभ

3 दिसम्बर को संसार भर में ’’विश्व अंगहीन दिवस’’ विशेष जरूरतमंद व्यक्तियों की भागीदारी तथा लीडरशिप को बढ़ावा देने की थीम अधीन मनाया जा रहा है। अंगहीनों की समस्याओं को कम करने तथा उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए, प्रयत्न करने के उद्देश्य से ही ’’विश्व अंगहीन दिवस’’ मनाया जाता है। पर भारत में यह दिन केवल एक रस्म बनकर रह गया है। जो देश चाँद पर उतरने के लिए यत्नशील हुआ हो, उनकी सरकारें आने वाले सालों में दुनियां की (5 करोड़ डालर) बड़ी आर्थिक शक्ति बनने के दावे कर रही हों पर अगर वो आज़ादी के 72 वर्ष गुजऱ जाने के बाद भी चुनौती ग्रस्त वर्ग को ज़रूरी बुनियादी सुविधायें भी प्रदान न करवा सके तब इससे बड़ी अफसोस व दुख की बात क्या हो सकती है। अंगहीन वर्ग को सुविधायें प्रदान करवाने के लिए अदालतें तथा समाजसेवी संस्थाओं ने बड़ा योगदान डाला है।

सरकार के बेरूखी वाले आदेशों के सहारे भी कुछ कदम ज़रूर आगे बढ़े हैं परन्तु वो समय की सरकारों की समाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक हालातों के अन्दर बेबस घिरा हुआ महसूस करता है। इनके अंदरूनी स्वाभिमान को उजागर नही होने दिया गया। इनको दान तथा दया के स्थान पर मौके तथा सहयोग की आवश्यकता है। जैसे-जैसे मशीनरी युग में बढ़ौतरी हो रही है उस तरह ही अंगहीनो की संख्या में भी बढ़ौतरी हो रही हैं। 1959 के तीसरे रविवार को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंगहीन हुये पूर्व फौजी स्विटजऱलैंड के शहर ज्यूरिक में इक्ट्ठे हुये। इनका मकसद सरकार तथा समाज का ध्यान पूर्व अंगहीन फौजियों की समस्याओं की ओर केन्द्रित करना था।

-अंगहीन वर्ग को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होने की आवश्यकता

विश्व की आबादी 7 अरब तक पहुंच गई है। कुछ समय पहले यू.एन.ओ. की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट के अुनसार संसार में 65 करोड़ से अधिक लोग अंगहीन व्यक्तियों श्रेणी में आते हैं। यू.एन.ओ. की एक ओर रिपोर्ट के अनुसार संसार की 15 प्रतिशत आबादी शारीरिक, मानसिक तथा गंभीर बिमारियों से ग्रस्त है।

यू.एन.ओ. की ओर से साल 1981 को ’’विश्व अंगहीन दिवस’’ के तौर पर धोषित किया गया। इस वर्ष ने अंगहीनों की उम्मीदेें तो जागाई पर उनको पूरा नही किया। कागज़ी कारवाई तक ही सब कुछ सीमित रहा, पर ज़मीनी स्तर पर बहुत कम कार्य किया गया। चाहे इस वर्ष अंगहीनों के ज्यादा कुछ नही किया पर समाज के आम लोगों में चेतना ज़रूर पैदा की। इन लोगों के लिए हुये नाम मात्र कार्य को ध्यान में रखते हुये, यू.एन.ओ की ओर से वर्ष 1983 से वर्ष 1992 तक, इन लोगों के लिए एक दशक शुरू किया तथा साथ ही यह भी अंदाज़ा लगाया कि अंगहीन वर्ग पर केवल एक प्रतीशत ही खर्च किया गया। जबकि, विशेषज्ञों के अनुसार 10 वर्षों में 25 प्रतीशत खर्च करने की ज़रूरत थी।

10 वर्षों में बहुत ही कम अंगहीनों व्यक्तियों के जीवन स्तर में सुधार हुआ। सार्क देशों (भारत, पाकिस्तान, बंगला देश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान तथा मालद्वीप) ने साल 1993 को ’’सार्क अंगहीन वर्ष’’ के तौर पर मनाया। 1993 में उस समय के विभाग के वक्ता डा. डी. पी. मोरिया ने भारत में 8 करोड़ अंगहीनों के होने की पुष्टि की थी। 1993 में भारत सरकार ने 2000 तक ’’सभी के लिए अच्छी सेहत’’ का निशाना निश्चित किया था पर वो 29 वर्ष बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं हुआ। भारत को ज्योतिष में विश्वास रखने वाले नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सोच वाले नेता तथा नौकरशाह चाहिए।

