होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आश्रम गौतम नगर होशियारपुर में सप्ताहिक सतसंग का आयोजन किया गया। जिस में संस्थान के संचालक श्री गुरू आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री राजविंदर भारती जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा परिवार सुखी एवं समृद्ध है। व्यवसाय भी खूब बढिय़ा बल रहा है। इसलिए मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं। फिर मुझे अध्यात्म की ओर कदम बढ़ाने की क्या आवश्यकता है? सबसे पहली बात तो यह है कि आप संतुष्ट हो ही नहीं सकते,क्योंकि ये सांसरिक उपलब्धियां वास्तविक सुख का मापदंड है ही नहीं। फिर भी यदि कोई व्यक्ति अपने आपको समृद्ध घर संसार व्यवसाय के आधार पर सुखी समझता है, तो उसकी दशा नशे में चूर एक नशाखोर के समान ही है।
नशे की हालत में उसे अपने दुखों की सुध ही नहीं रहती। परंतु इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि उसके दुखों का अंत हो गया। क्योंकि दुख भूलना एक बात है और सुख को प्राप्त करना कुछ और बात है। विचार कीजिए ,एक बहुत गरीब व्यक्ति है जिसे दो समय की रोटी भी नसीब नही होती। उसके पास सिर ढकने के लिए छत का आसरा तक नहीं है। यदि यह निर्धनत में स्वयं को धनवान के रूप में देखे, अपने इर्द गिर्द सेवा में खडें दास दासियां देखे तो अवश्य ही अपनी वास्तविक दरिद्रता को ही भूल बैठेगा। स्वप्न जगत की चकाचौंध में खुद को अमीर मानने लगेगा। परन्तु कितनी देर के लिए तभ तक जब तक स्वप्न नहीं टूटता।
स्वप्न के टूटते ही, उसे फिर से अपनी गरीबी का एहसास होगा। ठीक इसी प्रकार आज हम जिसे समृदि समझ रहे है, वह वास्तव में एक स्वप्न हीे है। धन वैभव की चकाचौध एक नशे के समान है। इस स्वप्न व नशे में अपनी सुध बुध खोकर हम भूलवंश स्वयं को सुखी समझ रहे है। परन्तु जैसे ही किसी दुर्घटनावश हमारे व्यवसाय में घाटा हो जाता है या परिवार में मन मुटाव पैदा हो जाता है, तब हमारा स्वप्न टूटता है, नशा उतरता है। तभी हम समझ पाते है कि जिसे हम अब तक सुख समझते आए थे वह तो सुख का भ्रम मात्र है।
केवल दुख को भूलना था। वास्तविक सुख अर्थात आनंद की तो हम आज तक परिभाषा तक भी नहीं जान पाए है। इसलिए अब निरण्य हमेें ही करना है कि हम नशे या स्वप्न की अवस्था में सुख का केवल क्षणिक आभास करना चाहते हैं या पूरी तरह जागकर सदा रहने वाला आनंद प्राप्त करना चाहते है। परंतु अध्यात्म क ी प्राप्ति केवल पुर्ण गुरू की शरण में जाकर ही हो सकती है। पूर्ण सतगुरू ही इंसान को अध्यात्म ज्ञान प्रदान करके परमात्मा का प्रतक्ष अनुभव करवाने की शक्ति रखते है।