सरकारी सेहत सुविधाओं की कमी के कारण लोगों को अकसर प्राइवेट अस्पताल का रुख करने को मजबूर होना पड़ता है तथा अधिकतर प्राइवेट अस्पताल प्रबंधकों का प्रयास रहता है कि एक बार मरीज वहां आ जाए तो जब तक उसकी जेब पूरी तरह से ढीली न हो जाए वे उसे नहीं छोड़ते। ये मरीज की हिम्मत ही है कि वो किसी तरह से वहां से छूट निकले और आर्थिक शोषण से बच जाए। अन्यथा अस्पताल प्रबंधन का प्रयास तो यही रहता है कि मरीज एक बार आया तो समझो बेड़ा पार। शहर के सुतेहरी रोड स्थित एक अस्पताल के प्रबंधकों की धक्केशाही और मरीज के आर्थिक शोषण का एक ऐसा ही मामला इन दिनों शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है। जो अधिकतर प्राइवेट अस्पतालों द्वारा की जाती धक्केशाही व मरीज की लूट को दर्शाने के लिए काफी है।
लालाजी स्टैलर की सामाजिक चुटकी
हुआ यूं कि सुतेहरी रोड पर स्थित एक अस्पताल में करीब तीन दिन पहले हिमाचल से गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए उसका परिवार यहां लेकर आए। डिलीवरी पूरी तरह से नार्मल हुई और जच्चा-बच्चा को दो दिन अस्पताल में रखा गया। मरीज को डिस्चार्ज किया जाने लगा तो परिवार वालों के अस्पताल का बिल देखकर होश ही उड़ा गए और उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा कि उनके पैरों तले से जमीन खिस्क गई हो। नार्मल डिलीवरी व अस्पताल में दो दिन रहने का बिल 60 हजार रुपये थमाया गया। बिल को देखकर परिवार के सदस्य एक-दूसरे का मुंह देखने लगे कि ऐसी क्या 7 स्टार होटल वाली होस्पिटेलिटी दे दी अस्पताल प्रबंधन ने कि दो दिन का 60 हजार रुपये बिल।
इसके बाद बिल को लेकर खींचतान शुरु हो गई। पहले तो प्रबंधन बिल को लेकर जरा भी समझौता करने को राजी नहीं हुआ और यह भी बताने में नाकाम रहा कि आखिर नार्मल डिलीवरी का इतना बिल कैसा थमाया गया। हिमाचल से आए परिवार ने होशियारपुर रहते अपने रिश्तेदार से बात की तो वे शहर के कुछ गणमान्य को लेकर अस्पताल में पहुंच गए। इसके बाद दोनों पक्षों में काफी देर चली बातचीत उपरांत अस्पताल प्रबंधन ने 60 हजार के बिल को 28 हजार रुपये किया। इस उपरांत मरीज के परिजनों ने रुपये दिए और शहर के इस अस्पताल से संबंधित अपना बुरा अनुभव लेकर वहां से चले गए। अस्पाल प्रबंधन द्वारा 60 हजार के बिल को 28 हजार रुपये किए जाने से कई सवाल खड़े होते हैं कि आखिर इतनी लूट आखिर किस लिए, जो जैनुयन है उतने रुपये लिए जाएं तो समझ में आता है तथा इतना कलेश करने उपरांत बिल आधे से भी कम कर देना कहीं न कहीं प्रबंधन की लूट की तरफ इशारा जरुर करती है।
जानकारी अनुसार अधिकतर अस्पतालों में नार्मल डिलीवरी के लिए 15 से 25 हजार रुपये के करीब चार्ज किए जाते हैं तथा अप्रेशन छोटा या बड़ा भी हो तो भी बिल 30 हजार रुपये के भीतर ही रहता है, कोई कम्पलीकेशन हो तो उस स्थिति में बिल का घटना या बढऩा समझा जा सकता है। परन्तु नार्मल डिलीवरी के लिए इतनी बड़ी रकम चार्ज करना अपने आप में बड़ा सवाल है। एक तरफ जहां शहर में ऐसे अस्पताल भी हैं जहां पर डाक्टर द्वारा बहुत ही कम चार्ज करके मरीज का ईलाज किया जा रहा है तो दूसरी तरफ अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों का यह हाल है कि मरीज अस्पताल की चौखट क्या चढ़ा, मानों कोई एफ.डी. चली आ रही हो।
“इन्ना बड़ा बिल हाये मेरा दिल” वाली व्यंगात्मक बात को चरितार्थ करती इस घटना की शहर में काफी चर्चा हो रही है तथा इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हिमाचल के जिस शहर व गांव से वो मरीज आया होगा वहां इसकी चर्चा न हो व ऐसे में हमारे शहर की क्या छवि बन रही होगी इसे सोच कर ही मन को दुख होने लगता है। खैर! हमने जो बात व चर्चा सुनी उसे शब्दों के रुप में आप तक पहुंचाया। अब भगवान का दूसरा रुप कहे जाने वाले ऐसे डाक्टरों को भी शर्म चाहिए कि वे लालच में अपने कर्तव्य को सिक्कों से न तोलें और जो जैनुयन बने उतना ही बिल मरीज से लें।