ये तो हद हो गई: डाक्टर बाबू ने ही लगाया विभाग को ‘टीका’

-स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एक डाक्टर ने सरकारी अस्पताल से करवाया था अपने रिश्तेदार का ईलाज-ईलाज दौरान किया था स्पैशल वार्ड में भर्ती-इस वार्ड में विभाग के कर्मचारी और गैर कर्मी को देना ही पड़ता है शुल्क-कुर्सी की ताकत और पहुंच के चलते दबा दी गई शुल्क की फाइल आज तक बनी है चर्चा का विषय-50 हजार रुपये से भी अधिक का शुल्क वसूलना जरुरी नहीं समझ रहे अधिकारी-
विशेष रिपोर्ट: संदीप डोगरा/कै. मुनीष किशोर
होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली कैसे सुधर सकती है, जबकि इसके अपने ही इसे ‘टीका’ लगाने की फिराक में रहते हैं। जी हां! स्वास्थ्य विभाग की बिगड़ती तबीयत के पीछे जहां सरकार की उदासीनता को कारण माना जा सकता है वहीं विभाग में कार्यरत कई ऐसे अधिकारी व कर्मचारी हैं जो अपने पद का दुरुपयोग करने से परहेज नहीं करते, भले ही इसमें विभाग को कोई नुकसान ही क्यों न पहुंच जाए। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार विभाग को टीका लगाने वालों में होशियारपुर से संबंधित भी कुछ अधिकारी शामिल हैं। जिनकी अगर गहनता से जंच की जाए तो बहुत से खुलासे होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार कुछ समय पहले होशियारपुर में डाक्टर बाबू ने अपने किसी रिश्तेदार को बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इस दौरान उस डाक्टर बाबू ने अपने ओहदे का इस्तेमाल करते हुए उसे अस्पताल में स्थापित एक स्पैशल वार्ड, जहां भर्ती होने वाले हर मरीज को शुल्क देना पड़ता है भले ही फिर वह किसी कर्मी का रिश्तेदार या वे खुद ही क्यों न हो में भर्ती करवा दिया था। कम से कम 2 माह तक उसका ईलाज करवाने के बाद डाक्टर साहब ने उसे अस्पताल के साधारण वार्ड में शिफ्ट करवा लिया था ताकि स्पैशल वार्ड में बने बिल से बचा जा सके। परन्तु जब स्पैशल वार्ड की फाइल डाक्टर बाबू के पास पहुंची तो उन्होंने उसे तिडक़म लगाकर ऐसा

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दबाया कि आजतक उस शुल्क की वसूली करने की हिम्मत किसी अधिकारी ने नहीं दिखाई। अगर एकाध ने कभी इसके बार में जानना भी चाहा तो उसे भी किसी न किसी तरीके से चुप करवा दिया गया। परन्तु, फाइलों के बोझ के तले बदी यह फाइल आज भी उक्त डाक्टर बाबू को कोसती हुई अधिकारियों की बेबसी का तमाशा खूब देख रही है और कर्मियों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। आलम यह है कि सूत्रों से जो-जो बातें पता चली हैं अगर वे आपको बताई जाएं तो उसे पढक़र आपका माथा शर्म से झुक जाएगा, मगर अब भाई वे तो ठहरे डाक्टर बाबू और पहुंच वाले लोग, उनकी नाराजगी कौन मोल लेना चाहता है, इसलिए सभी इस बात को दबी जुबान में स्वीकार तो करते हैं पर कार्रवाई की हिम्मत कोई नहीं करता। इस बारे में जब अलग-अलग कर्मियों व अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने ‘एक चुप सौ सुख’ के फार्मुले को अपनाते हुए सिर्फ अपना काम करते रहने की बात कही। परन्तु, दिल में एक टीस सी जरुर दिखी कि अगर इसकी गहनता से जांच हो तो सच्चाई सबके सामने आ जाएगी कि कैसे डाक्टर बाबू जिसका एक अन्य रिश्तेदार भी विभाग में ऊंचे पद पर ही कार्यरत था के साथ मिलकर किस प्रकार विभाग को चूना लगाया। अगर कोई गरीब या साधारण व्यक्ति होता तो शायद अब तक विभाग उसे अदालत में घसीट चुका होता और उसे सरेआम जलील किया जाता। परन्तु अपनों के हाथों ठगे जाने का दर्द वे किस प्रकार बयान करे यह समझ से परे है।

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