मंत्री जी का आशीर्वाद: खूब फलफूल रहा ‘ठेकेदार’

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द स्टैलर न्यूज़-Capt. Munish Kishore-
वैसे एक बात है ठेकेदारी का धंधा भी क्या खूब धंधा है, ‘हिंग लगे न फटकड़ी रंग चौखा’ और अगर मंत्री जी अपने हों तो सोने पे सुहागा। जो व्यक्ति ठेकेदार अपने आका की मेहरबानी से बना हो और उसे गफ्फे पे गफ्फा मिल रहा हो उसके लिए तो मंत्री जी किसी कोहेनूर के हीरे से कम नहीं हैं। अकाली-भाजपा सरकार के राज में कई लोगों ने ठेकेदारी के लाइसैंस लेकर इस फील्ड में ऐसी पैंठ बनाई कि छोटे से छोटे ही नहीं बल्कि कई बड़े कार्यों के ठेके भी उनकी झोली में गिरे। भाजपा के एक मंत्री जी के खासमखासों में से भी खास एक शख्स ऐसे हैं जो कभी कामकाज से भी आवाजार थे व उनकी आर्थिक स्थिति कैसी थी किसी से छिपी नहीं रही, आज मंत्री के आशीर्वाद से ऐसे ठेकेदार बने बैठे हैं जो भले ही पिक्चर में खुलकर सामने न आते हों, मगर उनके कहे बिना मंत्री जी द्वारा जारी ग्रांट से कोई काम हो कैसे जाए।

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यहां तक कि ठेकेदार साहिब के बारे में यह भी मशहूर हो गया था कि वे ये कहने से भी नहीं हिचकिचाते कि ‘भाई ग्रांट तो 2 लाख जारी हुई थी, मगर आप डेढ़ ले लो या फिर काम तो हम ही करवाएंगे।’ इसके अलावा कई ऐसे किस्से उनके साथ जुड़े हैं जिनके बारे में मंत्री जी के अन्य करीबियों को बाखूबी पता है तथा कई तो इस बारे में मंत्री जी को जानकारी भी दे चुके हैं। मगर, मंत्री जी अपने खासमखास पर ऐसे मेहरबान हैं कि उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव भी दिखाई नहीं देते। राजनीकित

माहिरों की माने तो राजनीति में एक बात बहुत प्रसिद्ध है कि बड़े नेता के साथ जुड़ कर अगर कोई ‘बड़ा’ नहीं बना तो फिर भाई नेता जी की ‘बगारें’ करने का भी क्या लाभ। मगर, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जब-जब चुनाव आते हैं तो ऐसे करीबियों की वजह से ही नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ता है। 

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार भाजपा के एक बड़े मंत्री के खासमखासों में से एक शख्स ऐसे हैं जो शहर ही नहीं बल्कि गांवों में विकास कार्यों के नाम पर जारी होने वाली ग्रांट तथा अन्य कार्यों में खूब चांदी बटौर रहा हैं। पार्टी से जुड़े अन्य लोगों को इस बात की खबर होने के बावजूद वे खुलकर बोलने या विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे, क्योंकि पता चला है कि उसके बारे में कई बार मंत्री जी को बताए जाने के बावजूद जब कुछ नहीं हुआ तो विरोध करके क्या लाभ। खाहमखा में मंत्री जी की नाराजगी मुल लैणी। कुछेक का तो कहना है कि मंत्री जी का आशीर्वाद उस पर ऐसा बना है जो दोनों की कथित मिलीभगत की तरफ इशारा करने के लिए काफी है। अगर ऐसा न होता तो शायद अब तक उस शख्स बाहर का रास्ता दिखा दिया होता। वैसे भी भाजपा का तो इतिहास ही रहा है कि भाजपा के नेता जितनी तेजी से ऊंचाईयों को छूते हैं उससे दोगुना तेजी से नीचे उतरने में भी उन्हें देर नहीं लगती और उनकी इस रफ्तार को बढ़ाने में कहीं न कहीं ऐसे लोगों का हाथ जरुर रहा है, जो पार्टी के भविष्य के लिए भी एक खतरा है। 

