अध्यापक को परिभाषित करना कठिन, अच्छे विद्यार्थी ही बनाते हैं श्रेष्ठ अध्यापक: प्रो. हरप्रीत सिंह

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। एक विकसित समाज की नींव रखने के लिए शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षक एक ऐसा स्तंभ होता है जिसके माध्यम से वह बच्चों को वह सारे गुर सिखाने का प्रयास करता है, जिससे बच्चे अपना भविष्य संवारने की तरफ अग्रसर हों। इसी प्रकार एक शिक्षक को परिभाषित करना उतना ही कठिन होता है, जितना कि एक विद्यार्थी से अध्यापक बनना। इस महत्वपूर्ण विषय पर शिक्षा के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रहे श्री दशमेश अकादमी होशियारपुर के डायरेक्टर प्रो. हरप्रीत सिंह से बात की गई।

Advertisements

प्रश्न:- एक अध्यापक को परिभाषित करना बहुत ही कठिन होता है, क्या होते हैं अध्यापक, क्या एक अच्छे अध्यापक से पढऩे से ही हमारा भविष्य सुधरेगा या एक अच्छे और बड़े संस्थआन में विद्या हासिल करना हमारा भविष्य है।

उत्तर:- इन प्रशनों पर चर्चा करते हुए अकादमी के डायरैक्टर प्रो. हरप्रीत सिंह ने बताया कि अध्यापक की परिभाषा बहुत कठिन है, क्योंकि एक अच्छे अध्यापक को विद्यार्थी बनाता है। अगर हमें कुछ सीखने की इच्छा है तो जिस व्यक्ति से हम कुछ न कुछ सीख पाते हैं वह उसके लिए अध्यापक बन जाता है। अगर विद्यार्थी अच्छा है तभी वह एक अच्छे अध्यापक को जन्म देता है और अगर विद्यार्थी अध्यापक की बातों को नहीं मानता तो वह अध्यापक खुद को बुरे अध्यापक की श्रेणी में दर्ज कर लेता है।

साधारण सी बात है कि अध्यापक बनते नहीं बल्कि बनाए जाते हैं और एक अध्यापक को उसके गुणों के साथ अच्छा बनाने में अहम रोल अदा करते हैं उनके विद्यार्थी। शिक्षा व प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अध्यापक और विद्यार्थी को परिभाषित करना कठिन हो गया है। आज के दौर में हर व्यक्ति किसी भी वर्ग का हो वह अपने बच्चों के पढ़ाने लिखाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ता, चाहे उसको कई मुसीबतों का सामना ही क्यों, न करना पड़े। क्या लेकिन पैसा ही आजकल विद्या के लिए जरूरी हो गया? क्या अधिक फीस देने से ही हमारे बच्चे पढ़ पाएंगे? क्या हमारे बच्चों के पास सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं तभी वह आगे चलकर सफल होंगे? नहीं! ऐसा नहीं है, विद्या को हम कभी भी पैसे से नहीं तोल सकते।

अध्यापकों की प्रतिभा पर अगर आपको विश्वास है तभी आपका बच्चा किसी के पास पढ़ पाएगा। संस्था में अध्यापक होते हैं और वह अध्यापक तब ही कहलाएंगे जब उनके पास आएंगे। उनकी बात मानने वाले अच्छे विद्यार्थी, सुविधाएं हमें आधुनिक तकनीक तो मुहैया करवा रही है लेकिन, विद्या ग्रहण करने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत है, जो आजकल की पीढ़ी अपनी पढऩे लिखने वाली उम्र में करना नहीं चाहती। अगर कोई विद्यार्थी अपनी किशोरावस्था 9वीं से 12वीं तक अच्छी तरह से पढ़लिख कर अपने लक्ष्य का चयन करता है तो वह आगे जाकर सफल होता है। अंत में मेरा अनुभव यही कहता है कि कोई भी अध्यापक अच्छा या बुरा नहीं होता।

हरेक अध्यापक उसके विद्यार्थियों के कारण ही अपने आप को अच्छे व बुरे अध्यापकों के रूप में ढालते हैं। इसके साथ ही विद्यार्थी के कोरे कागज की तरह जीवन को शिक्षा की रोशनी से भरना और उसे उभारना भी अध्यापक की जिम्मेदारी है और वह अपनी प्रतिभा से किस प्रकार बच्चों की प्रतिभा को निखारने का काम करता है। इसलिए विद्यार्थी जीवन में प्रत्येक बच्चे या युवा का कर्तव्य है कि वह जितना हो सके अपने अध्यापक से ज्ञान प्राप्त करे ताकि अध्यापक को अपने अध्यापक होने पर गर्व हो सके।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here