धवन अस्पताल लधियाना: इलाज में कौताही से अपंग हुआ था अमृतराज, आयोग ने 50 लाख रुपये मुआवजे के दिए आदेश

लुधियाना (द स्टैलर न्यूज़)। एक तरफ डाक्टरों द्वारा मरीज का इलाज करके उसे जीवन दान दिया जाता है, वहीं कुछ ऐसे डाक्टर भी हैं जो मरीज के इलाज में लापरवाही बरत कर उसके जीवन से खिलवाड़ करने से भी परहेज नहीं करते। जिसके चलते कई लोग जहां जीन से हाथ धो बैठते हैं वहीं कई मरीज अपंगता का शिकार होकर दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। डाक्टर की लापरवाही के मामले में सुनवाई करते हुए स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूटस रेडरेसल कमिशन ने अस्पताल को मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ करने के लिए ब्याज सहित मुआवजा अदा करने के साथ-साथ कानूनी खर्च भी अदा करने के आदेश जारी किए हैं। 6 साल तक चले केस में आए फैसले के बाद पीडि़त जहां आयोग का धन्यवाद कर रहा है वहीं उसके मामले को आयोग के समक्ष उठाने वाले एडवोकेट ललित पाठक को वह किसी मसीहा से कम नहीं मान रहा।

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एडवोकेट ललित पाठक ने स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूटस रेडरेसल कमिशन पंजाब चंडीगढ़ के समक्ष दायर की थी शिकायत, 6 साल तथ्यों की सटीकता और दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आयोग ने दिया फैसला

क्या था मामला:

बता दें कि लुधियाना के बजरा कॉलोनी, कैलाश नगर रोड़ निवासी 11 वर्षीय अमृतराज पुत्र डिंपल शर्मा आज से करीब 6 साल पहले 2014 में छत से गिर गया था, जिससे उसके बांये हाथ की हड्डी टूट गई थी। जिसे इलाज के लिए धवन सर्जीकेयर एडं मल्टीस्पैशिलिटी अस्पताल सुंदर नगर, समीप किंग पैलेस लुधियाना में भर्ती करवाया गया था, जहां डा. गगनदीप धवन और मोनिका धवन ने उसका ईलाज किया था।

उक्त डाक्टरों द्वारा बच्चे का इलाज सही ढंग से न होने के चलते उसकी हालत बिगडऩी शुरु हो गई और उसे सीएमसी लुधियाना भेज दिया गया। सीएमसी पहुंचने पर वहां के डाक्टरों ने बताया कि बच्चे के इलाज में लापरवाही बरती गई है, जिससे इनफैक्शन बढऩे से उसकी जान को खतरा बना गया है और उसका उसकी जान बचाने के लिए उसका हाथ काटना पड़ेगा। डाक्टरों द्वारा यह बात कहने पर युवक व उसकी मां पर मानों जैसे कोई बिजली टूट पड़ी हो। बच्चे की जान बचाने के लिए उन्होंने डाक्टरों को जो भी बन पड़े करने को कहा। इसके बाद डाक्टरों ने उसकी बाजू काट कर उसकी जान बचाई। अमृत की जान तो बच गई, लेकिन जिंदगी भर के लिए वो अपाहिज हो गया। सीएमसी के डाक्टरों द्वारा अमृत की जान बचा दी गई और अपने बच्चे के साथ हुई दुखद घटना के लिए अभागी मां दर-दर की ठोकरे खाने लगी। उसी दौरान उसकी मुलाकात हाईकोर्ट के वकील ललित पाठक जोकि लुधियाना के ही निवासी हैं, से हुई। जिन्होंने सारा घटनाक्रम समझने के बाद पीडि़त की माता को न्याय दिलवाने का आश्वासन दिया।

मामले की और जानकारी देते हुए एडवोकेट ललित पाठक ने बताया कि मामला उनके ध्यान में आने के बाद उन्होंने स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूटस रेडरेसल कमिशन पंडाब चण्डीगढ़ में 2014 को केस दायर किया गया था। लेकिन, बिना नोटिस जारी किए इस केस को खारिज कर दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने इस मामले संबंधी नैशनल कमिशन से सुनवाई की अपील की थी। जिसे नैशनल कमिशन ने मंजूर कर लिया था और इसके बाद केस की सुनवाई शुरु हुई थी। आयोग के पास 6 साल तक केस चला, सुनवाई हुई और आयोग ने दोनों पक्षों की सुनवाई करते हुए पीडि़त को न्याय दिया। एडवोकेट ललति पाठक ने बताया कि न्यायाधीश ने कहा कि धवन डाक्टर ने इलाज में कौताही बरती है व रिकार्ड में पैंपरिंग है। जिस पर स्टेट कमिशन न्यायाधीश ने धवन अस्पताल को इलाज में कौताही बरतने और मरीज के रिकार्ड से छेड़छाड़ करने और गलत ढंग से पेश करने पर पीडि़त को 50 लाख रूपये का मुआवजा प्रति वर्ष 7 प्रतिशत ब्याज सहित तथा 33 हजार रुपये कानूनी खर्च के अदा करने के आदेश जारी किए हैं। एडवोकेट पाठक ने कहा कि आयोग ने पीडि़त के साथ न्यायसंगत फैसला किया है तथा बैलेंसड फैसला है।

एडवोकेट पाठक का धन्यवाद करते नहीं थक रही पीडि़त की मां

अमृत की माता ने कहा कि वह आर्थिक रुप से बहुत गरीब है तथा उसका उसके बेटे के सिवाये कोई सहारा नहीं है। लेकिन अस्पताल के डाक्टरों द्वारा उसके बेटे का गलत इलाज किया गया, जिससे उसकी जिंदगी पर आन बनी और उसका एक हाथ काटना पड़ा। उसका कहना है कि दर-दर की ठोकरें खाने के बाद उन्होंने न्याय की उम्मीद ही छोड़ दी थी। लेकिन भगवान ने उनके बेटे के साथ न्याय करना था तथा उनकी भेंट लुधियाना के निवासी ललित पाठक जोकि हाई कोर्ट चंडीगढ़ में वकालत करते हैं से हुई। उन्होंने उनके मामले को आयोग के समक्ष हर तथ्य के साथ उठाया, जिनसे उनके बेटे के साथ हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना की न्यायाधीश को जानकारी मिली। हालांकि सुनवाई दौरान पीजीआई के डाक्टरों के पैनल ने अस्पताल के हक में लिखा था, जिस पर पुन: पैनल बनाए जाने की मांग को आयोग द्वारा स्वीकार करते हुए पुन: पैनेज बनाए जाने के आदेश दिए। नए पैनल ने उनके बेटे के केस को गंभीरता से जांचा और डाक्टर की गलती निकाल कर आयोग को रिपोर्ट दी। आयोग ने सभी तथ्यों पर गौर करते हुए और दोनों पक्षों की सुनवाई करते हुए उनके बेटे व उनके साथ न्याय किया है। जिसके लिए वह आयोग, न्यायाधीश और एडवोकेट ललित पाठक की आभारी रहेगी, जिन्होंने उनके जिंदगी के सहारे को पुन: जीवन प्रदान किया और उसे स्वाभिमान भरा जीवन जीने लायक बनाया।

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