ऐशियाई तथा पैसिफिक क्षेत्र में (चीन के शहर बीजिंग 1992) अंगहीन लोगों की पूरी भागीदारी तथा समानता के बारे में प्रभाव देने के लिए 1995 में (अंगहीन व्यक्तियों के लिए बराबर के मौके प्रदान करना, हकों की सुरक्षा तथा पूरी भागीदारी) एक्ट पास किया गया। नैशनल ट्रस्ट फॉर द वैल्फेयर आफ पर्सनज़ विद ऑटीज़म सैरीबल पॉलिसी, मैंटल-रिटारडेशन एण्ड मल्टीपल डिसऐबलटीज़ एक्ट-1999 में पास किया गया। दिसम्बर 2016 को (बराबर के मौके, हकों की सुरक्षा तथा मुकम्मल भागीदारी) एक्ट-1995 के स्थान पर नया एक्ट आर.पी.डब्लयू.डी. (असमर्थता वाले व्यक्तियों के अधिकार) के नाम पर पास किया गया। अंगहीनों की किस्में 7 से 21 तक कर दी गईं। इस एक्ट की एक विशेष बात यह है कि इस में भाषा बोलने में असमर्थ तथा सीखने में अयोग्य व्यक्तियों को भी इस कानून में शामिल किया गया है।

नई श्रेणियों में तीन खून के विकार थैलेसीमिया, हीमोफीलिया तथा स्किल सैल रोग शामिल किये गये हैं। जो व्यक्ति अंगहीन व्यक्तियों के लिए कानून तैयार करते हैं, वो प्रशंसा के पात्र तथा सुहिर्द हृदय वाले हैं। पहले अंगहीनों के लिए कोटा 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत करने का प्रस्ताव था जबकि दूसरी सरकार ने इस में कटौती करके 4 प्रतिशत कर दिया। तीन वर्षों में 4 प्रतिशत हुये इस कोटे का अंगहीन व्यक्तियों को कोई लाभ प्राप्त नही हुआ क्योंकि 4 प्रतिशत के हिसाब से पद लागू नही किये गये और न ही 3000 पदों का अंगहीनों का बैकलॉग भरा गया। हां ! यह ज़रूर अच्छा हुआ कि माननीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी साहिब ने अंगहीनों को दिव्यांग व्यक्ति कहने की दिसम्बर 2015 को सारे राष्ट्र को अपील की। सरकार ने भारत के सभी राज्यों में बड़ी संख्या में तथा करोड़ों रूपये खर्च करके नकली अंग, व्हील चेयरज़, ट्राई-साईकलज़, फौडिय़ा, कैलीपजऱ् तथा हर तरह का ज़रूरी समान मुहैया करवा के बड़े स्तर पर अंगहीनों का पुर्नवास किया हैं परन्तु अभी भी बहुत कुछ करना बाकि है।

मानव संसाधन मंत्रालय के राज मन्त्री सत्यपाल सिंह ने दिसम्बर 2018 को राष्ट्रीय अंगहीन दिवस के अवसर पर कहा कि भारत में 12 करोड़ लोग अंगहीनता से पीडि़त हैं। भारत में इस समय 45,18,046 अंगहीन वोटर हैं। नोबल पुरस्कार विजेता डा. अभिजीत बैनर्जी के एक माडल की स्कूली शिक्षा में उपयोग करने से, भारत में 50 लाख से भी अधिक गरीब अंगहीन बच्चों को लाभ प्राप्त हुआ है। आर.पी.डब्लयू.डी. एक्ट-2017 के अनुसार 40 प्रतिशत अंगहीन व्यक्ति सरकार की ओर से मिल रही सभी सुविधायें प्राप्त करने के हकदार हैं, परन्तु सरकारी विभाग 40 प्रतिशत अंगहीन व्यक्तियों को सुविधायें प्रदान करने को तैयार नही हैं। पंजाब में 20 प्रतिशत अंगहीन व्यक्तियों के पास अभी तक अंगहीन प्रमाण पत्र नही है।

हमें इस दिशा में ध्यान केन्द्रित करना चाहिए कि लोगों को अंगहीन होने से कैसे रोका जाये तथा जो लोग अंगहीन हो चुके हैं उनका पुनर्वास कैसे किया जाये। यह बड़ी खुशी की बात है कि भारत मार्च 2014 में पोलियो मुक्त देश घोषित हो गया हैं। वैज्ञानिक युग में भी समाज अंगहीनों को भगवान की करोपी का शिकार समझता हैं। भारत में बहुत सारे लोग इनकी भलाई के प्रति बहुत पिछड़ी हुई सोच रखते हैं। हमें अंगहीनों के पुनर्वास के लिए मिशनरी भावना के साथ काम करना पड़ेगा तब ही हम अच्छे नतीजों की उम्मीद कर सकते हैं।

मानवता अभी जि़न्दा है। मदर टैरेसा, कर्नल ए.एस.चाहल, विजय मर्चैैन्ट तथा बाबा आम्टे जैसे भद्र पुरूषों तथा समाजसेवी संस्थाओं ने इस शुभ कार्य में जहां अपना योगदान डाला है वही हमारी सरकार भी इस नेक कार्य के लिए प्रयत्नशील है। भगत पूर्ण सिंह द्वारा अंगहीनों के क्षेत्र में दिये गये योगदान को भुलाया नही जा सकता। सरकार की सुहृद तथा संवेदनशील नीतियों के बावजूद अंगहीनों को काफी मुश्किलों को सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि, इनको लागू करने वाले अधिकारी तथा कर्मचारी सुहृद तथा संवेदनशील नही हैं। इसलिए अंगहीनों को मिलने वाली हर सुविधा भी अंगहीन ही नजऱ आती है।

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