पार्टी सूत्रों का कहना है कि बार-बार मिल रही शिकस्त से भी नेता सबक लेना जरुरी नहीं समझ रहे। और तो और सीनियर कार्यकर्ताओं की बात सुनना भी वे जरुरी नहीं समझते। पिछले विधानसभा चुनाव में भी नेता के एक खासमखास उनकी हार का कारण बने थे तो इन विधानसभा चुनावों में भी नेता जी के खासमखासों के चलते उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। भले ही नेता जी इस बात को अंदरखाते भलीभांति जानते हों, मगर जिन्हें खुद सीढ़ी देकर ऊपर चढ़ाया हो उनके बारे में कुछ कहें भी तो कैसे। ऐसा ही हाल कुछ इस भाजपा नेता का आने वाले होना वाला है ऐसा अभी से प्रतीत होने लगा है। अगर समय रहते मंत्री ने अपने आसपास की सफाई करके ईमानदार व स्वच्छ छवि वालों को बागदौड़ न सौंपी तो नतीजे साफ हैं। वैसे भी मंत्री जी भले ही होशियारपुर से विजयी श्री का ताज पहन कर गए हों, मगर यहां की जनता के दिलों में जगह बनाने में पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए हैं। इसका कारण साफ है कि वे अपने खासमखासों की हरकतों पर नजर रखने में जहां असफल रहे वहीं वे भी उसी राह पर चल रहे हैं जिस पर चलकर कई नेता आज ‘हार’ पहने अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लडऩे को मजबूर हो गए हैं। ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

और अमित शाह के प्रति भले ही लोगों का विश्वास सुदृढ़ हो रहा हो, मगर स्थानीय स्तर पर नेता जी की कार्यप्रणाली और उनके खासमखासों द्वारा पकाई जा रही खिचड़ी की महक आगामी चुनावों में दम घोटने का काम कर सकती है। भाजपा से जुड़े कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर नेता जी ऐसे ही वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को अनदेखा करते रहे तो उनके दरबार में लगने वाली रौनक बीते समय की बात हो जाएगी और पार्टी एक अहम सीट से हाथ धो बैठेगी। इसलिए समय रहते आसपास की सफाई बेहद जरुरी है, क्योंकि मोदी जी ने भी स्वच्छता का नारा दिया है। फिर वह बाहरी हो, भीरती हो या फिर राजनीतिक या व्यक्तिगत हो, सफाई तो जरुरी है।

इस चुप ते सौ सुख!

‘इक चुप ते सौ सुख’ वाली कहावत पर ही अमल करना चाहिए। क्या फायदा कह कर, यहां तो जो बोले वही कुंडा खोले और बुरा बने। तो फिर भाई क्यों कोई बुरा बने और उसकी बुराई मोल ले। ये कहना है कि भाजपा के कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं/नेताओं का जो पिछले लंबे समय से पार्टी की सेवा में लगे हैं और कई अलग-अलग तरह के पदों पर रहते हुए उन्होंने काम किया है। उनके अनुसार अगर कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं तो फिर बात करनी भी क्या। इससे तो यह अच्छा है कि जब नेता जी आएं उनके साथ बैठे, गप्प शप्प की और चले आए अपने-अपने काम पे। जब प्रतिनिधित्व को ही कुछ लेना देना नहीं तो पार्टी का अन्य काम छोड़ नेता जी की जी हजूरी में समय क्यों बर्बाद करें। इतनी समझ तो नेता जी को भी होती है न कि क्या सही है और क्या गलत, अगर वे सुनकर भी अनसुना कर दें तो फिर क्यों बार-बार एक ही बात करके अपनी एनर्जी वेस्ट करनी। इससे तो यही अच्छा है कि ‘एक चुप सौ सुख’। होने दो जो होता है, जो करेगा वो भरेगा।

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